“खूनी चिट्टी” – दीपा साहू “प्रकृति”

तुझे जब देखा पहली दफा, उसी वक़्त मुहब्बत का एहसास हुआ था काव्या के आँखो में आंसुओं का नामोनिशान नहीं था।बस नज़र भर उस तिरंगे से लिपटे ताबूत को देख रही| तभी पीछे से जवान आए,और कहा-कमांडो लीडर आहान अख़्तर ने अपने आख़िरी साँसों में ये लिफ़ाफ़े आपके नाम दिए थे, मैम इसे रखें।    काँपते … Read more

प्रण अपने अपने – प्रतिभा गुप्ता 

नायरा के विवाह के पांच वर्ष बाद छोटी बेटी मायरा के विवाह की बात उठी तो उसने पहले पढाई पूरी कर आत्मनिर्भर बनने की जिद ठान ली. माता पिता को उसकी इस जिद को मानने के लिए मायरा ने किसी तरह राजी कर भी लिया.अब मायरा अपनी मंजिल को पाने के लिए पूरी तरह जुट … Read more

कर्ज़ – गरिमा जैन

रात में जंगल में हल्की सी हलचल थी।। वहाँ से जाते हुए एक राहगीर ने कुछ लोगों को देखा तो वह रुक  गया ।। उसे किसी अनहोनी की आशंका हुई ।। वहां तीन  कम उम्र के लड़के थे और एक अधेड़ उम्र का आदमी ।। वह चारों किसी गहन बात पर चर्चा कर रहे थे … Read more

 वसीयत – अनुपमा 

रेलवे स्टेशन पर साक्षी बेंच पर बैठी सतना जाने वाली ट्रेन का इंतजार कर रही थी , बहुत मौसम खराब था ,बारिश बहुत तेज थी , ट्रेन इस वजह से लेट होती जा रही थी । साक्षी की मां ने सभी को बुलाया था , सारे भाई बहन आ रहे थे , बड़े भैया भी … Read more

बुर्क़े वाली – दीपा शाहु

आरज़ू को मेरी तुनें जाना ही नहीं बस खुद से तुनें फैसला कर लिया एक बार सुन तो लेते अगर मेरी तमन्ना क्या थी….. आरजू  जो हमेशा बुर्के में रहा करती थी, उसके चेहरे को कभी किसी बाहर वालो ने नहीं देखा, उसकी सहेली “चाहत” हमेशा उसके साथ रहती थी,एक दिन एक लड़के को आरजू … Read more

खामोश वक़्त – भगवती सक्सेना गौड़

अभी दो ही दिन पहले माधुरी को उसके बेटे बहू इस सारी सुख सुविधायों से लैश सीनियर सिटीजन वृद्धाश्रम में छोड़ गए थे। बेटा आकाश ने पहले से नही बताया, कार से रास्ता दो घंटे की दूरी पर था, उसी बीच धीरे धीरे सब समझाता रहा। समान डिक्की में रखते हुए देखकर, माधुरी सोच रही … Read more

बड़े भाई साहब – सरला मेहता

मिश्रा जी कोर्ट में क्लर्क हैं। शहर में उनकी निष्ठा व ईमानदारी के बड़े चर्चे हैं। किसी का भी कुछ काम हो मिश्रा तैयार रहते हैं। ना कहना उन्होंने शायद सीखा ही नहीं।जज साहब से लेकर चपरासी तक सभी उनकी इज्ज़त करते हैं। कुछ पुश्तेनी जमीन भी है। फ़सल आदि की मदद से गृहस्थी की … Read more

जीवन संध्या – मधु श्री

दिसंबर का महीना था,सुधा घर का सारा काम निपटा कर धूप में आकर बैठ गई। आज बालकनी में इतनी धूप नहीं थी जितनी तेज हवा चल रही थी। हल्की हल्की कोहरे की धुंध भी थी फिर भी धूप का हल्का सा सेंक अच्छा लग रहा था।मनोज को आफिस भेज कर सुधा थोड़ा निश्चिन्त महसूस कर … Read more

वापसी (रिश्तों की) भाग–3 – रचना कंडवाल

पिछले भाग में आपने पढ़ा कि बरखा सुनिधि को उसके पापा के बारे में बताना चाहती है। और अपनी मां को रूम से बाहर जाने को कहती है अब आगे– बैठो, सुनिधि को कह कर बरखा हारे हुए जुआरी की तरह बेड पर बैठ गई। सुनिधि काऊच पर बैठी हुई थी। तुम्हारे पापा के बारे … Read more

बड़े भाई सा पिता या पिता सा बड़ा भाई – लतिका श्रीवास्तव

ट्रेन पूरी रफ्तार से चली जा रही थी….पर अजय का अधीर मन तो जैसे आनंद के पास वैसे ही चला गया था..कल रात में ही आनंद का फोन आया” भैया ,आप तत्काल यहां आ जाओ ,आपकी ही जरूरत है आप नहीं आओगे तो मेरा क्या होगा…”अजय तो घबरा ही गया “क्या बात है बेटा ?तुमका … Read more

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