बुर्क़े वाली – दीपा शाहु

आरज़ू को मेरी तुनें जाना ही नहीं

बस खुद से तुनें फैसला कर लिया

एक बार सुन तो लेते अगर

मेरी तमन्ना क्या थी…..

आरजू  जो हमेशा बुर्के में रहा करती थी,

उसके चेहरे को कभी किसी बाहर वालो ने नहीं देखा, उसकी सहेली “चाहत” हमेशा उसके साथ रहती थी,एक दिन एक लड़के को आरजू बहुत ही प्यारी लगने लगी वो उसकी सहेली को जानता था, चाहत के साथ साथ वो आरजू से भी बाते करने लग गया, पर आरजू हमेशा नज़र झुकार कर ही थोड़ा संकोच से ही बात किया करती जितनी ज़रूरत उतनी ही बाते,कई बार खुद से भी  “अमर “से बाते किया करती थी।पर प्रोफेशनल बाते।थोड़ा हसी मज़ाक बस।

       उसकी सादगी उसका भोलापन अमर को उसकी  झुकी आँखे अपनी  ओर खींचने लगी।  अमर बहुत ही शरीफ लड़का हैं, बहुत ही तमीज़ से पेश आया करता हैं,ये आरजू जानती है इसलिये वो उससे बात भी करती हैं।

                कुछ दिनों से अमर और आरजू की मुलाकात नही हुई, अमर को आरजू की याद आने लगी,अमर आरजू से मिलने चला आया चाहत के घर, चाहत अपने काम मे लगी थी,

अमर  से आरजू ने कहा- और बताए  जनाब के क्या हाल चाल हैं,


अमर बोल पड़ा – आपकी याद आ रही थी।

आरजू ने पूछा-  क्यों।

अमर बोला- बस ऐसे ही_  आप बहुत अच्छी हो सबसे अलग,सबसे प्यारी।अभी भी उसके चेहरे पर बुरका लगा हुआ था।

        आरजू को थोड़ा अजीब सा लगा ये क्या था,उसने कभी ऐसा कुछ तो ,,,,

आरजू को लगा इतना अच्छा इंसान है इसे सच का पता नई इसे किसी भी धोखे में नई रखना चाहिए। इसलिये

आरजू ने कहा-

अमर आप मुझसे ऐसे मत बोलिये-आपका समय बर्बाद  हो जयेगा।

अमर को बात बुरी लग गई  बोला- तुम्हे किस बात का घमंड हैं, और वो नाराज़ होके वँहा से चला गया,आरजू ने चाहत को बताया ,बहुत कोशिश की सच बताने की पर उसने सुनी ही नही।

    कुछ दिनों बाद चाहत के साथ अचानक आरजू को बिना बुरके के अमर ने देख लिया तो पता  चला कि उसका चेहरा बुरी तरह से खराब था, तब उसको अपनी बातों पर गुस्सा आया कि आखिर उसने क्या कह दिया। पर वापस जाकर उससे मिल नही पाया, वो उसी दिन वँहा से जा रही थी।

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