हाय मेरा चश्मा – सुषमा यादव

,,एक दिन की बात बताऊं,, सच्चा

सच्चा हाल सुनाऊं,,,

छोटी बेटी डाक्टरनी  साहिबा का दिल लंदन पर आ गया था,,सो अब उन्होंने लंदन हास्पिटल से फेलोशिप करने की‌ ठानी  ,,कई परीक्षायें पास किया,पर इस मनहूस करोना ने सब उम्मीदों पर

पानी फेर दिया,लाक डाउन में दो साल चले गए,, अब जाकर लंदन वालों को होश आया, और फटाफट डाक्टरों का दल भारत देश आया,, उत्तीर्ण हुए डाक्टरों का प्रैक्टिकल एग्जाम लेने,, मेरी बेटी को भी परीक्षा देने जाना था,, आंखों की डाक्टर है, तो मेरी ही आंखों पर सब प्रयोग कर डाले,, खैर,, वो शुभ दिन आया,, बेटी ने कहा,, मम्मी,,मेरे लिए प्रार्थना करना,,

हमने कहा, हां, बिल्कुल,,

जब जाने लगी,, बोली,, मम्मी, क्या अपना चश्मा दे सकतीं हैं,, मैं अवाक,,उसका मुंह देखने लगी,,अच्छा, रहने दीजिए,, आपको परेशानी हो जायेगी,,

मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरा कीमती सामान मांग लिया हो,,हमारा जिगरा ही मांग लिया हो,, हमने कहा कि,,मेरा चश्मा क्या करोगी,, बोली,, अरे,, मम्मी, कुछ देखना,परखना होगा,, शायद कुछ जांच पड़ताल करवाये,,

हम ना तो नहीं कर सकते ना,, बिना चश्मे के, वो भी पूरे तीन चार घंटे,,,हम बहुत ही दुःखी हुए,पर कृत्रिम मुस्कराहट से कहा,, हां , हां ले जावो,,,


पक्का मम्मी,ले जाऊं,, आपको कोई दिक्कत तो नहीं होगी,, नहीं बेटा,,हम बस आंखें बंद कर के लेटे रहेंगे,, कुछ सोचेंगे, कहानियों के बारे में योजना बनायेंगे,,,, अच्छा, तो दे दीजिए, हमने भारी मन से चश्मा उतार कर दे दिया, और लेट गये,,जाते जाते बोली, मम्मी,, हम चिहुंक कर उठ बैठे,, शायद वापस कर रही है,, पक्का ,ले जाऊं,, हां भई,,हमारा मुंह उतर गया,,

वो लिफ्ट तक गई, फिर वापस लौट आई, अबकी सच में वापस कर देगी,हम बहुत खुश हुए,पर वो आकर हमारे गले लगी,हम जा रहें हैं,, हमने भी वो क्या कहते हैं,,, बेस्ट ऑफ लक,,,,, भगवान ,तुम्हे सफलता दे,,

, और वो चली गई,,

हम चुपचाप आंखें बंद कर के लेट गए,,बार बार मोबाइल को हाथ ढूंढता पर याद आता,,हाय, चश्मा तो है ही नहीं,, बहुत दिलदार बनी थी,दे दिया,अब भुगतो,,,, पता नहीं ,उन लंदन वालों को पहनायेगी ,या खुद पहनेगी,,हम बहुत भुनभुना रहे थेपूरे तीन घंटे,,हाय राम,, मैं बिना मोबाइल के कैसे रहूंगी,, नोटिफिकेशन पर मैसेज की घंटी बजती टन्न, टन्न,, हमारे दिमाग की बत्ती जलती, बुझती,झन्न,झन्न,

हे प्रभु,हे मां,, हमारी कहानी पर कितने प्यारे, प्यारे कमेंट्स और लाइक्स आते होंगे,,हम तो उनका धन्यवाद आभार व्यक्त ही नही कर पा रहे हैं,सब कहते होंगे,, कितनी एहसान फरामोश है, कितनी कृतघ्न है,,हम अपना अमूल्य समय निकाल कर इसकी कहानियां पढ़ रहे हैं, और इससे एक शब्द धन्यवाद का भी नहीं लिखा जा रहा है,,,इस मंच पर कितनी कहानियां पोस्ट हुई होंगी,हम एक भी नहीं पढ़ पा रहे हैं,,, हमें तो बिना मोबाइल देखे, बिना चलाये, बहुत ही रोना आ रहा था,,,

,,, तेरे बिना भी क्या जीना,,,


ऐ मेरे मोबाइल तेरे बिना भी क्या जीना,,,,

एकदम से आइडिया आया,,,, अधखुली आंखों से हमने यूट्यूब खोला, कथा कुंज एफ एम चालू किया और आंखें बंद कर ली,,,

,,, अरे वाह,यह क्या,,, एक मधुर आवाज़ गूंजी,,,, मैं हूं,, शिप्रा श्रीवास्तव,,आप सुन रहे हैं,कथा कुंज एफ एम में ,, सुषमा यादव की कहानी,,, माता, पिता की सज़ा, संतान को क्यों,,,हम तो बस भाव विभोर हो कर अपनी ही कहानी का आनंद लेते रहे,,, फिर क्या था, एक के बाद एक कहानियां हम सुनते रहे,,हमारा समय तेजी से कट गया, और हम मोबाइल से कुछ घंटों के लिए दूर हो गये,,सच में एक अत्यंत सुखद अहसास हुआ,,परम शांति और सुकून मिला,, हमसे हमारी ही मुलाकात हुई,,समय का सदुपयोग भी हुआ,, ये दुष्ट मोबाइल हमसे हमेशा ही चिपका रहता है,,पर करूं भी क्या,, मेरे अकेलेपन का यही तो एक मात्र सहारा है,,,

शाम को बेटी आई, मुझे चश्मा पकड़ाया, मैंने प्यार से उसे देखा और आंखों में सजाया,, मेरी निधि वापस मिल गई,,,

***  मैंने अपने चश्मे से कहा,,,

,, ऐ मेरे प्यारे चश्मे,तू अभी तक कहां था, कहां था,,,, कहां,,,,

चश्मे ने मुस्कुराते हुए कहा,,

,,,ऐ मेरी जिंदगी,, तूने भेजा था, मुझको जहां,, मैं वहीं था, वहीं था, वहीं,,****

सुषमा यादव,, प्रतापगढ़, उ प्र,

स्वरचित, मौलिक,,,

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