वसीयतनामा – नन्दलाल भारती ( भाग – 1 ) : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : सुबह मौन थी। सूरज की रोशनी पेड़ों के झुरमुटों से शनै शनै झर रही थी पर किसी को इस अद्भुत प्राकृतिक नजारे से कोई सरोकार न था क्योंकि

मुकुल के निष्प्राण शरीर को पुआल बिछा कर लेटा दिया गया था। सब की नजरें मुकुल के मृत शरीर पर टिकी थी। कुछ लोग जहां तहां खड़े या बैठे बस मुकुल के सम्मान में कसीदे पढ़ रहे थे। कसीदे पढ़ने वाले वे लोग भी थे जिन्हें मुकुल की आदमियत भरे सदाचार में खोट नज़र आती थी वे लोग मुकुल के विरोध में जैसे तलवारें खींचे रहते थे पर मुकुल को बारे बहुत निक -निक बताया रहे थे।

मुकुल के मरने पर कसीदे पढ़े जा रहे थे। यही लोग मुकुल के विरोधी थे, उनकी जबान से एक मीठे बोल सुनने को नहीं मिले थे वहीं लोग मुकुल की मौत पर प्रशंसा और दरियादिली के पुल बांध रहे थे।

काश ये लोग अपनी जबान से मुकुल के जीवन में दो मीठे शब्द बोल दिये हो तो मुकुल सुन भी लिये होते। मुकुल के निष्प्राण हो चुके शरीर के इर्द-गिर्द शहद चुपड़ी जबान से लोग अमृत वाणी की उल्टियां कर कर खुद को मुकुल का शुभचिंतक बनने की कोशिश कर रहे थे।

मानवतावादी मुकुल सामाजिक,शैक्षणिक रूप से पूरी तरह सम्पन्न और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। आज कुछ लोग मुकुल के योगदान को याद कर रहे थे। जैसे ही परिसर में कोई प्रवेश करता रोने चिल्लाने की लपटे तेज हो जाती थी।

मुकुल के परिवार में दो बेटे और एक बेटी थी जो अपने जीवन में कामयाब थे। बीमारी की खबर लगते ही रघु जो पेशे से इंजीनियर था एक बड़ी कम्पनी में कार्यरत था। मां बाप से पत्नी की चोरी छिपे फ़ोन पर बात कर लेता था।

रघु की पत्नी पिपाशा कलयुग की डायन थी। ब्याह के तुरंत बाद से ही उसने बूढ़े सास-ससुर को सिर के जू की तरह उठाकर बाहर फेंक दिया था।

रघु पिपाशा के मोहपाश में ऐसा फंसा था कि मां -बाप घर परिवार सब उसको दुश्मन लग रहे थे। सरल और सहज स्वभाव के धनी मां बाप की औलाद रघु भी छल-कपट से बहुत दूर था। लूटेरे मां बाप की बेटी पिपाशा के चक्रव्यूह में रघु बुरी फंसा हुआ था।

रघु की तनख्वाह पर ठग दुध्दरतन और उसकी बेटी पिपाशा का पहरा था और उसके आने जाने पर महिला उत्पीडन की आड़ में लूटेरा दुध्दरतन और उसकी हाफ माइण्ड बेटी पिपाशा की झूठी रिपोर्ट पर सास-ससुर और पत्नी पीड़ित रघु पर भी पुलिस का पहरा था। रघु को दफ्तर आने जाने की इजाजत थी। पत्नी, सास-ससुर और पुलिस की प्रताड़ना से कई बीमारियों का शिकार हो गया था।

रघु और पिपाशा की शादी के सालों बीत चुके थे,इनका बच्चा भी स्कूल जाने लगा था। इस बच्चे का बाप और मां दोनों ही रघु था। मां होकर भी मरे समान थी बच्चे को छाती का दूध कभी नहीं पिलायी ना डायपर बदली।सगी मां होकर भी पिपाशा सौतेली मां से बुरा बर्ताव बच्चे से कर रही थी।

रघु के सामने बच्चे को बुरी तरह से पिटती,रघु के नहीं रहने पर शैतान मां बाप की डायन बेटी पिपाशा बच्चे के साथ कैसा बर्ताव करती होगी ,सोच कर कलेजा मुंह को आ जाता था। रघु के मना करने पर डायन कहती मैं बदला ले रही हूं।

बच्चे के साथ मारपीट पर आपत्ति को भी डायन महिला उत्पीडन का मुद्दा बना कर पुलिस को फोन कर देती या खुद थाने पहुंच जाती। रघु पुलिस और डायन पिपाशा के लिए कामधेनु हो गया था जबकि खुद रोटी कपड़ा के लिए नस्तवान हो चुका था।

रघु के मां बाप हजारों किलोमीटर दूर बेटवा और पोता के गम में तड़प रहे थे। यही तड़प मुकुल और उनकी पत्नी बैजन्ती के जान की दुश्मन बन चुकी थी, आखिरकार मुकुल की जान चली भी गई।

इस खबर को पाकर अपराधिनी पिपाशा मुकुल के जनाजे में शामिल होने के लिए पैतृक गांव को खुशी खुशी प्रस्थान कर गयी, जबकि यही पिपाशा और उसके लूटेरे मां बाप दादा ससुर की मौत पर झांकने तक को नहीं हुए।

मुकुल की मौत पिपाशा की मन्नत जो पूरी हो चुकी थी, मुकुल की मौत डायन पिपाशा के मन्नत की पहली कड़ी थी क्योंकि अभी बैजन्ती की मौत तो बाकी थी।

मुकुल की मौत के पहले परिवार में की दुखद घटनाएं हुई पर न पिपाशा हाजिर हुई और ना रघु को हाजिर होने दी, रघु के मांता-पिता पिता से मिलने की ख्वाहिश का मर्दन पापिन पिपाशा पुलिस के सहयोग से करवा देती। डायन पिपाशा का मुकुल परिवार में आगमन ज्वालामुखी जैसा था।

शादी के सालों बाद पिपाशा दूसरी बार ससुराल आई थी वह भी अपनी मन्नत पूरी होने की खुशी में । वह घड़ियाली आंसू ऐसे बहा रही थी जैसे मुकुल के मरने का दुःख उसके अलावा और किसी को नहीं है। जीते जी तो तिल तिल दुःख दर्द दिया।

पिपाशा रह रह कर जोर जोर से रोने लगती और अचानक बेहोश होने का नाटक कर लेती। मय्यत में शामिल होने वाले सभी लोगों की नजरें पिपाशा की नौटंकी पर टिकी हुई थी। रघु का बेटा आदित्य सहित सभी नाती-पोते हृदयविदारक विलाप कर रहा था, आदित्य की दादा से पहली और आखिरी मुलाकात थी ‌।

बैजन्ती तो बेहोश पड़ी, वाटिका बेटी और श्रद्धा छोटी बहू का रो रोकर बुरा हाल था। श्रद्धा और शान्तनू मुकुल-बैजन्ती के केयर टेकर थे। बेटी को घर गृहस्थी से मौका मिलता पति की इजाजत लेकर बेटी के साथ मां बाप की सेवा सुश्रुषा में हाजिर हो जाती थी।

पिपाशा ब्याह कर आने के तुरंत बाद परिवार के विरूद्ध व्यवहार करने लगी,जेल भेजवाने की धमकियां, छोटी-छोटी बातों पर पुलिस बुलाने लगी। हाफ माइण्ड हाफ ब्लाइंड कहती मैं सास-ससुर के लिए रोटी थापने नहीं आई हूं।

दस दिन में नवविवाहिता पिपाशा ने सास को रक्त के आंसू दे दिये इतना ही नहीं परिवार में वैमनस्यता की दीवार खड़ी कर दी थी।चोर मां बाप की बेटी पिपाशा ने परिवार को पूरी तरह विखण्डित करने की कोशिश की ।

मुकुल की पारिवारिक एकता और समृद्धि का पिपाशा और उसके लूटेरे बाप ने जनाजा निकाल दिया था,आज खुद मुकुल का जनाजा निकलने की तैयारी थी। पारिवारिक जीवन की खुशियां पिपाशा ने तो पहले ही छीन ली थी ।

मुकुल का जीवन संघर्षमय था। ग़रीबी अभाव में पले बढ़े और पढ़ें मुकुल ने परिवार के उज्जवल भविष्य के लिए अपने सुख की तिलांजलि दे दिया था, यही हाल बैजन्ती का भी था।नश मुकुल को नौकरी के दौरान विजय प्रताप सिंघ,डी.पी.सिंघ,ए.पी.सिंघ, द्वारका प्रसाद जुआड,रजिन्दर कुमार झैन,निरोध कुमार साहु ने तरक्की से वंचित करने के सारे प्रयास किए,सीआर खराब करते रहे और सफल भी रहे।

निरोध कुमार साहु ने शोषण की सारी हदें पार कर दिया था,उस अमानुष ने तरक्की रोकने की पूरी कोशिश किया,सीआर बुरी तरह खराब कर दिया था, इल्जाम भी लगाये,इन सब के बाद भी नरपिशाच का पेट नहीं भरा तो सीआर के ओवरऑल कमेंट में वेरी लेजी आफिसर लिख दिया था।

परिवार की खुशी और बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए आंसू पी-पीकर नौकरी किया। पिपाशा बड़ी बहू ने तो जीते जी नरक का दुःख दिया। मुझे मालूम है कि मेरी मौत पर पिपाशा रुदाली बन जायेगी।

क्रिमिनल बैकग्राउंड बाप दूध्द रत्न की बेटी पिपाशा इकलौती बड़ी ननद वाटिका की इज्ज़त सड़क पर उतारने की धमकी देती। अपहरण करवाने तक की धमकी दे डाली थी। खैर क्रिमिनल ठग लूटेरे बाप की औलाद और क्या कर सकती थी।

पिपाशा ने परिवार की इज्जत पर कालिख पोतकर पति रघु को वशीभूत कर पूरी तरह से लूट कर बाप का आशियाना संवारने में मशगूल थी। रघु को जब चेत आया तो पिपाशा के बाप ने बंदूक की नोक पर आतंकित किया पिपाशा की मां जादू टोना और वशीभूत करने वाले बाबाओ का सहारा लिया ।

पिपाशा दहेज के मामले के बहाने पुलिस की भरपूर मदद लेती । सरल और सहज मुकुल ने तो अपने लाडले बेटे रघु की शादी बिना किसी दहेज के किया था ताकि दहेज के विरुद्ध उदाहरण बन सके पर पिपाशा ने पूरा मान -सम्मान तहस नहस कर रघु की पूरी कमाई लूटेरे बाप की झोली में डालने पर अमादा थी।

रघु के साथ के लड़के खुद की कोठी और कार के मालिक बन चुके थे पर रघु के पास खुद की एक मोपेड के सिवाय और कुछ न था। रहता भी कैसे लूटेरे बाप की बेटी पिपाशा तनख्वाह आते ही छिन जो लेती थी।बेटे की इस दशा का मुकुल को घोर कष्ट था।बेचारे रघु को पिपाशा न घर का छोड़ी थी ना घाट का। 

शेष अगले भाग मे……

वसीयतनामा – ( भाग – 2 )

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