जिन्दगी बदल गयी  -पुष्पा पाण्डेय

सुबह चाय के साथ हाथ में अखबार लेते ही शर्मा जी बोले। “राधा! देखो तो ये कंचन जी की तस्वीर है?” ” अरे हाँ, ये तो कंचन ही है।” “इन्हें ‘राष्ट्रीय  साहित्य-रत्न’ पुरस्कार मिला है। मुख्य पृष्ठ पर ही तस्वीर छपी है। अब तुम्हारी बात नहीं होती है उनसे?” ” यहाँ आने पर  कुछ दिन … Read more

फैसला – रचना कंडवाल

शाम के चार बज रहे थे।  लड़का झील के किनारे बैठ कर किसी  का इंतजार कर रहा था।कभी खड़ा होता, कभी बैठ जाता। उसके अंदर अजीब सी बेचैनी थी। आसपास का मनोरम वातावरण भी उसे अपनी तरफ खींचने में असमर्थ था।उसी बेचैनी में वह झील में पत्थर मारकर पानी की खामोशी तोड़ रहा था। तभी … Read more

तुम शक्ति हो -रंजना बरियार

मेडिकल में दाख़िला हेतु आज फिर अनन्या का टेस्ट है..वो दो सालों से टेस्ट दे रही है..अब तक दसों टेस्ट दे चुकी है! “माँ मुझे नहीं जाना है क्या फ़ायदा टेस्ट देने का?” निराशा में वो अपनी माँ, सुनैना से कहती है। “नहीं बेटे तू जा एक प्रयास और कर ले!” सुनैना ने कहा। एक … Read more

पिया बसंती – रश्मि स्थापक

कादम्बिनी ने अपनी ड्राइंग रूम की खिड़की से बाहर देखा …पीले फूलों की बहार आई हुई थी,उसने कैलेंडर पर निगाह डाली बस दो दिन बचे है बसंत पंचमी को…तभी हवा का वासंती झोंका उसे जैसे बाहर गॉर्डन तक ले आया…सिहराने वाली ये वही तो हवा है जो उसके बीसवें वसंत को मदहोश किए जाती थी…तभी … Read more

भेदभाव -ऋतु अग्रवाल

 बारहवीं की परीक्षा के बाद पूर्वी अपनी नानी के यहाँ छुट्टियाँ बिताने चली गई। दो मामा,मामियाँ, उनके बच्चे और नानी भरा पूरा परिवार था। पूर्वी का परिवार शहर में रहता था जबकि नानी का परिवार एक छोटे से कस्बे में था।      शहर में पूर्वी एक  मस्तमौला जीवन बिताती थी पर नानी के यहाँ माहौल थोड़ा … Read more

छोटी बहन – भगवती सक्सेना गौड़

मैं घर की सबसे छोटी प्यारी सी बेटी रही, आज भी मायके के नाम पर, शब्द उच्चारण करते ही, एक सकारात्मक दुनिया का आभास होता है। समय धीरे धीरे सरकता रहा, सब बहनों की शादी हो गयी, घर मे रह गए, मैं और मेरा छोटा भाई, और मेरी ममतामयी मम्मी। भाई से मेरा रिश्ता, दोस्त … Read more

सफ़र पीहर का  – पूनम वर्मा

सुबह आँख खुली तो सामने तांबे-सा लाल  सूरज अपनी आँखें खोल रहा था । यही वक्त था जब उसकी आँख से आँख मिलाई जा सकती थी । हमारी नज़रें मिलीं भी । कुछ जाना-पहचाना-सा लगा सूरज । आज सूर्योदय देखकर मुझे अपना बचपन याद आने लगा । इतने करीब से सूरज को तभी देखा था … Read more

दुल्हा बिकता है -मीनू जायसवाल

आज जो मैं लिखने जा रही हूं, वो एक सामाजिक कुरीति हैं                         “दुल्हा बिकता है” जी हां जनाब दुल्हा बिकता है अच्छा खरीदार होना चाहिए…. अब आप सब सोच रहे होंगे कि आज मुझे क्या हो गया है मैं ऐसा क्यों कह रही हूं, तो सुनिए जनाब कभी-कभी अपने ही आसपास देखने को मिल जाता … Read more

कोहिनूर – सुनीता मिश्रा

मेरे कॉल बेल बजाते ही दरवाजा खुला,दोस्त ने ही दरवाजा खोला,देखते ही बोला”आओ ,अंदर आओ।बड़े दिनो बाद आना हुआ।कुछ काम होगा।बिना काम के तो तुम आते ही नहीं “ अंदर आ,सोफे पर बैठ ,मैने बहुत संकोच के साथ कहा”याद है,करीब छह,सात,महिने पहिले तुम और भाभी जी मेरे घर आये थे।भाभी जी , शरत चंद का … Read more

फकीर – विनोद सिन्हा “सुदामा”

ऐसा कोई दिन नहीं होता था कि उस मस्जिद वाली गली से नहीं गुजरती थी मैं… मेरे ऑफिस का रास्ता उसी गली से होकर गुजरता था और थोड़ा नजदीक भी पड़ता था इसलिए ऑफिस जाने के लिए अमूमन उसी रास्ते का उपयोग करती थी .. मेरा रोज़ का आना जाना था इसलिए..गली के बहुत से … Read more

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