सुखी बुढ़ापा -गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

शशिकांत जी पार्क से सैर करके वापस आए तो देखा कि उनकी माताजी आंगन में कुर्सी पर बैठी है। उन्होंने अपनी माता जी के चरण स्पर्श किए और उन्ही के पास दूसरी कुर्सी खिसका कर बैठ गए और उनका हाल चाल पूछने लगे। वे लगभग प्रतिदिन ऐसाही करते थे। तभी बच्चों की स्कूल वैन उन्हेंलेने आ गई। शशिकांत जी के तीनबेटे थे। राघव, केशव और अनादि। राघव और केशव 6 साल के जुड़वा भाई थे और अनादि 4साल का था। 

वैन वाला आवाज लगा रहा था लेकिन बच्चे बाहर आ ही नहीं रहे थे। शशिकांत जी तुरंत अंदर गए और देखा कि तीनों बच्चे अभी तक सो रहे हैं और साथ ही उनकी पत्नी सुलेखा भी सो रही है। वह हैरान हो गए क्योंकि सुलेखा ने ऐसा कभी नहींकिया था। वे बाहर आए और वैन वाले से कहा-“आप जाओ, बच्चों को मैं स्कूल छोड़ दूंगा।”  वैन चली गई। 

शशिकांत ने अंदर जाकर बच्चों को जगाया। तीनोंबच्चे उठ गए लेकिन सुलेखा अभीभी सो रही थी। शशिकांत को लगा कि शायद सुलेखा की तबीयत खराब हो गई है इसीलिए वह सो रही है। उन्होंने तुरंत अपने पड़ोसमें रहनेवाले अपने दोस्त चड्ढा साहब, जो कि डॉक्टर भी थे उन्हें बुलाया और सुलेखा का चेकअप करने के लिए कहा। चड्ढा साहब ने चेक करके बताया कि लगभग आधी रात को ही उनकी मृत्यु हो चुकी है। 

     शशिकांतको अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ।”अच्छी भली तो सोई थी, ऐसे कैसे हमें छोड़कर जा सकती है, चड्ढा साहब प्लीज दोबारा चेक कीजिए। हो सकता है आपसे कोई कोई भूल हो गईहो। नहीं नहीं, हम ऐसा करते हैं हम इस अस्पतालले जाते हैं आप एंबुलेंस बुलवाइए।” 

चड्ढा साहब अपने दोस्तके मन की हालत अच्छी तरह समझ रहेथे।  उन्होंने तुरंत एंबुलेंस बुलवाई और सुलेखा को अस्पताल ले गए। वहां पर डॉक्टर गुप्ता ने भी उन्हें मृत घोषित कर दिया। 

शशिकांत पर मानो आफत टूट पड़ी। माताजी भी दहाड़ मार कर रोने लगी। तीन छोटे-छोटे बच्चे अब कौन संभालेगा। शशिकांत और उनकी मां की आंखों के सामने सुलेखा का मुस्कुराता चेहरा घूम रहाथा। माताजी रो रो कर कह रही थी -“हे भगवान! तू अच्छे लोगों कोइतनी जल्दी अपने पासक्यों बुला लेता है। कितनी अच्छी बहू थी मेरी। कितना ध्यान रखती थी मेरा। अपने हाथ से समय पर दवाइयां निकाल कर देती थी। नाश्ता खाना सब कुछ समय पर देती थी। मेरा बहुत सम्मान करती थी।।” 

      लेकिन होनीके आगे किसकी चली है। बच्चे और बड़े सभी रो-रो कर और फिर धैर्य धर कर बैठ गए। माताजी ने बच्चों की ज़िम्मेदारी संभाल ली। कुछ समय बाद मौका देखकर उन्होंने शशिकांत को फिर से विवाह करने को कहा। शशिकांत ने साफ इनकार कर दिया। समय बीतता रहा। राघव और केशव 11वींकक्षा में और अनादि नौवीं कक्षा में पढ़ रहे थे, तब उनकी दादी अक्सर बीमार रहने लगी और कुछ समय बाद उनका स्वर्गवास हो गया। 

अब बच्चे समझदार हो चुके थे। अब शशिकांत खुद बच्चों का ध्यान रखतेथे। तीनों बच्चे पढ़ाई में अव्वल थे। 

कुछ वर्षों बाद राघव और केशव और फिर थोड़े समय बाद अनादि कनाडा चले गए और वही जॉब करने लगे। 

अब शशिकांत जी बिल्कुल अकेले हो गए। समय काटे ना कटता था। अपने आप को बूढ़ा और लाचार महसूस करने लगे थे। बुढ़ापा अकेले काटना कितना कठिन होता है उन्हें इस बात का एहसास होने लगा था। तब उन्होंने अपने दोस्त चड्ढा साहब के कहने पर वरिष्ठ सदस्य मंच ज्वाइन कर लिया। चड्ढा साहब भी उसके मेंबर थे। इस ग्रुप के साथ शशिकांत हर जगह घूमने जाते, उनके हर कार्यक्रममें भाग लेते, पुराने गानों पर खूब सबकेसाथ मिलकर डांस करते, चुटकुले सुनाते, सुबह शाम पार्क में घूमने जाते। अब जिंदगी कुछ अच्छी लगने लगी थी। 

लेकिन फिर भी कभी-कभी सुलेखा को याद करके उनकी आंखें भरआती थीं। सोचते थे सुलेखा साथ होती तो बुढ़ापा, बुढ़ापा नहीं लगता। दोनों मिलकर आनंद से जिंदगी जीते। 

ऐसे ही रोज उसे याद करते और पार्क में घूमने जाते। एक दिन पार्क में एक बेंच पर एक हम उम्र महिला को उदास बैठे देखा तो उसे हेलो बोल दिया। उसने भी मुस्कुरा कर हेलो कहा। उसके बाद रोज दोनों में नमस्ते होने लगी, फिर धीरे-धीरे सुख दुख की बातें शुरू हई। उसने बताया कि “मेरा नाम सुधा है। पिछले वर्ष मेरे पति गुजर गए, बेटी अपनी ससुराल में सुखी है और बेटा दूसरे शहर में बहूके साथ खुश हैं, मैं भी कभी-कभी मिलने चली जाती हूं या फिर वे लोग यहां आजाते हैं।” 

सुधा के पतिने सुधा के लिए कोई कमी नहीं छोड़ी थी। बुढ़ापा और अकेलापन इसके सिवा कोई दिक्कत नहीं थी। धीरे-धीरे सुधा और शशिकांत में गहरी मित्रता होगई और दोनों जब तक सुबह-शाम फोन पर या फिर मिलकर बात ना कर लेते,तब तक उनका दिन पूरा नहींहोता था। दोनों ने तय कर लिया था कि जब तक जीवित है मित्रता को निभाते रहेंगे और हमेशा सच्चेदोस्त बन कर रहेंगे। 

स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली 

बुढापा

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