वापसी ( रिश्तों की) भाग–2 – रचना कंडवाल

पहले भाग में आपने पढ़ा कि बरखा रॉय की बेटी सुनिधि अपने ससुराल से गुस्सा हो कर अपने मायके (रॉय मेंशन ) वापस चली आती है। और कहती है कि अब वो वहां कभी नहीं जाएगी।अब आगे–

नहीं मैं ऐसा नहीं होने दूंगी।

सोचते हुए बरखा की आंखें भीग गई। आंखों से कुछ बूंदें निकल कर सुनिधि के गाल पर गिर पड़ीं। सुनिधि चौंक कर उठ गई।

“मॉम आर यू ओके” “व्हाट हैपेंड” उसने अपनी उंगलियों से उसके आंसू पोंछ दिए।

आज यहीं रूकोगी?? बरखा का स्वर डूब रहा था। लाओ अपना फोन दो।

क्यों??

मुझे तुम्हारे इन-लॉज से बात करनी है।


चलो अपने फोन से अपनी सासू मां का नंबर मिलाओ।

पर आप उनसे क्या बात करेंगी ??

मैं बाद में बात करूंगी।

क्या तुम घर पर बता कर आई हो कि यहां आ रही हो??

नहीं

अभी बात करो उसने फोन मिला कर सुनिधि के हाथ में पकड़ा दिया।

सुनिधि झुंझला उठी पर बरखा ने इशारा किया कि फोन स्पीकर पर रखो।

हैलो मम्मी,

मम्मी मैं मॉम के पास आई हूं। सोचा कि आपको बता देती हूं।

सुनिधि तुम्हें निकले हुए बहुत देर हो गई थी बेटा मुझे बहुत चिंता हो रही थी।

तुम बता कर नहीं गई थी फिर फोन भी नहीं उठाया। तुम ठीक हो ?? जी

मॉम आपसे बात करना चाहती हैं।

नमस्कार कैसी हैं आप?? बरखा ने अपने स्वर में यथासंभव नम्रता प्रकट की।

मैं ठीक हूं। आप कैसी हैं?? सुनिधि की सास रमा ने जवाब दिया।

बहुत दिनों से मिलना नहीं हो पाया।

हां मैं भी सोच रही थी बरखा ने जवाब दिया।

आज विपुल  के पापा के साथ यहां डिनर पर आ जाइए अगर आपको असुविधा न हो।

विपुल से सुनिधि बात कर लेगी।

अरे असुविधा तो आपको होगी आप बहुत बिजी रहती हैं इतना बड़ा बिजनेस संभालती हैं। हम तो रिटायर्ड लोग हैं खामखां आपको तकलीफ होगी।

समधियों के लिए नहीं तो किसके लिए टाइम होगा मेरे पास?? बरखा ने मधुरता से कहा।

ये सुनकर रमा खिलखिला दी।

ठीक है फिर शाम को मिलते हैं।

सुनिधि को मैं यहीं रोक रही हूं आपकी बहू से आपकी पसंद नापसंद जान लूंगी।

सुनिधि भौंहें चढ़ा कर बैठ गई। आप उन लोगों को इतना सिर पर क्यों चढ़ा रही हैैं??

ऐसा नहीं कहते हैं मेरी जान उसने सुनिधि को कस कर अपनी बाहों में बांध लिया।

“अच्छा आपकी आंखों में आंसू क्यों आए ??? “मेरी वजह से

एक सच्चाई सुनोगी??

“बाइस साल पुरानी”

“इन  आंसूओं को देखो कमबख्त हर वक्त बहने को तैयार

बैठे हैं।” उसकी आंखें फिर भर आई।


“ये बात मेरी और तुम्हारे पापा की है।”

“एक सेकेंड मॉम मुझे उनके बारे में कोई बात नहीं करनी।”

बाइस साल पहले जब उन्होंने आपको धक्के मार कर घर से निकाला था। मैं तो उस समय बहुत छोटी थी केवल चार साल की उन्होंने तो मुझ पर भी रहम नहीं किया। मुझे उनके बारे में कुछ भी याद नहीं है। वो बहुत लालची किस्म के इंसान थे आपको बहुत मारते पीटते थे। उन्होंने कभी भी मेरे बारे में जानने की कोशिश नहीं की।

“मुझे नानी मां ने सब कुछ बताया है।”

इसलिए मैंने कभी भी आपसे उनके बारे में न कुछ पूछा न मुझे कुछ जानना है।

वो मेरे लिए मर चुके हैं। उसका स्वर कठोर हो चुका था।

“खबरदार जो ऐसा कहा।” बरखा गुस्से से चिल्ला उठी।

सुनिधि हैरत से बरखा को देखने लगी।

इतने में बरखा की मां सुचित्रा ने रूम में एंटर किया।

वो शॉपिंग करके लौट आई थी।

आते ही सुनिधि का माथा चूम लिया।

हे ईश्वर! बरखा तुम मेरी बच्ची को डांट रही हो ?? क्या हुआ?? उसका तना हुआ चेहरा देखकर उन्होंने अनुमान लगा लिया कि कुछ तो असहज है।

“वो बेचारी पहले ही अपनी सास के तानों से दुःखी है और तुम उसे यहां भी डांटती रहती हो।”

“मां ! आज मैंने विपुल की फैमली को डिनर पर बुलाया है”।


तो आप याद रखियेगा कि उनके साथ गलत व्यवहार मैं बर्दाश्त नहीं करूंगी। और अगर आपको उनका आना पसंद नहीं है तो ड्राइवर आपको मासी के घर छोड़ आएगा। बरखा का स्वर दृढ़ था।

जाइए आप चेंज करके आराम कीजिए मुझे सुनिधि से अकेले में कुछ बात करनी है।

ऐसी क्या बात है?? जिसमें मैं शामिल नहीं हो सकती।

कुछ बातें सिर्फ हम दोनों मां और बेटी को करनी हैं।

आप जाइए।  बरखा ने जैसे आदेश दिया।

सुनिधि ने कभी भी पहले अपनी मां को नानी के साथ ऐसे बात करते हुए नहीं सुना था।

सुचित्रा तेजी से अपने रूम में चली गई।

बरखा ने अपने बेडरूम का डोर लॉक कर दिया।

वापसी ( रिश्तों की) – भाग 3

वापसी (रिश्तों की) भाग–3 – रचना कंडवाल

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वापसी ( रिश्तों की) – रचना कंडवाल

 

© रचना कंडवाल

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