इन्सान – विनय कुमार मिश्रा

अभी कुछ देर पहले जिस चमचमाती काली गाड़ी में रोहित ने फ्यूल भरा था वो कुछ दूर चलकर अचानक से रुक गई। थोड़ी देर रुकी रही फिर सामने गैरेज से एक मैकेनिक आया। फिर कुछ ही देर बाद उस गाड़ी का मालिक अपनी गाड़ी से उतरकर रोहित के करीब पहुंचा और लगभग चीखते हुए कहा … Read more

दर्द का रिश्ता-गौतम जैन

चूड़ी… बिंदी …लाली …पाउडर लें लो ..! सर पर टोकरी में सामान सजाए बसंती गली गली घुम कर सामान बेचने की पुरजोर कोशिश कर रही थी ।           सुबह से शाम हो गई मगर अभी तक बोहनी भी नहीं हुई थी । चिल्लाते हुए गला भी जवाब देने लगा था । टोकरी सर पर उठाए हुए … Read more

नाटक – कल्पना मिश्रा

“ये क्या!! कितनी गंदगी कर देते हो तुम? मेरे जैसी टोंकने वाली और तुम्हारे जैसा सुनने वाला शायद दूसरा कोई नही होगा। हद है, बोलते-बोलते मेरी ज़ुबान घिस जाती है,पर तुम हो कि अब दिन पर दिन ज़्यादा ही गंदे होते जा रहे हो” सुनकर वह हँस देते तो वह फिर से चालू हो जातीं.. … Read more

सम्मान की रोटी ~~मधु मिश्रा

“अम्मा मैं बाबुजी को देखने के लिए बार बार नहीं आ सकती, मेरी भी घर की कुछ जिम्मेदारी है,अच्छा होगा कि इस घर के लिए कोई ग्राहक देखो और बेच कर वहीं मेरे पास चलकर रहो..!” कमला, अपनी माँ को अपना ये निर्णयात्मक फ़ैसला सुनाकर वापस अपने ससुराल चली गई l माँ के सामने अब … Read more

हाय मेरा चश्मा – सुषमा यादव

,,एक दिन की बात बताऊं,, सच्चा सच्चा हाल सुनाऊं,,, छोटी बेटी डाक्टरनी  साहिबा का दिल लंदन पर आ गया था,,सो अब उन्होंने लंदन हास्पिटल से फेलोशिप करने की‌ ठानी  ,,कई परीक्षायें पास किया,पर इस मनहूस करोना ने सब उम्मीदों पर पानी फेर दिया,लाक डाउन में दो साल चले गए,, अब जाकर लंदन वालों को होश … Read more

छुवन – सत्यवती मौर्य

मैथिली नदी किनारे बैठी शुतल जल में पैर डाले बैठी थी।जल की शीतलता उसके मन में उठी उद्विग्नता को मरहम जैसे लेप लगा रही थी। अनेकानेक प्रश्न उठे मन में कि अचानक राघव ने उससे किनारा क्यों कर लिया?पर प्रश्न दिल से उठ कर दिमाग़ में जमे रहे।यह भी पता था कि उत्तर उसे शायद … Read more

आधुनिक बहू – कंचन श्रीवास्तव

हर घर की राम कहानी सुन सुन के रेखा का जी बैठा जा रहा ,सजाने भगवान कैसा जमाना आ गया कोई किसी से परेशान कोई किसी से,पर इस डर से बच्चे कुंआरे बैठे रहेंगे, और फिर कब तक एक दिन तो करना ही पड़ेगा ,अब वो अच्छी आए चाहे बुरी, जो भी है कलेजा मजबूत … Read more

कोढ़ – रीता मिश्रा तिवारी

“दीदी ओ दीदी तनी बाहर आबो ने। कौन है? हाथ पोंछती निम्मी किचन से बाहर आ कर देखती है, एक भिखारिन जैसी औरत बैठी है। जगह जगह से फटी साड़ी से झांकता उसका शरीर । वो बहुत कमजोर दिख रही थी। मुझे घूरते देख सहम गई और अपने हाथ छुपा लिए। मैंने पुछा क्या है? … Read more

मंजू माँ – मौसमी चन्द्रा

डोरबेल बजाने के साथ दरवाजा भी थपथपाया जा रहा था। मैं समझ गयी हमारी मेड होगी। इतनी जल्दबाजी उसे ही रहती है फिर भी आदतन मैंने होल से झांका तो वही खड़ी दिखाई दी। मुझे हँसी आयी उसका पका चेहरा देखकर! दरवाजा खोलते ही उसका जोरदार प्रश्न- “हेतना देरी काहे लगा देहलू?” “सो रही थी” … Read more

कामवाली –  ऋतु अग्रवाल

  “भाभी जी, आज मैं काम पर नहीं आऊँगी।” मीरा के फोन उठाते ही उसकी कामवाली मुन्नी की आवाज आई।       “अरे!क्या हो गया? तूने परसों ही तो छुट्टी ली थी। आज फिर! तेरा तो यह रोज का काम हो गया।” मीरा गुस्साते हुए बोली।     “भाभी जी! क्या करूँ? परसों से बिटिया को उल्टी, दस्त लगे हुए … Read more

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