वो “आंखमूंदी गुड़िया” वाला प्यार…! – मीनू झा

लो खिलौनों की कमी थी क्या इसके पास जो फिर तू ये खिलौने ले आई बहू.. तुम दोनों तो एक बच्ची क्या हो गई है पागल ही हो गए हों..पूरे घर को खिलौनों का कारखाना बनाकर रख दिया–बाहर से आई प्रीति के हाथ में खिलौनों का पैकेट देखकर सास रीमा बोल पड़ी। क्या मां..एक ही … Read more

अपने घर के बच्चों में भेद कैसा… रश्मि प्रकाश 

कमला जी के दो बेटे हैं और दोनों एक ही सोसायटी में अपने अपने फ़्लैट में रहते हैं… सब का लगभग हर दिन का आना जाना लगा हीरहता है पर उनकी बहुएँ जरा कम ही एक दूसरे के घर जाती है… कमला जी भी दोनों बेटों के घर बारी बारी और ज़रूरत के हिसाब सेरहती … Read more

यही तमन्ना है – प्रेम बजाज

साहनी साहब बैंक में कार्यरत थे और परिवार भी छोटा सा बस एक ही बेटा, दूसरी संतान ईश्वर ने दी ही नहीं। साहनी साहब और उनकी धर्मपत्नी रोहिणी को बेटी का बहुत चाव था, मगर ईश्वर को शायद मंज़ूर नहीं था, बेटी पैदा तो हुई मगर पैदा होते ही इस संसार से कूच कर गई। … Read more

सर्दी की चादर-देवेंद्र कुमार

स्कूल में चित्रकला प्रतियोगिता हुई। सबसे अच्छे तीन चित्रों को पुरस्कार मिला। उसमें रचना का बनाया गुलाब के पौधे का चित्र भी था। स्कूल की ओर से तीनों विजेताओं को पुरस्कार दिए गए। समारोह समाप्त होने के बाद रचना की माँ प्रतिभा प्रिंसिपल से मिलीं। पुरस्कार के लिए धन्यवाद दिया। फिर कहा- “रचना बताती है … Read more

टींस – अनीता चेची

दसवीं का वार्षिक परीक्षा परिणाम घोषित होने के पश्चात बहुत सारे विद्यार्थियों ने विद्यालय में प्रवेश लिया। परंतु कुछ लड़कियां ऐसी थी जो घर बैठी हुई थी। उनके माता-पिता उन्हें पढ़ाना नहीं चाहते थे। उनमें से ही एक  थी ‘नंदिनी’ जब मुझे पता चला कि नंदिनी के माता-पिता उसे पढ़ाना नहीं चाहते। मैं उनके घर … Read more

अपने तो अपने होते हैं।  –  पुष्पा पाण्डेय 

नेहा के इंजिनियरिंग की पढ़ाई का अंतिम पेपर अगले हफ्ते था। काॅलेज की पढ़ाई पूरी करने की खुशी से ज्यादा दुख था कि अब वह रोज अनवय से नहीं मिल पायेगी। अनवय और नेहा दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे। अपने जीवन साथी के रूप में वे किसी दूसरे की कल्पना भी नहीं … Read more

सुबह का भूला – संजय मृदुल

फाइव स्टार होटल जैसा अस्पताल, भीड़-भाड़ के बीच अल्पना अकेली बैठी है बड़ी सी लॉबी में कॉफी शॉप की एक टेबल पर। कॉफी से उठता धुँवा अल्पना की आंखों में उतर आया है।   पापाजी का ऑपरेशन चल रहा है, तीन दिन पहले सुबह-सुबह सीने में दर्द उठा। अल्पना ने जैसे तैसे व्यवस्था कर अस्पताल … Read more

प्राइस टैग – ज्योति अप्रतिम

विधा-लघुकथा   प्रियंका ब्याह के बाद पग फेरे के लिए आई थी।आते ही ससुराल के लिए की गई घोषणा से सभी लोग परेशान हो गए और पशोपेश में थे उसकी समझाइश के लिए। प्रियंका का ब्याह संयुक्त परिवार में हुआ था जो उसके लिए  एक नया अनुभव था।इतने सदस्यों के साथ रहना उसे एक मुसीबत … Read more

काश तुम समझ पाते…-   मीनू झा

काश तुम समझ पाते…ये खुद को सांत्वना थी, स्वयं को धिक्कार था या फिर वो अफसोस था जिससे “सुंदर” उबर ही नहीं पा रहा था ??इन अनुत्तरित प्रश्नों से लड़ते लड़ते महीना भर होने को आया पर वो इनका जवाब नहीं ढूंढ पाया था।   क्या सोचते रहते हो दिनभर??—घर बाहर हर कोई यही सवाल … Read more

माई ग्रेट मदर    -प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय’

“सुनंदा को अपनी खूबसूरती और अपने पैसो पर बहुत घमंड था। उसके आलिशान बंगले मे सिर्फ उसी की चलती थी।” सुनंदा के पति राघव और बेटे प्रांजल को उसकी लाइफ स्टाइल बिल्कुल भी पसंद नही थी। सुनंदा हमेशा अपनी चापलूस सहेलियों से घिरी रहती थी। उसका  अधिकतर समय पार्टी व शापिंग मे ही गुजरता था। … Read more

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