भेदभाव -ऋतु अग्रवाल

 बारहवीं की परीक्षा के बाद पूर्वी अपनी नानी के यहाँ छुट्टियाँ बिताने चली गई। दो मामा,मामियाँ, उनके बच्चे और नानी भरा पूरा परिवार था। पूर्वी का परिवार शहर में रहता था जबकि नानी का परिवार एक छोटे से कस्बे में था।

     शहर में पूर्वी एक  मस्तमौला जीवन बिताती थी पर नानी के यहाँ माहौल थोड़ा अलग था। कपड़ों से लेकर उठने बैठने,हँसने बोलने सबके कुछ नियम निर्धारित थे। पूर्वी को यह सब बड़ा अजीब लगता था।

    पूर्वी को नानी के यहाँ आए लगभग एक सप्ताह हो चुका था। पूर्वी अक्सर देखती कि घर का सारा काम सिर्फ दोनों मामियाँ करती। दोनों मामा अपनी अपनी दुकानों पर जाने से पहले और आने के बाद या तो आराम करते या फिर नानी के पास बैठ कर बातें करते रहते।

   नानी काफी बुजुर्ग थीं इसलिए वह किसी काम में हाथ नहीं बँटा पाती थीं। पूर्वी की सिर्फ एक ही ममेरी बहन थी जोकि बहुत छोटी थी इसलिए उसे कोई छोटा मोटा काम ही बताया जाता था।

    दोनों मामा के लड़के काफी बड़े थे पर वो दोनों पढ़ाई के अलावा अपना बाकी समय खेलने कूदने में ही व्यतीत किया करते थे। पूर्वी अक्सर उनसे कहती कि थोड़ा-बहुत अपनी मम्मी की मदद कर दिया करो।

   इस पर मामा के लड़के हँसने लगते,” हम तो लड़के हैं और लड़के घर के काम नहीं करते। नानी भी बिगड़ जाती,” ये छोरी तो पता ना कैसी कैसी बातें करे।भला मरद भी कभी रसोई में काम करे हैं।”

  पूर्वी ने दो चार बार समझाना चाहा पर कोई उसकी बात समझना ही नहीं चाहता था। मामियों ने कहा भी कि पूर्वी तू रहने दे। हम कर लेंगे क्योंकि यहाँ कस्बे में औरतों की तकलीफ के बारे में कोई नहीं सोचता।


   तब पूर्वी ने अपने मम्मी पापा से बात की तो मम्मी ने कहा कि बेटा, वो लोग नहीं समझेंगे। वहाँ का कल्चर ऐसा ही है पर पापा के सुझाव को सुनकर पूर्वी की आँखें चमक उठीं।

     तीसरे दिन पापा, मम्मी और पूर्वी का छोटा भाई राहुल गाँव आ गए। नानी के यहाँ सब उन्हें देखकर बहुत खुश हुए। सबका खूब स्वागत हुआ। अगले दिन पापा ने एलान कर दिया कि आज का नाश्ता मैं,राहुल और पूर्वी बनायेंगे। यह सुनकर नानी चौंक गई और बोली कि ये कैसे हो सकता है? आप मेहमान हो और ये तो औरतों के काम हैं।

   इस पर पापा ने उन्हें समझाया कि अम्मा, आज के जमाने में औरतों और मर्दों के कामों में कोई भेद नहीं होता। घर में जितने भी लोग हों,सब सहूलियत के हिसाब से सहयोग कर दें तो औरतों को भी थोड़ा आराम मिल जाए।

   और जो आपके बेटे यहाँ आपकी हाँ में हाँ मिला रहे हैं,शहर आने पर मुझे आपकी बेटी की मदद करते देखकर बहुत तारीफ करते हैं। नानी ने कहा, “क्यों रे! तुमने तो मुझे कभी नहीं बताया।”

    तब बड़े मामा ने कहा कि अम्मा तुम्हें क्या बताते? तुम नाराज हो जाती। नानी बोली,”पर हमारे जमाने में तो….” तब पापा ने कहा,”अम्मा आपके जमाने की बात अलग है ।समय के साथ हमें बदलना चाहिए।आप देखिए कि अगर  बच्चे और पुरूष घर की औरतों की मदद कर देंगे तो उन्हें भी थोड़ा आराम मिल जाएगा।”

   तब नानी ने अपनी बहुओं की तरफ देखा। उनकी भरी आँखें देखकर नानी समझ गई। फिर नानी ने कहा कि चलो ठीक है। आज से मैं लड़के लड़की के काम का भेद नहीं करूँगी।जो बात पूर्वी नानी को कहकर नहीं समझा पा रही थी,वह बात  पापा ने प्रत्यक्ष करके  नानी को समझा दी।

स्वरचित

ऋतु अग्रवाल

मेरठ

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