अमरजीत के पांच रुपए- नेकराम: Moral Stories in Hindi

अमरजीत अपने परिवार के साथ शहर में रहता है पिता रिक्शा चलाते हैं किराए का एक छोटा सा कमरा है अमरजीत 12 वीं कक्षा पास कर चुका था ,,,,

आगे की पढ़ाई के लिए वह पिता पर अधिक बोंझ नहीं डालना चाहता था इसलिए उसने शहर में नौकरी करने का मन बना लिया था —

सुबह के 9:00 बज चुके हैं अमरजीत ने पढ़ाई के कागज इकट्ठे किए मां के बटुए में केवल 30 रूपए थे पिता तो सवेरे ही रिक्शा लेकर निकल जाते थे शाम या रात तक ही लौटेंगे अमरजीत 30 रूपयो को लेकर अपनी नई नौकरी के लिए चल पड़ा अमरजीत ने रास्ते में मां के दिए हुए रुपए देखे एक 10 का नोट था एक 20 का नोट था दिल्ली में संतरी कलर की बस में 5 रूपए का टिकट 10 रुपए का टिकट और 15 रूपए का टिकट है ,,,,,,

अमरजीत को जिस पते पर जाना था वहां 15 रूपए का टिकट खरीदना पड़ेगा वापस आने पर भी 15 रूपये का टिकट खरीदना होगा यही सब सोचते सोचते अमरजीत बस स्टॉप पर आ चुका था ,,,,,

लोग बसों में चढ़ते कुछ उतरते दिखे सुबह के 9:30 बज चुके थे दफ्तर में 10:30 बजे का इंटरव्यू था हर 5 मिनट में एक नीली एसी वाली बस आ जाती बस नंबर तो वही है जिस नंबर का अमरजीत को इंतजार था किंतु नीली एसी वाली बस का किराया 25 रूपए है ,,,,,

तब अमरजीत सोचने लगा अगर इस बस से चला जाऊंगा तो मेरे पास केवल 5 रूपए ही बचेंगे फिर मुझें वापस भी तो घर आना होगा कुछ देर और इंतजार कर लेता हूं खड़े-खड़े आधा घंटा और बीत गया किंतु क्लस्टर बस ना आई दूर से नीली बस आती दिखती तो अमरजीत का मुंह लटक जाता ,, पूरे डेढ़ घंटे इंतजार के बाद उसे एक क्लस्टर बस आती दिखी तो अमरजीत के शरीर में जान आई ,,,

पीछे का गेट खुलते ही वह फौरन बस में चढ़ गया भीड़ अभी भी ज्यादा थी आठ नौ सवारी अमरजीत के साथ चढ़ी थी अमरजीत ने 20 का नोट कंडक्टर के हाथ में थमाते हुए कहा एक टिकट दे दो 15 रूपए का कंडक्टर ने 20 रूपए का नोट अमरजीत के हाथ से ले लिया बदले में 15 रूपए वाला टिकट काटकर देते हुए कहा  ,,, अभी 5 रूपए नहीं है  ,,,,,

,,,, आते ही दूंगा ,,,,,,,

अमरजीत एक सीट के किनारे सटकर खड़ा हो गया इत्तेफाक से कई और यात्रियों ने भी 20 रूपए देकर 15 रूपए का टिकट लिया था अब उन्हें भी पांच का सिक्का चाहिए था आधा घंटा हो गया बस अब तक कई बस स्टॉप पार कर चुकी थी अब सवारी उतरने लगी अगले स्टॉप से एक पुरुष चढ़ा उसने अपनी जेब से पांच-पांच के दो सिक्के कंडक्टर के हाथ में थमा दिए बदले में 10 रुपए वाला टिकट ले लिया कंडक्टर ने दो यात्रियों को तो निपटा दिया ,,,

अमरजीत और उसके साथ एक व्यक्ति और खड़ा था दोनों ही कंडक्टर का मुंह तांक रहे थे इस उम्मीद में कि उन्हें पांच का सिक्का मिल जाए

अमरजीत के साथ खड़ा व्यक्ति बिना अपने 5 रूपए लिए ,, आगे वाले गेट से उतर गया शायद उसका स्टॉप आ चुका था अमरजीत अभी भी उम्मीद लिए खड़ा था किंतु जब अमरजीत का स्टॉप आया तो अमरजीत को भी बस से उतरना पड़ा नौकरी के लिए पहले ही बहुत लेट हो चुका था ,,,,

वह जिस बस से नीचे उतरा उसे कुछ सेकंड तो देखता रहा फिर लोगों से पूछते हुए दफ्तर पहुंचा नौकरी के फार्म दिखाएं 1 घंटे की प्रतीक्षा के बाद अमरजीत की नौकरी पक्की हो गई खुशी से उसका चेहरा खिल गया वह वापस बस स्टॉप पर आ पहुंचा इस बार वह सड़क के दूसरी तरफ खड़ा था घर जाने के लिए जेब में केवल 10 का नोट था जबकि बस में पूरे 15 रूपए का टिकट लगेगा ,,,,

आने जाने वाले लोगों से मदद मांगूंगा उनसे कहूंगा मेरे पास किराया कम है तो क्या लोग मुझे 10 रूपए देंगे

कभी नहीं देंगे क्योंकि

मेरे नए जूते मेरे प्रेस किए हुए कपड़े देखकर मैं एकदम अमीर सा दिख रहा हूं

अमरजीत बस स्टॉप की भीड़ के पीछे खड़े होकर शांत मुद्रा में

बार-बार अपने 10 के नोट को देख रहा था ,,

दिल्ली शहर में हर आधा किलोमीटर दूरी पर एक बस स्टॉप है अमरजीत हिसाब जोड़ने लगा मैं शायद 30 स्टॉप पार करके यहां तक पहुंचा हूं मेरे पास 10 रूपये है इन 10 रुपए में मुझे 15 स्टॉप तो मिल ही सकते हैं बाकी के 15 स्टॉप मुझें पार करने के लिए पैदल ही चलना होगा अगर हर स्टॉप आधा किलोमीटर दूरी पर है तो मुझे साढ़े सात किलोमीटर पैदल चलना होगा बाकी के साढ़े सात किलोमीटर में बस से तय कर सकता हूं

बिना टिकट यात्रा करना या कम दूरी का टिकट लेकर अधिक दूरी की यात्रा करना भी कोई महान काम नहीं है पकड़े जाने पर बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है बस से उतार दिया जाता है घंटों तक खड़े रहना पड़ता है चेकियर की तरह-तरह की बातें सुननी पड़ती है और वैसे भी मैं एक पढ़ा लिखा नौजवान हूं नौकरी भी मिल गई है इसलिए मैं इन झंझटों में नहीं पड़ना चाहता हूं ,,,

यहां से मैं बस में बैठूंगा जब 10 रूपए का टिकट जहां समाप्त होगा वहां बस से उतरकर पैदल ही घर जाऊंगा ,,,

अमरजीत को याद आया जब मैं सुबह क्लक्टर बस में चढ़ा था तो तीन चार स्टॉप के बाद सड़क किनारे बहुत से प्रदर्शनकारी लोग अपनी-अपनी समस्याओं को लेकर गुस्से में खड़े थे अगर मैं वहां से पैदल निकला तो शायद जब तक वहां हंगामा शुरू हो जाए और पुलिस मुझे भी प्रदर्शनकारी समझकर थाने में बंद कर दे तो मुझे थाने से कौन छुड़ाने आएगा ,,, डंडे अलग खाने पड़ेंगे ,, ना बाबा ना मैं यहीं से साढ़े सात किलोमीटर पैदल चलूंगा ,,,,

जब थक जाऊंगा तो रास्ते में कहीं पेड़ के नीचे या किसी स्टॉप पर बैठकर थोड़ा आराम कर लूंगा फिर आगे का सफर तय करूंगा उसके बाद क्लस्टर बस में चढकर 10 रुपए का टिकट लूंगा और ,, बस ,, मुझे मेरे मोहल्ले के बस स्टॉप पर उतार देगी अमरजीत जैसे ही बस स्टाफ से पैदल चलने को हुआ तो ,,,,

तभी अमरजीत को एक क्लस्टर बस आती दिखी यह तो वही बस थी जिस बस से अमरजीत यहां तक पहुंचा था वही कंडक्टर वही ड्राइवर ,,,

स्टॉप पर बस रुकी पीछे वाला गेट खुल गया ,,,

इस बार अमरजीत अकेला ही चढ़ने वाला यात्री था ,,,

बस में चढ़ने के बाद अमरजीत ने 10 का नोट कंडक्टर को देते हुए कहा 15 रूपए वाला एक टिकट दे दो ,,,

,,, कंडक्टर ने अमरजीत को शायद पहचान लिया था ,,

उसने 15 रूपए का टिकट काटकर अमरजीत के हाथ में थमा दिया ,,,

अमरजीत के चेहरे पर खुशी के भाव साफ नजर आ रहे थे

नेकराम सिक्योरिटी गार्ड

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!