वसीयतनामा – नन्दलाल भारती ( भाग – 2 ) : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : आगे की कहानी समझने के लिए पहला भाग जरूर पढ़ें

वसीयतनामा ( भाग – 1 )

वही पिपाशा मुकुल की मौत पर दहाड़े मार मारकर घड़ियाली आंसू बहा रही थी।

उधर मुकुल के मृत शरीर के अन्तिम संस्कार की तैयारी चल रही थी। इसी बीच मुकुल के बिस्तर से दो लिफाफे मिले एक पर लिखा था दाह संस्कार के पहले और दूसरे पर बाद में सबके सामने पढा जाये।

शान्तनू दोनों लिफाफे अपने पिता के मित्र मि.कानन को थमाते हुए बोला -अंकल पापा के बिस्तर से ये दो लिफाफे मिले हैं। मि.कानन लिफाफा थामते हुए बोले, कृपया ध्यान से सुने यह भाई साहब का स्वलिखित वसीयतनामा है।

हे परमात्मा मेरे बच्चों की सारी जरूरतों की आपूर्ति करना और उन पर सदा कृपादृष्टि बनाए रखना। मेरे बच्चे रोग,दोष,भय मुक्त सदाचारी बनें और तरक्की के पथ पर सदैव अग्रसर रहे। मेरी विरासत में चार चांद लगाये।सब का मंगल हो।

जैसा कि सभी जानते हैं पिपाशा तुम हमारे जीवन की सबसे बड़ी मुसीबत थी, तुम्हारी वजह से हम दोनों तिल तिल मरते रहे। आखिरकार मैं मर गया तुम्हारी मन्नत पूरी हुई।आज तुम्हारे जश्न का दिन है। तुम परिवार के साथ कभी नहीं खड़ी हुई। तुम हमारी विपत्ति और खुशी के समय में ना हाजिर हुई ना ही मेरे बेटे रघु को घर परिवार से मिलने दी। रघु जब हम लोगों से मिलने की कोशिश करता तो तुम झूठ-मूठ का मारपीट का केस बनाकर पुलिस बुला लेती थी। मेरे बेटे को तुमने हमसे छीन कर उसको तबाह कर दिया । उसकी सारी कमाई लूटती, लूटाती और अपने लूटेरे बाप की तिजोरी भरती रही। रघु को जब अपनी ग़लती का एहसास हुआ,तब तुम्हारे ठग मां बाप ने टार्चर और दमन का सहारा लिया और तुमने अनेकानेक लांछन लगाकर दहेज और महिला उत्पीडन की आड़ में पुलिस का सहारा लिया। तुम अपने पति को लूटकर,सास ससुर और ससुराल को बदनाम कर अपने बाप को अमीर बनाने पर अड़ी रही। तुम ना सच्ची पत्नी बन सकी ना मां, बहू बनना तो तुम्हारे उसूल के खिलाफ रहा। तुम मेरी मौत पर खुशी मनाओ,नाचो गाओ।

याद रखना तुम अब तक हमारे परिवार की सामाजिक रुप से बहू नहीं बन सकी क्योंकि तुम रीति-रिवाज से विवाहित होकर भी सेरोगेट मदर बन गई । एक बच्चे को तुम तो दिया पर सिर्फ रुपए के लिए,जिसकी कीमत तुम बाप बेटी ने रघु से धीरे-धीरे दस लाख ऐंठ लिए।पति को आंसू देकर मौत के मुंह में ढकेलने वाली रही हो,सास ससुर के मौत की तुमने तो मन्नत मान ही लिया । तुम रघु की अपराधिनी हो, पूरे परिवार की अपराधिनी हो।अपने ही तन से पैदा किए बच्चे की अपराधिनी हो , सास-ससुर और पूरे ससुराल की अपराधिनी हो, रिश्ते नाते की अपराधिनी हो। मेरी मौत तक तुमने अपने हाथ से एक गिलास पानी न दे सकी । तुमने यह भी कह दिया कि मैं सास ससुर की रोटी थापने नहीं आयी हूं जबकि तुम ससुराल में महीने भर भी नहीं रही।तुम मुझे और मेरे निरापद परिवार को जेल भेजवाने की साज़िश रचती रही सिर्फ इसलिए कि तुम पर विश्वास कर बिना किसी दहेज के तुमसे अपने बेटे रघु का ब्याह किया। हम लोग तो तुम्हारे बाप दुध्दरतन को इज्जतदार और शरीफ़ खानदान का समझते थे पर वह तो क्रिमिनल और लूटेरा निकला जो तुम्हारे सहयोग से अपने दामाद रघु को बन्दी बना लिया। तुम्हारी कोख से अपने नाती के जन्म की कीमत दस लाख रुपए अपने ही दामाद रघु से ठग लिया।

तुम तो बहुत खुश होगी पिपाशा क्योंकि मैं मर चुका हूं तुमने जीवन भर आंसू दिया है । तुम अपनी खुशी को दुगुनी करने के लिए मेरे अग्नि दाह संस्कार में उपस्थित होकर मेरे धूं धूं कर जलते हुए शरीर को देख कर खुशियां मना लेना।

हां जब पति की लूट, उत्पीडन और मेरी मौत के जश्न से तुम्हें फुर्सत मिले तो सोचना ,अगर तुम्हें तुम्हारा गुनाह कबूल हो तो माफी मांगकर परिवार में इज्जत के साथ लौट आना, तुम्हें तुम्हारा ठुकराया दर्जा वापस मिल जायेगा। ठीक है तुम अपने ठग मां बाप के साथ मेरी मौत का जश्न मनाओ। जश्न से जब फुर्सत मिले तो सोचना जब तुम्हारे बाप के साथ ऐसा हो गया तो क्या करेगा ?

मैं यह नहीं चाहता कि जिस अमानुषता की हद पिपाशा तुमने पार किया है ऐसा फिर कभी किसी परिवार में दोहराया जाये। पिपाशा अब तो तुम्हारे अमानुषता के सारे अरमान पूरे हो चुके हैं हो सके तो अब मानुषता की राह पकड़ लो, विवाहिता होने के ससुराल के प्रति अपना फर्ज पूरा करो अभी तक तुमने परिवार को बहुत बर्बाद किया है। दर्द दिया है।सम्भल जाओ। परिवार के सदस्यों का सम्मान करो। मुझे विश्वास है परिवार के सदस्य तुम्हें माफ़ कर देंगे।

परिवार के सभी सदस्यों को मालूम ही है कि मैं आजीवन मैं परिवार की तरक्की के लिए संघर्षरत रहा, मुझे कभी अपने सुखों की याद नहीं आई, इसके बाद भी किसी की कोई जरूरत पूरा करने में नाकामयाब रहा अथवा अन्य कोई शिक़ायत हो तो क्षमा करना।

रघु, शान्तनू वाटिका मेरे अजीज रहें हैं ,रघु, शान्तनू को मैं आंख,ठेहुना और वाटिका को धड़कन मानता रहा। बैजन्ती आजीवन साथ निभायी, बैजन्ती के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं। चाहता हूं कि बेटी वाटिका और पत्नी दाह संस्कार के वक्त मौजूद रहे । मुखाग्नि बेटे और बेटी तीनों मिलकर दें और सदैव संगठित रहे। बाकी कोई कर्मकांड ना करें। मेरे शव के अवशेष यानि राख बहते जल में प्रवाह के साथ मेरे खेत में छिड़क देना जिस खेत में मैंने बचपन से पसीना बहाया था । इस खेत में मेरे मां बाप के पांव पड़े थे, मैं समझता हूं कि वे निशान आज भी है, इसलिए इस माटी में सम्माहित होना चाहता हूं बस इतना ही और कोई कर्मकांड नहीं।

मुकुल के निर्देशानुसार दाह संस्कार के बाद दूसरा लिफाफा मि.कानन ने ही खोला जो चल-अचल सम्पत्ति के बंटवारे से सम्बंधित था। मुकुल ने लिखा था मेरी चल-अचल सम्पत्ति का पूरा अधिकार आजीवन बैजन्ती के पास रहेगा। इसमें किसी को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं होगा।

मेरी छोड़ी चल सम्पत्ति का पच्चीस प्रतिशत मेरी तरफ से वाटिका को उपहार देना है। शेष चल सम्पत्ति और अचल संपत्ति भी बैजन्ती के अधिकार क्षेत्र में रहेगा। बैजन्ती के जीवन पर्यन्त सम्पत्ति का बंटवारा नहीं होगा। चल सम्पत्ति से बैजन्ती वाटिका को उपहार दे देती रहेगी । बैजन्ती के नहीं रहने पर सम्पत्ति दोनों बेटों में बंटेगी पर वाटिका को पूरा सम्मान देना होगा क्योंकि रघु और शान्तनू मेरी विरासत के उत्तराधिकारी हैं, वैसे वाटिका भी बराबर की उतराधिकारी है परन्तु उसे सम्मान चाहिए। रघु और शान्तनू के साथ पिपाशा और श्रद्धा को वाटिका को पूरा सम्मान देना होगा। पिपाशा ने तो अभी तक अपमान ही किया है परन्तु वह अब से सभी का मान सम्मान रखे, मर्यादा में रहे और परिवार के सदस्यों का सम्मान करे तो बैजन्ती पिपाशा को परिवार के बहू का सम्मान पारिवारिक एवं सामाजिक रुप से दे सकती है जो मैं नहीं कर सका क्योंकि पिपाशा ने कभी न इज्जत की ना उचित सम्मान ही दिया नहीं ससुराल की मर्यादा का पालन किया। मेरे जीते जी तो परिवार की बागी बनी रही पति तक की दुर्दशा कर डाली अपने बाप को अमीर बनाने के लिए।

सभी सम्पत्ति की पावर आफ अटार्नी बैजन्ती के पास होगी और आजीवन मालिकाना हक़ भी बैजन्ती के पास पास होगा। जैसा कि मैंने पहले ही कहा है मेरी सभी अचल संपत्ति के बराबर के उत्तराधिकारी रघु और शान्तनू होंगे परन्तु बैजन्ती के दुनिया से रुखसत के बाद।

दुनिया से रुखसत होने के पहले रघु -पिपाशा, शान्तनू -श्रध्दा की सेवा सुश्रुषा के आधार पर किसी को कम किसी को अधिक हिस्सा लेने का अधिकार बैजन्ती को होगा । अगर दोनों बेटा बहू बैजन्ती की देखभाल नहीं करते हैं, अनादर और निराश्रित करते हैं तो पूरी सम्पत्ति बैजन्ती वाटिका को हस्तांतरित कर सकती हैं। मुझे अपने बेटों पर विश्वास है वे बैजन्ती को कोई तकलीफ़ नहीं होने देंगे।आप सभी सुखी ,खुश और सर्वसम्पन रहे। किसी को मेरी वज़ह से कोई तकलीफ़ हुई हो तो माफ़ करिएगा …… समाप्त।

मुकुल के वसीयतनामे का असर क्रान्तिकारी हुआ, परिवार की बागी पिपाशा के लिए अब परिवार और उसके सदस्य आदरणीय हो गये। वही ननद जिसकी इज्ज़त सरेआम सड़क पर उतारने और अपहरण करवाने की धमकी दे रही थी वहीं ननद वाटिका पिपाशा के लिए पूज्य हो गई। अपने लूटेरे मां -बाप का पिपाशा ने सदा के त्याग कर अपनी गृहस्थी को स्वर्णिम रंग देने में जुट गई।

श्रद्धा तो अच्छे संस्कारी परिवार से थी, परिवार के सदस्यों को उचित माना सम्मान देती,वह परिवार की चहेती तो पहले से थी। दोनों भाई रघु और शान्तनू समझदारी से रहते हुए तरक्की के पथ पर अग्रसर हो गये। लोग कहते वसीयत लिखो तो मुकुल जैसी।वाह रे वसीयतनामा।

नन्दलाल भारती

समाप्त

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