कामवाली –  ऋतु अग्रवाल

  “भाभी जी, आज मैं काम पर नहीं आऊँगी।” मीरा के फोन उठाते ही उसकी कामवाली मुन्नी की आवाज आई।

      “अरे!क्या हो गया? तूने परसों ही तो छुट्टी ली थी। आज फिर! तेरा तो यह रोज का काम हो गया।” मीरा गुस्साते हुए बोली।

    “भाभी जी! क्या करूँ? परसों से बिटिया को उल्टी, दस्त लगे हुए हैं। पता नहीं, जब से मृदुला भाभी जी के यहाँ से मिला हुआ खाना खाया है तब से उसे उल्टियाँ हो रही हैं।” मुन्नी रोते हुए बोली।

     “अरे ऐसा क्या था उसमें कि बिटिया को उल्टी हो रही है और तूने कल भी नहीं बताया।” मीरा ने चिंतित स्वर में कहा।

      “भाभी जी सरकारी अस्पताल के डॉक्टर कह रहे थे कि शायद खाना बासी होगा। वह क्या कहते हैं उसे फूड…… फूड पाजनी…… “मुन्नी अब भी रो रही थी।

       “हे भगवान!क्या फूड प्वाइजनिंग?”

      हाँ, हाँ, वही मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा।” मुन्नी का गला रूँध गया था।


    “अच्छा! अच्छा! तू रो मत बिटिया का ध्यान रख। कोई बात नहीं, अगर और छुट्टी लेनी पड़े तो ले लेना पर बिटिया के ठीक होने पर ही आना।” मीरा ने कहकर फोन रख दिया।

मीरा के पति तरुण वहीं बैठे सब सुन रहे थे।

   “क्या हुआ?” तरुण ने पूछा।

    “वह अपनी काम वाली मुन्नी की बिटिया को फूड प्वाइजनिंग हो गई है। मृदुला भाभी जी के दिए भोजन को खाने के बाद उसे लगातार उल्टी और दस्त हो रहे हैं।” मीरा ने बताया।

     “यह तुम औरतें भी ना पता नहीं क्यों बासी खाना इन लोगों को दे देते हो? कम से कम देने से पहले देख तो लिया करो कि कहीं खराब तो नहीं हो गया है। वह भी हमारी तरह इंसान हैं। अगर हम खराब खाना नहीं खा सकते तो भला वह कैसे खा सकते हैं?” तरुण गुस्से से बोले।

   “हम्म!बात तो आपकी सही है। मैं आगे से ध्यान रखूँगी।चलो,अब मैं फटाफट काम निपटा लूँ फिर तसल्ली से बात करती हूँ आपसे। मीरा ने अलसाते हुए कहा।

    “जी नहीं, आप काम बाद में करेंगी। पहले हम ताजा फल,बिस्किट लेकर मुन्नी के घर जाएँगे और उसकी  बिटिया की दवाइयों का इंतजाम करके  आएँगे।वह इतनी तंगहाली में सारा खर्च कैसे संभालेगी?” कहकर तरूण उठ खड़े हुए।

  मीरा आश्चर्यमिश्रित गर्व से तरूण को देखती रह गई।

   स्वरचित

    ऋतु अग्रवाल

    मेरठ

    यह कहानी पूर्णतया मौलिक है।

 

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