दर्द का रिश्ता-गौतम जैन

चूड़ी… बिंदी …लाली …पाउडर लें लो ..! सर पर टोकरी में सामान सजाए बसंती गली गली घुम कर सामान बेचने की पुरजोर कोशिश कर रही थी ।

          सुबह से शाम हो गई मगर अभी तक बोहनी भी नहीं हुई थी । चिल्लाते हुए गला भी जवाब देने लगा था । टोकरी सर पर उठाए हुए थक भी गई थी ।

           सामने चबूतरा देख आहिस्ता आहिस्ता टोकरी उतार कर नीचे रखी । सामान के साथ ही टोकरी में बच्ची भी लेटी हुई थी । प्यार से बच्ची को सहलाने लगी और झुककर माथा चूम लिया।

  ” हे भगवान आज तो बोहनी भी नहीं हुई है सोनू भी भूखी प्यासी होगी इसके दुध का भी वक़्त हो रहा है ” मन ही मन प्रार्थना करने लगी की कुछ तो बिक जाएं । बाटल से पानी निकाल कर पिलाने लगी । अपनी मजबूरी पर आंखें छलक आईं ।

       अंधेरा होने में थोड़ा समय था सोचा चलो थोड़ी कोशिश और कर ली जाए शायद बोहनी हो जाए टोकरी उठाई कर चलने को ही थी की आवाज आई ।

” ए लड़की  रुक क्या नाम है तेरा… चूड़ी दिखा

बसंती ने पलट कर देखा एक बुढ़ी मांजी उसे ही बुला रही थी ।

  ” हां मौसी अभी आई ” बसंती ने खुश होकर कहा । और टोकरी उठाने लगी टोकरी हिली तो सोनू जाग गई और रोने लगी । बसंती ने टोकरी छोड़ सोनू को गोद में उठा लिया और चुप कराने लगी ।


     “अरे बच्ची भूखी होगी दूध क्यों नहीं पिलाती। पहले इसे चुप करा ।”

” मैं नहीं पिला सकती मौसी ये मेरी बहन की बच्ची है और सुबह से बोहनी भी नहीं हुई है !”

      ” हे राम तो तू इसे लेकर क्यों घुम रही है इसके मां बाप कहां है मौसी ने पुछा

” ये मेरी बड़ी बहन की बच्ची है । इसके मां बाप अब इस दुनिया में नहीं है एक्सीडेंट में दोनों ही चल बसे और अब इसकी जिम्मेदारी मुझ पर है मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई है। और मेरे  भी आगे पीछे बस यही है इसलिए इसे भी साथ लेकर आती हुं ।

     ” अच्छा अंदर आ पहले दुध ले और बच्ची को पिला ।” बसंती ने दुध लिया और बच्ची को पिलाने लगी ।


    ” कितना कमा लेती है ये सब बेच कर ?”

जी मौसी कभी पेट भरने लायक हो जाता है और कभी भूखे पेट भी रहना पड़ता है । मौसी की हमदर्दी पाकर बसंती की आंखें भर आईं।

      तू भी तो भूखी होगी तू भी पहले कुछ खा ले । देख मैं भी यहां अकेली रहती हूं तू चाहे तो यहां रह सकती है घर के काम में मेरा हाथ बंटा दिया करना घर के काम तो जानती है ना ?

     ” हां मौसी “बसंती ने कहा

जवान लड़की है जमाना ठीक नहीं है तुझे भी सहारा मिल जाएगा और मेरा भी स्वार्थ है इसमें

मेरा बेटा और बहू अलग रहते हैं मैं अपने पोते और पोती से मिल भी नहीं सकती मुझे भी तुम दोनों का सहारा मिल जाएगा मौसी के स्वर में भी दर्द उभर आया ।

“अंधा क्या चाहेगा मौसी आपका ये उपकार मैं जिंदगी भर नहीं भूलूंगी “सारे काम मैं कर लूंगी आप बस सोनू के साथ खेलना ।

   किसी ने सच ही कहा है दर्द ही दर्द को पहचान सकता है और जब दो लोगों के दर्द एक होते हैं तो हमदर्द हो जाते हैं।

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