आत्मसम्मान सर्वोपरि  –  कविता भड़ाना

सुबह से चाय के इंतजार में बैठे “रामदयाल जी” आज खुद को बेहद लाचार सा महसूस कर रहे है।एक समय सरकारी अफसर रहे रामदयाल जी की सुबह नौकरों की फौज द्वारा उनके एक एक काम को करने के लिए तत्पर रहने से लेकर, पत्नी “राधिका”के निर्देशों में बने तरह तरह के स्वादिष्ट पकवानों से होती थी।अपने गुरुर में रहने और किसी को कोई अहमियत नहीं देने वाले रामदयाल रिटायरमेंट के बाद भी शानदार तरीके से रहते थे। परिवार में एक बेटे “अंशुल”, पुत्रवधू “नेहा”और बीवी राधिका ही है। परिवार को कभी पर्याप्त समय दे ही नहीं पाए, समय की कमी के कारण नहीं बल्कि काम के बाद बचे हुए समय में भी सिर्फ अपने दोस्तो और क्लब में व्यस्त रहते।

पत्नी राधिका एक कम पढ़ी लिखी महिला थी। परंतु बहुत ही गुणवान और धार्मिक प्रवृत्ति की होने के कारण घर की, बेटे की जिम्मेदारी बखूबी निभा रहीं थी। परंतु रामदयाल यही सोचते की सब उनके अफसर होने और उनके कमाए पैसों के कारण ही है, पत्नी के गुण कभी दिखाई ही नहीं दिए।बेटे की तरफ से भी बिल्कुल बेफिक्र रहते, रोब और गुस्सा तो इतना होता की राधिका के अलावा कोई उनके सामने आने की हिम्मत भी नहीं कर पाता था।

बेटे की शादी के बाद भी उनके तेवर वैसे के वैसे ही रहे, हालाकि नेहा(पुत्रवधु) अपने पति और सास की तरह न तो अपने ससुर से डरती थी और न ही दबती थी क्योंकि नेहा खुद भी एक कॉलेज में प्रोफेसर थी।सब कुछ ठीक ही चल रहा था पर दिक्कत आई रामदयाल के रिटायरमेंट के बाद, पूरा दिन घर पर होने से, वो जब देखो तब सबके कामों में बेवजह कमी निकालते ही रहते , गुस्सा तो नाक पर रखा रहता जिससे घर के सदस्यों से लेकर नौकरों तक का चैन सुकून खो सा गया था।



दोस्तों का जमघट भी हर समय घर में लगा रहता , उनके सामने भी किसी को भी अपमानित कर देते थे। खेर राधिका सब संभाल लेती पर आखिर कब तक? बूढ़ा होता शरीर, पति के तानों और अपमान को जादा दिन नहीं सह पाई और एक दिन इस दुनिया से विदा ले ली। राधिका के जाने के बाद भी रामदयाल के व्यवहार में कोई खास परिवर्तन नहीं आया। नौकर भी कब तक सुनते वो भी अब उनके कामों को अनदेखा करने लगे, बेटा बहु तो बहुत पहले से ही उनसे कोई मतलब नहीं रखते थे और अब तो बिल्कुल ध्यान ही नही देते ना दवाई का ना खाने पीने का,ये दूरियां भी रामदयाल की खुद की ही बनाई हुई थी तो किसी से कहते भी क्या।।।।।

कल रात से राधिका की बहुत याद आ रही थी उन्हें,आज  महसूस हो रहा था की उनकी पत्नी कैसे एक ढाल की तरह रही हमेशा,उनके इतने अपमानित करने, नीचा दिखाने के बाद भी हमेशा अपने पति की इज्जत की, सम्मान दिया ।और शायद इतने सालो तक रामदयाल को जो इज्जत मिली वो उनकी पत्नी के कारण ही संभव हो पाया था।जब तक जीवित रही अपना “आत्मसम्मान” खोकर पति का सम्मान बनाए रखा।

आज अपने रूखे और झूठे रुतबे की वजह से ही इस उमर में अकेले पड़ गए है, परवाह करने वाला कोई नहीं है अब।यार दोस्त भी अब नहीं आते क्योंकि पहले की तरह उनका सत्कार करने वाला इस घर में कोई नही था। रूपये पैसे की कोई कमी नहीं है पर कभी किसी को सम्मान नही देने वाला आज सम्मान की अहमियत समझ रहा है। पैसे से सिर्फ रुतबा मिलता है सम्मान नही।

एक स्त्री अपने “आत्मसम्मान”

 के लिए कुछ भी कर सकती है। परंतु पति के “आत्मसम्मान” को बनाने में भी पत्नी का समान योगदान होता है।

#आत्मसम्मान 

 स्वरचित काल्पनिक

 कविता भड़ाना

 

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