बड़े भाई सा पिता या पिता सा बड़ा भाई – लतिका श्रीवास्तव

ट्रेन पूरी रफ्तार से चली जा रही थी….पर अजय का अधीर मन तो जैसे आनंद के पास वैसे ही चला गया था..कल रात में ही आनंद का फोन आया” भैया ,आप तत्काल यहां आ जाओ ,आपकी ही जरूरत है आप नहीं आओगे तो मेरा क्या होगा…”अजय तो घबरा ही गया “क्या बात है बेटा ?तुमका कौनो बड़ी परेसानी आय गई का!!”लेकिन तब तक तो आनंद ने मोबाइल ऑफ कर दिया,और कितनी ही बार लगाने पर भी बात नही हो पाई। भगवान से मंगल कामना करते हुए ही पूरी रात जैसे तैसे कटी …रिजर्वेशन आनंद ने ही करवा दिया था। पहली बार एसी कोच में बैठा हुआ अजय अपने पहनावे,बोलचाल और गतिविधियों का अपने चारों ओर के परिवेश से ताल मेल बिठाने में असहज हुआ जा रहा था,

आज तक गांव से बाहर ही नहीं निकला था..वो तो आनंद जो उसका प्राण था  और बाहर रह कर पढ़ाई कर रहा था ये उसकी पढ़ाई का अंतिम साल है ..(हे प्रभु मेरे लल्ला पर कृपा करना उसके सारे कष्ट मुझ अनपढ़ गंवार को दे देना……)उसके आकस्मिक फोन कॉल पर सुनी उसकी आवाज की अव्यक्त अधीरता ने उसे ट्रेन में बैठने पर विवश कर दिया था…।कोई दुर्घटना या किसी गंभीर बीमारी की आशंका से बेचैन दिल एकदम से सुखद एहसास से भर गया

जब स्टेशन पर स्वस्थ प्रसन्न आनंद ने भैया आप आ गए कह गले से लगा लिया….सच में अब वो छोटा नन्हा आनंद नहीं था जिसे वो गोद में उठाए उठाए पूरा गांव नाप आता था अब तो आनंद उसे ही लगभग अपनी गोद में उठा कर शानदार गाड़ी तक ले गया दरवाजा खोला आराम से बिठाया फिर जूस का गिलास भर कर दिया भैया,आप जब तक इसे आराम से पियो तब तक हम घर पहुंच जायेंगे….आनंद उसे कुछ कहने पूछने का मौका ही नही दे रहा था…



घर पहुंचते ही आनंद ने उसके लिए बढ़िया खाने की व्यवस्था की और बढ़िया सा सूट निकाल कर रख दिया..”भैया आप फटाफट नहा धो कर ये वाला सूट पहन कर तैयार हो जाओ जल्दी…जब तक अजय कुछ पूछता कहां जाना है तूने क्यों इतना अर्जेंटली बुलाया है आनंद मैं अभी आता हूं कह कर गायब ही हो गया।अजय को कुछ समझ में नहीं आ रहा था !!पर आनंद एकदम स्वस्थ प्रसन्न दिख रहा था

उसके लिए यही सबसे बड़ी ईश्वरीय कृपा थी।थोड़ी ही देर में एक ड्राइवर उसे फिर से गाड़ी में बिठा कर एक आलीशान होटल में ले गया और बहुत सम्मान सहित एक भव्य सजे धजे हॉल में ले गया और एकदम सामने सोफे पर बिठा दिया…अजय इतने आधुनिक उच्च स्तर के माहौल में खुद को बहुत असहज महसूस कर रहा था और फिर आनंद भी कहीं दिखाई नहीं दे रहा था…!

तभी अचानक भव्य मंच दूधिया रोशनी से जगमगा गया और माइक से अजय का नाम पुकारा जाने लगा …माइक में कोई बहुत ही मधुर आवाज़ में आनंद के बारे में बता रहा था कि आज ये भव्य मंच इस शहर के नवनियुक्त कलेक्टर श्री आनंद जी को सम्मानित कर धन्य हो रहा है और इस हेतु हम आदरणीय श्री अजय जी को सादर मंच पर आमंत्रित करते हैं….मेरा लल्ला कलेक्टर साहेब बन गया अजय के हृदय का उछाह तो मानो रुक ही नही पा रहा था..लेकिन मुझे क्यों बुला रहे हैं..!तब तक दो सुसज्जित वॉलेंटियर उसे मंच पर ले गए ….

जब तक अजय कुछ समझ पाता आनंद ने अपनी ट्रॉफी और सर्टिफिकेट उसके हाथों में रख कर उसके पैर छू लिए… अरे अरे ,बेटा !ये क्या कर रहा है सब देख रहे हैं बोल कर अजय ने उसे अपने गले से लगा लिया भाव विव्हल हो गया वो उसकी आंखों में बेतरह खुशी के आंसू थे….अजय ने कहा, देखने दो ना भैया ,आज सबको देखने दो ..यही वो भाई है मेरा जिसके त्याग ,सादगी , अटूट प्यार और अथक संघर्ष ने मुझे ये मुकाम दिलाया….सुनने दो… आज सबको मेरे दिल की बात कि जब से होश संभाला है मैने पिता को तो कभी देखा नहीं…मैंने सुना था कि बड़ा भाई पिता जैसा होता है पर भैया मैं आज सबके सामने दावे के साथ कह सकता हूं कि अगर मेरा पिता होता तो वो मेरे इस बड़े भाई जैसा ही होता …।

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