वसीयत – अनुपमा 

रेलवे स्टेशन पर साक्षी बेंच पर बैठी सतना जाने वाली ट्रेन का इंतजार कर रही थी , बहुत मौसम खराब था ,बारिश बहुत तेज थी , ट्रेन इस वजह से लेट होती जा रही थी ।

साक्षी की मां ने सभी को बुलाया था , सारे भाई बहन आ रहे थे , बड़े भैया भी आ रहे थे , मां ने कहा तो था की पिता जी की बरसी पर मंदिर मैं पूजा रखवाई है , पर उनकी आवाज से ही समझ आ रहा था की जरूर कुछ और ही बात है , एक बात और की अगर बड़े भैया आ रहे है तो जरूर कोई बात ही होगी । 

साक्षी जब सतना पहुंची तब तब तक सभी लोग आ चुके थे और घर मैं मां सभी कुछ व्यवस्थित करने मैं लगी हुई थी । भाभी करवाना चाहती थी सबकुछ पर ये कह कर वो कुछ नहीं कर रही थी की यहां का उन्हे कुछ मालूम नही है , सो मां ही सारी व्यवस्थाओं मैं अकेली लगी थी और साथ मैं थे उनके संस्था वाले ।

दरअसल मां अकेले रहती थी , कोई भाई के यहां वो जाती नही थी और सबकी अपनी नौकरी थी और परिवार था तो उनके साथ कोई यहां रुकता नही था , मां खुद को व्यस्त रखने के लिए एक संस्था से जुड़ गई थी और गरीब बच्चों और महिलाओं को पढ़ाने और काम सिखाया करती थी , वो कभी अकेले भी नही होती थी और उनका मन भी लग जाता था ।


सभी लोग बहुत सालों बाद मिल रहे थे , बातों ही बातों मैं कब समय बीत गया कुछ पता ही नही चला , और सारा काम मां के संस्था वालों की मदद से बहुत अच्छे से निपट गया था , सभी मां का बहुत आदर करते थे , ऐसा लग रहा था की वो लोग मां को हमसे बेहतर जानते है , मां के बोलने के पहले ही सारे काम हो जा रहे थे । मैं यह सब देख कर बहुत निश्चित सा महसूस कर रही थी ।

शाम का समय था मां ने सभी को अपने कमरे मैं बुलवाया हुआ था , और मुझे सभी के लिए चाय बनाने को बोला था , मैं सबसे छोटी थी घर मैं , और जब पिता जी गुजरे तब दस साल की थी बस , मां ने मुझे अकेले ही पाला था , बड़े भैया तब तक नौकरी करने लगे थे और शादी भी उनकी अगले महीने होने वाली थी ।

मैं चाय बना कर सभी के लिए कमरे मैं पहुंची तो मां ने मुझे भी बैठने के लिए कहा और उन्होंने बोलना शुरू किया , सभी को संबोधित करते हुए की सभी को इस बार क्यों बुलाया गया है क्योंकि मां तो पिता जी की बरसी हर साल ही करती थी , पर सभी अपने अपने व्यस्तता बता कर आते नही थे 

मां ने कहा की उन्होंने अपनी वसीयत बनवा ली है और वो सभी को बताना चाहती है की उन्होंने किसको क्या दिया है जिससे बाद मैं कोई भी किसी के लिए दुर्भावना मन मैं न रखे और अगर बना कर चल सके या जो भी जोड़ सके तो सबको साथ लेकर चले जिससे परिवार बिखरे नही । 

मां ने बोला की बड़े भैया के लिए उन्होंने पांच लाख और बाकी दो भाइयों के लिए उन्होंने दस दस लाख रुपए लिखवाए है , साथ ही हम दोनो बहनों के लिए उन्होंने पंद्रह लाख रुपए रखे है । और उनकी जो भी ज्वैलरी है वो आने वाली बच्चों की बहुओं को बराबर साथ ही सभी बेटे और बेटियों की बच्चियों मैं बराबर बराबर बांट दी जाएगी । साथ ही अपनी संस्था के नाम भी उन्होंने बीस लाख रुपए रखे थे जो वहां की बच्चियों के शादी के काम आने वाले थे ।

इतना सुनते ही बड़े भैया बिफर पड़े , किसी ने भी मां से वाद प्रतिवाद नही किया पर बड़े भैया गुस्से मैं पैर पटकते हुए कमरे से चले गए ।सभी उनका ये रूप देख कर स्तब्ध थे ।


बड़े भैया की जब शादी हुई थी हम सभी भाई बहन बहुत छोटे थे , उनकी नौकरी भी लग चुकी थी और पिता जी का स्वर्गवास कुछ समय पहले ही हुआ था , परंतु बड़े भैया शादी के बाद अपने परिवार मैं ऐसे रमे की उन्हे कभी भी घर की खबर लेने की सुधबुध ही नही रही । कभी मां उन्हे फोन करती भी तो हमेशा काम या किसी और चीज का बहाना करके वो अपनी जिम्मेदारियों से पीछा छुड़ा लेते और जब भैया नही किया तो भाभी से भी क्या उम्मीद करती मां , वो खुद ही सबकुछ संभालती रही अकेले ।

अचानक से भैया भाभी को लेकर अपने सामान के साथ बाहर बरामदे मैं आ खड़े हुए और कहने लगे की मां आपने यहां हमे  अपमान करने के लिए बुलाया था , बड़े बेटे के साथ कोई इस तरह का व्यवहार करता है क्या , हमे आपसे ये भी नही चाहिए इस तरह का व्यवहार तो नौकरों के साथ भी नही करता है कोई , आपने तो परायों को अपने बड़े बेटे से ज्यादा मान दिया है मां।

मां कभी भी ऊंची आवाज मैं नही बोली थी हमने कभी नही सुना था । पर उस दिन मां ने तेज आवाज मैं बड़े भैया को बुलाया और उनसे कहा बेटा जब तुम्हारी इस घर को , तुम्हारे भाई बहनों को तुम्हारी जरूरत थी तब तुमने भी तो हम सभी को पराया मान रखा था , हमने तो कभी शिकायत नहीं की , और तुम सबसे पहले नौकरी पर लगे हो इस परिवार मैं तुम्हारी गृहस्थी पक चुकी है मेरे बाकी बच्चों की तुलना मैं , इन भाई बहनों से तुम कह सकते थे उन्हे एहसास करा सकते थे की पिता जी नही है तो क्या हुआ बड़ा भाई भी तो पिता के समान ही होता है ।

तुम्हारी जैसे मर्जी हो वो तुम कर सकते हो बृज , पर मेरा फैसला अटल है , अगर तुम्हे आपत्ति है तो तुम जा सकते हो ।

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