छोटों की सीख – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

लो अब तो आदि ने टिकट भी भेज दिए

अब तो चलो बैंगलौर ।

ये लडका भी न, समझता ही नहीं कि मुझे कहीं  आना जाना पसन्द नहीं अब टिकट भेज दिए।

कहीं और थोड़े ही चल रहे हैं बेटा-बहू है अपने ही बच्चे हैं उनके घर ही तो चलना  है फिर इतने दिनों से बुला रहे हैं उनका भी तो मन करता है अपने मम्मी-पापा के साथ रहने का सो आपको क्या परेशानी है।

तुम नहीं समझती हो यह सब दिखावा है

थोडे ही दिन में जब वे दुर्व्यवहार कर घर से बापस भेज देंगे तब तुम्हारी समझ में आ जाएगा।

पहले से ही बच्चों के प्रति ये कैसी धारणा बना  ली है आपने।

मैं गल्त नहीं कह रहा हूँ दुनियाँ देखी है ।मेरे कितने ही दोस्तों के साथ यही हुआ है शिखा। मेरी बात समझो बेइज्जती करा कर लौटने  से तो अच्छा है जाया ही ना जाए। फिर मैं   अपने ही घर में अच्छा अनुभव करता हूं। मेरा मन कहीं जाने का नहीं होता । ठीक है इस बार चलते हैं, और जल्दी लौट आयेंगे फिर नहीं चलेंगे।

खैर शाश्वत जी चलने को तैयार हो गए। वे दोनों फ्लाइट से बैंगलौर पहुंचे। फ्लाइट में पहली बार बैठे थे. सो सबकुछ नया, असुविधाजनक लग रहा था। एयर पोर्ट पर  आदि एवं अर्पणा उनके नाम की तख्ती लिए खडे थे।दूर से ही देखकर हाथ हिलाकर दोनों ने प्रसन्नता जाहिर की । चरण स्पर्श कर दोनों ने आशीर्वाद लिया और सामान उनसे  ले कार में रखा और गाडी चल पड़ी गन्तव्य की ओर ।मां दोनों बच्चों से गले मिल खुश थीं  वहीं शाश्वत जी सोच रहे थे इसे आने की क्या जरूरत थी आदि अकेला ही आजाता। घर में रहकर चाय नाश्ता  का प्रबन्ध करती। पर ये आजकल की लडकियाँ भी-

घर पहुँच अर्पणा ने तुरन्त चाय  चढा दी। जब तक  आदि सामान और मम्मी-पापा को लेकर अन्दर आया चाय बन चुकी थी । उनके बैठते ही चाय-नाश्ता ले अर्पणा आ गई। इतनी जल्दी चाय-नाश्ता देख शाश्वत जी सोचने लगे कब-बना ली ।

सबके आपस में हालचाल पूछते बडे ही खुशनु‌मा माहौल में चाय नाश्ता खत्म हुआ।

आदि बोला अब आप लोग थोडा आराम कर लें थक गए होंगे ,और उन्हें बेडरूम में  लिटा दिया। सुसज्जित बेडरूम, घर की साफ-सफाई देख जहां शिखा जी प्रसन्न हो रही थीं वहीं शाश्वत जी की आँखे एक-एक चीज का मुआयना कर रहीं थीं ।

अब वे दोनों किचन में आए और उनके मन पसन्द खाना बनाने की तैयारी में लग गए  मटर पनीर ,भिन्डी, रायता एवं पुलाव बना कर तैयार किया। आटा लगा कर रख अब वे मम्मी-पापा के पास आकर बैठ गए और बातें करने लगे ।फिर उन्हें पूरा घर दिखाया । शिखा जी  को बेटे की गृहस्थी देख कर अत्यंत  प्रसन्नता  हो रही थीं। नहा धोकर जब बे डाइनिंग  टेवल बैठे तो देखा  दोनों। ने जल्दी-जल्दी सारा सामान टेबल पर लगा दिया अब आदि सब्जी वगैरह प्लेट में डाल रहा था तभी अपर्णा गर्मागर्म फुलके लाकर दे रही थी।

शाश्वत जी आदि से बोले तू भी बैठ जा खाने ।

आदि बोला पापा पहले में अच्छे से आप लोगों को सर्व कर दूं ।

क्यो तू क्यों करेगा अर्पणा कर देगी।

पापा वह फुल्के सेंक रही हे में यहाँ आपका ध्यान रखता हूँ। बाद में, मैं अर्पणा के साथ खा लूंगा पीछे वह अकेली रह जायेगी। तब तक अर्पणा केसरोल में फुलके रख आ गई । आदि ने तुरन्त दो प्लेट्स लगाई और दोनों खाने बैठ गये। खाना रवा कर मम्मी-पापा वहीं पास ही पड़े सोफे पर बैठ गये। तभी उन्होंने देखा कि आदि और अपर्णा दोनों ने मिलकर फटाफट डाइनिंग  टेबल और किचन स्लैब की सफाई कर दी। आदि आकर उनके पास बैठ गया तभी अर्पणा ट्रे में आइसक्रीम ले कर आई और वह भी बैठ गई। हंसी-ठहाकों के बीच बातों  का सिलसिला चलता रहा।

अब आप लोग थोडा आराम कर लें। हमें ऑफिस का काम करना है फिर शाम को घूमने चलते हैं। कह कर दोनों अलग-अलग कमरे की तरफ चले गये। आदि अपना काम कर जैसे ही फ्री हुआ मम्मी-पापा के पास आ बैठा।

शाश्वत जी बोले बहु कहाँ है चाय बना रही है क्या।

नहीं पापा अभी उसका काम पूरा नहीं हुआ है  तब तक मैं चाय बना लाता हूं तब तक वह भी आ जाएगी।

पापा बोले मैं सुबह से देख रहा हूँ तू घर के काम में ही लगा रहता है बहू क्यों नहीं करती ।

पापा वह भी मेरी तरह बाहर भी  काम करती है तो मुझे भी तो घर में उसके काम में हाथ बंटाना चाहिए नहीं तो वह अकेली कितना काम करेगी। वह भी तो इंसान है थक नहीं जायेगी।

वाह मेरे शेर तू तो पूरा जोरू का गुलाम है। पापा आप ये कैसी बातें कर रहे हैं इसमे गुलाम होने की क्या बात है। वह भी मेरी तरह बाहर जाकर काम करती है घर जब दोनों का है तो काम भी तो दोनों मिलकर ही करेंगे उसमें क्या बुराई है। मिलकर करते हैं तो एक पर ज्यादा बोझ नहीं पड़ता और काम भी जलदी निबट जाता है तो कुछ समय साथ मिलकर बैठने, एक दूसरे के मन को जानने समझने के लिए समय मिल जाता है। कहते हुए वह चाय बनाने को चल देता है। चाय-नाश्ता लेकर आता है तभी अपर्णा भी आ जाती है।

अरे आदि तुमने चाय बना ली बस में आ ही रही थी। थोडा मीटिंग लम्बी हो गई। कोई बात नहीं अर्पणा तुम भी चाय

पिओ फिर बाहर चलते हैं। मम्मी जी-पापा जी आप आज कहां चलना पसन्द करेंगे किसी माल में या पार्क में अर्पणा बोली। शिखाजी के बोलने से पहले ही शाश्वत जी बोले माल में चलते हैं पार्क में क्या करेंगें मम्मीजी आपकी क्या इच्छा है।

जहां पापा ने कह दिया वहीं चलो।

चारों ने खूब घूमना फिरना किया थक गए। आदि बोला अब खाना भी खाकर चलते हैं सब  थक  गए हैं कौन बनायेगा।

खा पीकर आये रात अपर्णा ने सबको दूध दिया और आराम से सो  गये।

दूसरे दिन आदि ने वर्क फ्रॉम  होम किया अर्पणा आफिस चली गई जब वह रातआठ बजे तक भी नहीं आई तो शाश्वत जी बोले आदि बहू इतनी रात गए घर से बाहर है तुझे चिन्ता नहीं है कि वह कहां है। तू यहाँ खाना बनाने में लगा है।

पापा कहाँ है यह कैसा सवाल है। वह आफिस गई है आज उसके आफिस में एक डेलीगेशन  आनेवाला है , बहुत बडी डील होने वाली है और यह अर्पणा के प्रेजेंटेशन पर निर्भर है सो देर तो हो ही जाती है खाना भी बहर ही होगा तभी आयेगी। पापा इसी डील पर अर्पणा का प्रमोशन भी निर्भर करता है, अगर उसका प्रेजेन्टेशन पांसद आगया तो ।

तुझे नहीं लगता कि इतनी रात को पराये मर्दों के साथ वह मीटींग कर रही है खाना खायेगी क्या यह घर की बहू को शोभा देता है।

पापा आप किस जमाने की बात कर रहे हैं। जब इतनी बड़ी पोस्ट पर वहाँ काम रही है तो यह सब तो करना ही पड़ता है। इसमें क्या गलत है आज भी समाज में लड़कियों के प्रति ऐसी सोच रखना कहां तक उचित है। वह समझदार है अपना भला-बुरा सोच सकती है। हमारा एक दूसरे पर विश्वास ही हमें ऐसा-वैसा नकारात्मक नहीं सोचने देता।

रात दस बजे अर्पणा मिठाई का डिब्बा लिए हंसते  हुए घर आई। आते ही मम्मी-पापा के चरण स्पर्श कर बोली मम्मीजी पापाजी मुँह मीठा करें मेरा प्रेजेंटेशन पास हो गया और डील पक्की हो गई अब आपके आशीर्वाद से मेरा प्रमोशन हो जायेगा। शिखा जी ने बहू को गले लगाते ढेर सारा आशीर्वाद दिया।

वे अपने बेटा बहू  की सुखी गृहस्थी को देख कर  प्रसन्न हो रहीं थी कि मेरी परवरिश सही रही, एक और शास्वत नहीं बना मेरा बेटा । सही मायने  में वह अच्छा पति, एक अच्छा  इंसान तो  है ही साथ ही पत्नी का सच्चा दोस्त, हम सफर भी है तभी तो घर खुशी से महकता रहता है, खिलखिलाता रहता है। उन्हें  आए आठ दिन हो गए  कभी भी उन्होंने बेटे की चिल्लाहट बहू पर नहीं सुनी ।कभी कुछ गलत भी हो जाता तो वे एक दूसरे से साॅरी बोलकर उस गल्ती को अपने ऊपर ले ले लेते ।

तभी एक दिन अर्पणा का छोटा भाई कम्पनी के काम से बैंगलौर आया। वह घर आया तीनों मिल कर  काम करते-करते हंसते ,बतियाते कि लगता ही नहींं  कि वह बाहर का व्यक्ति है। आदि का व्यवहार उसके प्रति ऐसा ही था जैसे उसीका छोटा भाई हो।

जब शाम को घूमने और उसे कुछ शापिंग की बात आई तो आदि बोला अर्पणा तुम अल्पेश के साथ जाकर उसका काम करवा दो और थोडा उसे घूमा फिरा दो मैं मम्मी-पापा को पार्क  ले जाऊंगा वे माल  में जाकर क्या करेंगे ।तुम खाने की चिन्ता मत करना बाहर से खाकर आना अल्पेश को अच्छा लगेगा यहाँ में सब मैनेज कर लूंगा।

यह सुनते ही शाश्वत  जी के सामने एक सीन घूम गया । जब शिखा का छोटा भाई जो उम्र में काफी छोटा था ऐसा ही कोई चौदह-पंद्रह  का रहा होगा, बड़े अरमान से जीजाजी के साथ रहने आया था। मैंने उसके साथ कितना बुरा व्यवहार किया था  न उससे ढंग से बोला न शिखा को समय दिया कि वह उसे कहीं घूमा फिरा लाये या घर में   ही कुछ अच्छा बना कर खिलाये – पिलाये।

घर का माहौल कैसा क्लेशमय कर दिया था कि बच्चा सहम गया और तीसरे दिन ही वह वापस चला गया। तब शिखा कितने दिनों तक रोती रही थी पर मैंने एक बार भी उससे अपने व्यवहार की माफी नहीं मांगी थी। एक मेरा बेटा है जो उसे यह लगने ही नहीं दे रहा है, कि वह  मेहमान है।

रोज अपने व्यवहार से आदि मुझे एक नया सबक सिखा  देता है कि मैंने क्या किया, मैं कितना गलत था। शिखा को मैंने पत्नी कम, नौकरानी ज्यादा समझा  जो  सिर्फ उसके इशारों पर नाचने बाली  कठपुतली है ।क्या कमी थी उसमें पढ़ी लिखी थी, कमाती थी फिर भी मैंने कभी उसकी मदद करना अपने पुरुषोचित दम्भ के कारण गलत समझा।

नौकरी, घर, बच्चों को उसने अकेले सम्हाला मुझे कभी उसकी परेशानी नहीं दिखाई दी या देख कर भी अनदेखा किया कि यह सब तो औरतों के काम हैं। जीवन में कभी दो मिनिट फुरसत से उसके पास न बैठा न कभी उसके दिल का हाल जाना बस अपने पुरुष होने के अंहकार  में उस पर अपनी इच्छाएं थोपता रहा।

बेटा बहू कैसे दोस्तों की तरह किसी भी बात पर चर्चा करते है कैसे एक दूसरे को सलाह देते हैं, एक दूसरे की इच्छाओं का सम्मान करते हैं। कितना विश्वास है दोनों को एक-दूसरे पर । पति पत्नी के बीच विश्वास ही तो होता है जो उन्हें एक अटूट सम्बन्ध में बांधे रखता है । मैंने तो कभी शिखा को विश्वास योग्य समझा ही नहीं जबसे यहां आई है

वह कितनी खुश लगती है बहू  के साथ कहीं  भी घूमने चली जाती है। शादी के समय कैसी खिली खिली सी, मुखर, हंसती बोलती थी और मैंने उसे एक जिन्दा लाश बना दिया। बहुत बड़ी गल्ती हो गई। जो अपनी गल्ती मुझे जीवन भर समझ नहीं आई आदि-अर्पणा के व्यवहार ने मुझे दिखा दी। वे पति-पत्नी तो हैं ही साथ ही एक दोस्त, हमसफर भी है तभी तो इतने प्रसन्न रहते हैं। एक

मैं हूं,जब एक अच्छा पति ही नहीं बन पाया  तो  दोस्त और हमसफर तो क्या बनता। उफ्फ कैसे शिखा ने घुट-घुट कर जीवन जीया है। आज मुझे शिखा की परवरिश पर नाज है। कैसे उसने आदि को एक अच्छा इंसान बनाया जो अपनी पत्नी का हम सफर बन कर उसका साथ निभा रहा है।

बीता समय तो मैं नहीं लौटा सकता किन्तु

अब मैं भी एक अच्छा पति, हमसफर बनने का प्रयास करूंगा। शायद जीवन के इस अन्तिम चरण – मैं शिखा के आंसू पौंछ उसे जीवन की मुस्कान  देने का भरपूर प्रयास करूंगा। यहाँ आना मेरे लिए बहुत ही शिक्षाप्रद रहा शायद अपने जीवन को सुखद मोड दे सकूँ, और एक अच्छा हमसफ़र बन सकूं।

शिव कुमारी शुक्ला

27-4-24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित

हमसफ़र ***  शब्द प्रतियोगिता

12 thoughts on “छोटों की सीख – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi”

  1. Very nice story otherwise aj Kl toh mostly stories mai bahu and beta ko hi guilty dikhate hai . and in laws ko victims. Jb ki reality mai aisa nhi hota. Well done and congratulations. Hope to read more stories from you 🙏

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