वापसी (रिश्तों की) भाग–3 – रचना कंडवाल

पिछले भाग में आपने पढ़ा कि बरखा सुनिधि को उसके पापा के बारे में बताना चाहती है। और अपनी मां को रूम से बाहर जाने को कहती है अब आगे–

बैठो,

सुनिधि को कह कर बरखा हारे हुए जुआरी की तरह बेड पर बैठ गई।

सुनिधि काऊच पर बैठी हुई थी।

तुम्हारे पापा के बारे में बहुत पहले तुम्हें बताना चाहती थी। हर बार सोचा पर डर गई ये सोच कर कि तुम सच जान कर अगर मुझसे नफरत करोगी तो मैं ….. जी नहीं पाऊंगी। उसने एक बार फिर अपने आंसू पोंछ डाले।

“तुम अपने पापा के बारे में कितना जानती हो??”

सिर्फ नाम “अरिंदम”??

जानती हो कौन अरिंदम ??

विख्यात समाज सेवी “द अरिंदम मजूमदार”


सुनिधि चौंक कर बरखा की तरफ देखने लगी।

“हां वही हैं तुम्हारे पापा”।

तुम्हारी नानी ने उनकी तमाम निशानियां खत्म कर दी।

तुम्हारे अलावा उसकी आवाज में दर्द था।

सुनिधि की आंखों के सामने अपने कॉलेज के फाइनल इयर का फेस्ट आ गया। अरिंदम मजूमदार उसमें चीफ गेस्ट बन कर आए थे। उसे टॉपर्स शील्ड उन्हीं के हाथों से मिली थी।

जब उसने मॉम को बताया था तो उसे समझ नहीं आया था कि वो अपसेट क्यों हो गई थीं?? हालांकि उन्होंने कुछ नहीं कहा था।

कितनी खुशी हुई थी उसे उनसे मिल कर। जब उसने घर आ कर जब डिनर पर डिस्कस किया था तो नानी ने डांट कर चुप करा दिया था।

उनका व्यक्तित्व तो जैसे उसकी आंखों में बस गया था। कितने हैंडसम, गेहुंआ रंग अप्रॉक्स सिक्स फोर हाइट,तीखे नैन-नक्श, आवाज की गंभीरता,उनकी मुस्कुराहट, चमकती आंखें, कानों के पास बालों में हल्की सफेदी आ चुकी थी।सब कुछ मन को मोह लेने वाला था। उनका बात करने का अंदाज तो गजब था। जब उन्होंने माइक पकड़ा और कहा कि बच्चों आपका ज्यादा वक्त नहीं लूंगा आज आप सब अपनी खुशी सेलीब्रेट करें। सचमुच तीन मिनट से भी कम समय में अपनी बातें बड़ी सावधानी से कह गए थे पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा था।

उस समय उसे समझ नहीं आया था कि उन्होंने प्राइज देते वक्त क्यों उसे इतने ध्यान से देखा था??

शायद इसलिए कि उसकी सूरत हूबहू अपनी मॉम से मिलती है।

उसकी सोच को बरखा ने तोड़ दिया।

“काश! आज तुम्हारे नानू जिंदा होते तो तुम जान ‌पाती कि वो तुम्हारे पापा से कितना प्यार करते थे।”

तुम्हारे पापा को मेरे लिए तुम्हारे नानू ने पसंद किया था।

तुम्हारे दादा जी सुकांत मजूमदार तुम्हारे नानू के जिगरी दोस्त थे।

बस फर्क इतना था कि शादी में मेरी और तुम्हारी नानी की मर्जी शामिल नहीं थी।

तुम्हारी नानी खुद बहुत बड़े खानदान से ताल्लुक रखती हैं।अपनी इकलौती बेटी की शादी अपने किसी employees के बेटे से करना उन्हें गवारा नहीं था। तुम्हारे दादू हमारी कंपनी में मैनेजर हुआ करते थे। तुम्हारे नानू ही उन्हें अपनी कंपनी में लाए थे।

मैं शादी करना तो चाहती थी पर अपनी मर्जी से।

तो क्या आप किसी और को पसंद करती थी???

नहीं तब तक किसी को पसंद तो नहीं किया था??

अरिंदम तब आउट ऑफ इंडिया थे‌ विदेश सेवा में।

अपने पापा के आग्रह पर मुझे देखने आए। मुझसे सिर्फ एक सवाल किया कि अगर आप मुझे पसंद करेंगी तभी ये रिश्ता हो पाएगा। कोई जल्दी नहीं है सोच समझ के जवाब दीजिएगा।

पापा ने अपने खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए मुझे शादी के लिए मना लिया।


शादी बड़े शानदार तरीके से हुई। तुम्हारी नानी ने मजबूरी में सारी रस्में निभाई।

वो अरिंदम को पसंद नहीं करती थी। पर उनके माता-पिता के लिए तो उनके मन में हद नफरत थी। उनका कहना था कि अरिंदम के पापा ने अपनी दोस्ती का नाजायज फायदा उठा कर ये रिश्ता करवाया।

पर मैं अरिंदम के साथ बेहद खुश थी। जान से भी ज्यादा प्यार करते थे वो मुझे।

तुम्हारे नानू मेरी शादी के एक साल बाद ही कार्डियक

अरेस्ट से गुजर ग‌ए।

उसके बाद तो जैसे जिंदगी बदल गई।

मैंने तुम्हारी नानी के कहने से अपने सास ससुर में ढेरों नुक्स निकालने शुरू कर दिए। मैं अपनी सास के लिए बहुत भला बुरा कहती। मेरे ससुर मेरी ज्यादती देखते हुए भी चुप रहते। मेरी सास मुझे अक्सर कहती कि बहू तुम हमारे साथ नहीं रहना चाहती तो अरू के साथ चली जाओ। इन सब बातों का उस पर बुरा असर हो रहा है। तो मैं इसे उनकी नौटंकी कहती। अरिंदम मुझे  समझाने की बहुत कोशिश करते पर मुझे उनकी बातें जहर लगती।

फिर तुम्हारा जन्म हुआ। तुम अपनी दादी,दादा का सबसे प्यारा खिलौना, और अपने पापा की जान बन गई।

वो लोग तुम्हें हर समय अपने हाथों में रखते। पर तुम्हारी नानी का मानना था कि वो लोग तुम्हें मुझसे दूर करना चाहते हैं। धीरे धीरे मुझे वहीं सब सच लगने लगा जो तुम्हारी नानी कहती थी।

मैंने तुम्हारे पापा पर दबाव बनाना शुरू किया कि हम अलग रहेंगे। पर तुम्हारे पापा तुम्हारे दादू की गिरती सेहत और दादी के अकेलेपन की वजह से ऐसा नहीं कर सके। क्योंकि वो जितने अच्छे पति थे उतने ही अच्छे बेटे थे।

हमारे बीच दूरियां बढ़ने लगी।

मैं आखिर तुम्हारी नानी की बेटी थी मैंने तुम्हें मोहरे की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया तुम्हें लेकर यहां आ गई  और आखिरी फरमान सुना दिया कि हम दोनों और उन दोनों में से किसी एक की च्वाइस करो।

वो मुझे मनाने की नाकाम कोशिश करते रहे। पर बात यहीं नहीं थमी। तुम्हारी नानी के कहने पर मैंने हैरेसमेंट का केस डाल दिया। इसने तुम्हारे पापा की रेपुटेशन को बहुत नुक्सान पहुंचाया। थक-हार कर बात डिवोर्स पर खत्म हुई।

तुम्हारे पापा तुम्हें अपने साथ रखना चाहते थे पर मेरी सहमति से।

जब मैं राजी नहीं हुई तो उन्होंने तुम पर अपना हक ये कहते हुए छोड़ दिया कि मेरा जो तमाशा बनना था बन चुका ।अब और नहीं मैं अपनी मासूम बच्ची की जिंदगी तबाह नहीं कर सकता। बस एक ही ख्वाइश है इसे कभी उन रास्तों से गुजरना न पड़े जिन पर हम चल रहे हैं और वो तुम्हारे दादा दादी को लेकर देश छोड़कर हमेशा के लिए चले गए।

ये कह कर बरखा फूट फूट कर रो पड़ी। सुनिधि अवाक थी। सच इतना घटिया था उसकी कल्पना से परे। बरखा ने उसकी आंखों में देखा उसकी आंखों में एक तूफान उमड़ रहा था। उसने उसके कंधे पर हाथ रखा पर उसने जोर से झटक दिया।

इसलिए मैं तुम्हें कभी नहीं बताना चाहती थी। बरखा

सिसक उठी।

पर आज जब तुम्हें अपने नक्शे-कदमों पर चलते देख रही हूं तो चुप कैसे रह सकती हूं?

क्या आपने उनसे कभी मिलने की कोशिश नहीं की???

शेष अगले भाग में–

वापसी ( रिश्तों की) – भाग 4

वापसी ( रिश्तों की) भाग–4 – रचना कंडवाल

वापसी ( रिश्तों की) – भाग 2

वापसी ( रिश्तों की) भाग–2 – रचना कंडवाल

© रचना कंडवाल

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