कोढ़ – रीता मिश्रा तिवारी

“दीदी ओ दीदी तनी बाहर आबो ने।

कौन है? हाथ पोंछती निम्मी किचन से बाहर आ कर देखती है, एक भिखारिन जैसी औरत बैठी है। जगह जगह से फटी साड़ी से झांकता उसका शरीर । वो बहुत कमजोर दिख रही थी।

मुझे घूरते देख सहम गई और अपने हाथ छुपा लिए।

मैंने पुछा क्या है?

दीदी एगो दुगो साड़ी है त दे द न !

मैंने कहा ठीक है रुको , कहकर मैं अंदर से एक सुती और एक सिंथेटिक साड़ी लाकर उसे दे दी , और कहा पहन लो

फटी साड़ी से तेरा बदन दिख रहा है।

नहीं दीदी बेटी के देवे के छै।

मैंने पूछा कहां है तेरी बेटी ?

घर मा.. ओकर शादी छै न, एगो आरो बड़ियां रंग है त दे द न । आरो कुच्छो पैसा भी । भगवान तोरा भला करतो वो कह कर हाथ को नीचे साड़ी में छुपा लेती है।

“भिख मांग कर इतना ले दे कर शादी करेगी । इतने में मेरे पति आकर कहते हैं ।



अरे… गरीब है कितना जिरह करती हो दे दो न।

मैंने उसे रुकने कहा और अंदर चली गई।

मेरे पास एक साड़ी थी जो मुझे पसंद नहीं थी पर अच्छी

साड़ी थी , तो मैंने बेटी की शादी है सोच कर एक डब्बा चूड़ी और सौ रुपए लाकर उसे दे दी ।

साड़ी देख कर वो बहुत खुश हुई । चूड़ी पैसे देख कर उसके आंखों से आंसू निकल आए।

मुझे उसकी खुशी देखकर बहुत सुकून मिला। भूखी होगी न ? ठहर तेरे लिए कुछ खाने को लाती हूं।

इतने में मेरी जेठानी आकर चिल्लाने लगी उस पर ।

तू.. तू अंदर कैसे आई ? तेरी इतनी हिम्मत निकल यहां से ।

ये सब तूने दिए निम्मी ?

जी दीदी ! पर हुआ क्या ? आप इसे इस तरह क्यूं कह रही हैं बिचारी गरीब है ।

“तुम कुछ नहीं जानती , जरा इसकी हालत तो देख ।



देख ही तो रही हूं कितनी कमज़ोर है बेचारी… कह निम्मी अंदर चली गई ।

उसके लिए प्लेट में खाना और पानी लेकर आती है

और उसे देती है ।

पर वो कहती है नीचे रख  दो दीदी ।

नहीं खा ले पहले मैंने कहा ।

फिर से मेरी जेठानी गुस्सा करती है, नीचे क्यूं रखना है

हाथ में ले न । लेगी भी कैसे हाथ पैर सही हो तब न ।

ये क्या बोल रही हैं दी सही तो है।

नहीं नहीं इसे बोल अपने हाथ पांव दिखाने । दी गुस्से में कहती है।

मैंने उसे दिखाने कहा तो वो रोती हुई अपना हाथ पांव दिखाने लगी ।

उसके हाथ पांव में पट्टियां बंधी हुई थी।

“क्या हुआ है ? मैने पुछा तो वो रोने लगी और बताने

लगी ।

दीदी हम्मे बहुत अच्छे रहियो । लोगों के घरो में काम करी के बेटा बेटी के पोसी पाली क बड़ा करलीयो ।

तुम्हारा पति ? मैने पूछा ।

ऊ रिक्श चलाबे छै । फिर कहने लगी एक बार मेरा हाथ पैर लाल होकर फुल गया और घाव हो गया डाक्टर से दवाई ले के खाए तो ठीक हो गया । कुछ महीना बाद फिर से हो गया और छूट ही नहीं रहा था । घाव से खून पानी बहते रहता था।

“अस्पताल में डॉक्टर को दिखाये तो डॉक्टर ने कहा

ये कोढ़ है । “



“ये सुन वो लोग घबरा कर रोने लगे की अब क्या करे कहां जाए।

“मैने पुछा फिर ? “

फेरू की दीदी ! जेकरा पाली पोसी के बड़ा करे, वही

सभे मिली के घरों से निकाली देलकी ।

अब भिख मांगी के आपनो गुजारा करे छी ।

सुने बेटी के सादी छै त न रहलो गेलय एही ले

मांगी के दे देवय माय छियेय न ।

“उसकी दुःख भरी कहानी सुनकर मेरे आंखों से झर झर

आंसू बहने लगे,और मेरी जेठानी तमतमाती हुई चली गई।

मैं ये सोच कर हैरान रह गई , की एक मां कितना कुछ करती है अपने बच्चों के लिए । और संतान एक मां को बिना इलाज के लावारिस सड़कों पर भटकने के लिए छोड़ दिया । और पति…… वो भी ऐसा कैसे कर सकता है ?

“ये शरीर का कोढ़ नही । ये इंसान की इंसानियत

और विकृत मानसिकता का कोढ़ है ।

रीता मिश्रा तिवारी

भागलपुर बिहार

१९.३.२०२२

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