यही तमन्ना है – प्रेम बजाज

साहनी साहब बैंक में कार्यरत थे और परिवार भी छोटा सा बस एक ही बेटा, दूसरी संतान ईश्वर ने दी ही नहीं।

साहनी साहब और उनकी धर्मपत्नी रोहिणी को बेटी का बहुत चाव था, मगर ईश्वर को शायद मंज़ूर नहीं था, बेटी पैदा तो हुई मगर पैदा होते ही इस संसार से कूच कर गई। शायद कोई जन्मजात प्रोब्लम रही होगी।

ख़ैर उनकी बेटी की तमन्ना मन की मन में रह गई।  

ख़ैर बेटे ( सुशांत) को बड़े अच्छे ढंग से पाला-पोसा, अच्छे संस्कार दिए। सुशांत पढ़ लिखकर मेकेनिकल इंजीनियर बन गया, इंफोसिस कम्पनी में अच्छी नौकरी भी मिल  गई। 

माता-पिता दोनों ही बहुत खुश। सुशांत ने समय से पहले ही पिता को जाॅब छोड़ने को कह दिया।

सुशांत,” पापा अब मेरी अच्छी जाॅब लग गई है, आपने अब तक बहुत काम किया, अब आपको काम करने की कोई ज़रूरत नहीं, आप मां के साथ घूमिए और अपनी लाइफ एंजॉय किजिए।

बेटे के इतना मान- मनुहार करने के कारण साहनी , साहब ने समय पूर्व नौकरी छोड़ दी जिस कारण पेंशन भी नहीं मिली, हां जो प्रोविडेंट फंड था उससे अपना मकान खरीद लिया कि चलो छत तो अपनी होगी।



अब माता- पिता सुशांत की शादी के सपने देखने लगे कि चलो बहू आएगी तो बेटी का अरमान पूरा हो जाएगा।

सुशांत ने बताया कि वो उसी की कम्पनी में काम करती एक लड़की को प्यार करता है, माता-पिता ने  सहर्ष स्वीकृति दे दी।

लड़की अर्थात वानी के माता-पिता भी इस रिश्ते के लिए राज़ी हो गए। 

दोनों परिवारों की सहमति से उन दोनों की साधारण तरीके से शादी कर दी गई।

छोटा सा खुशहाल परिवार था। सुशांत को कंपनी की तरफ से एक साल के प्रोजेक्ट के लिए अमेरिका जाना था, माता- पिता ने कहा कि वानी के लिए भी कम्पनी में बात करें ताकि वो भी साथ जा सके, जिससे एक तो वानी का घूमना भी हो जाएगा और सुशांत को भी अकेलापन नहीं करेगा, एक साल की बात है।

सुशांत और वानी ने बहुत ज़ोर लगाया लेकिन कम्पनी ने वानी के लिए मना कर दिया।

ख़ैर सुशांत चला गया और वानी यहां रह गई अपने ससुराल। वैसे तो मायका ससुराल से ज्यादा दूर नहीं था बस एक घण्टे का ही सफर था। मगर वानी पहले बहुत कम जाती थी मगर अब अक्सर आफिस से मायके चली जाती।

सास-ससुर ने सोचा कि चलो सुशांत भी यहां नहीं है, इसे अकेलापन ना खले, इसलिए कभी यहां तो कभी वहां अर्थात मायके में चली जाया करे।

लेकिन ना जाने क्यों अब वानी का रवैया ही बदल रहा था,  ना वो पहले की तरह सास-ससुर को इज़्ज़त- मान देती और ना ही घर के किसी काम में सास की मदद करती, उल्टा सुशांत को फोन कर ये कहती, ” सुशांत मैं तो बहुत थक गई हूं, एक तो आफिस, उस पर सारे घर का काम, जब से आप गए हो, मम्मी जी तो एक तिनका नहीं तोड़ती, मेरा तो बुरा हाल हो गया है” 



सुशांत अगर सर्वेंट रखने को कहता तो कहती, ” मम्मी-पापा का भी इतना ज्यादा खर्चा है उस पर उनकी कोई कमाई भी नहीं, फिर कल को हमारे बच्चे भी होंगे उनके भविष्य का भी तो सोचना है, अभी से कुछ जमा करना शुरू करेंगे तभी आगे गाड़ी अच्छे से चलेगी।

सुशांत भी सोचता कि वानी सही कह रही है हमें अभी  से ही कुछ जमा करना चाहिए।  इसलिए वो मां को कभी बातों- बातों में  कह देता,” मां घर का कामकाज करते रहा करो, वरना शरीर खराब ही होगा खाली बैठे रहने से ओर कोई ना कोई बीमारी भी घेरे रहेगी” 

मां भी परदेश बैठे बेटे से क्या कहे कि जैसा वो सोच रहा है ऐसा कुछ भी नहीं।

लेकिन एक बार वानी रात को मायके जाने के बजाय किसी फ्रेंड के साथ पार्टी में गई और काफी देर से आई इतना ही नहीं उसने शराब भी पी रखी थी।

 इस पर सास समझाने लगी, ” कि इस तरह आधी रात को नशे की हालत में घर आना अच्छे घर की बहू-बेटियों को शोभा नहीं देता।

बस उस दिन तो वानी ने हद ही कर दी सास-ससुर को साफ लफ्जों में कह दिया कि इस घर में या आप रहोगे या मैं। 

और सुशांत से कहा,” मैं कल रात अपनी सहेली को बर्थडे पार्टी में गई थी, ज़रा सी लेट क्या हुई , मां-पापा ने मुझे बुरी तरह से डांटा भी और आईंदा कहीं भी ना जाने को कहा, मुझसे कहा कि अगर मुझे इस घर में रहना है तो इस घर के नियमों का पालन करना होगा” 

सुशांत के पिता ने जब घर खरीदा था तो तभी सुशांत के नाम पर ही खरीदा था। तो सुशांत ने भी झट कह दिया,” मम्मी- पापा अगर आपको वानी से प्रोब्लम है तो आप अपना कहीं भी इंतजाम कर ले मैं आपको हर महीने पैसे भेज़ूगां।

अगले दिन वानी सुबह- सुबह अपना सामान पैक करके कहीं जाने के लिए निकलती है तो सास ने  पूछा लिया,” वानी बेटा, काम के सिलसिले में कहीं बाहर जा रही हो”?



वानी, ” मैं आपकी हर समय की रोक-टोक और सहन नहीं कर सकती, अब या तो आप यहां रहेंगे या मैं, इसलिए मैं जा रही हूं”

सास-ससुर दोनों ही प्यार से उसे समझा कर जाने से रोक देते हैं, ये कह कर कि  वो जल्द ही कहीं अपना इंतजाम कर लेंगे।

ना तो साहनी साहब की कोई पेंशन और ना काम करने की अब उम्र।

जाएं तो जाएं कहां? बहुत बड़ा सवाल खड़ा था सामने, बेटे ने कहा तो दिया कि हर महीने खर्च भेजेगा, मगर ना जाने कब तक और क्या भेजेगा?

इसलिए कोई रास्ता ना नज़र आने पर उन्होंने वृद्धाश्रम जाने का निश्चय कर लिया। 

और वो अगले ही दिन‌ वृद्धाश्रम चले जाते हैं। अब वानी को पूरी आज़ादी। कोई रोकने-टोकने वाला है नहीं, देर रात तक पार्टियों में रहना। कभी-अभी पार्टियों में शराब भी पीने लग गई थी।

एक बार देर रात पार्टी से घर आ रही थी तो अचानक से एक ट्रक से वानी की गाड़ी टकरा गई, और वीना बूरी तरह घायल हो गई। 

गलती वानी की थी फोन पर बात करते हुए ध्यान ही नहीं दिया, ट्रक वाले ने बहुत कोशिश की बचाने की मगर टक्कर लग ही गई। ट्रकवाले ने अस्पताल पहुंचा दिया और उसके फोन से उसके रिश्तेदारों को इत्तिला भी कर दी।



चैकअप में पता चला कि एक टांग में घुटने से दो हड्डियां टूट गई है, और रीढ़ की हड्डी में भी काफी चोटें आई हैं, जिससे एक महीना तो बेड से हिलना ही नहीं और उसके बाद भी दो महीने तक धीरे-धीरे मूवमेंट शुरू करनी है। अर्थात ठीक होने में लगभग तीन-चार महीने लग जाएंगे।

मां दो-तीन दिन रही लेकिन उधर वानी की भाभी भी प्रेगनेंट थी और बेड रेस्ट पर। अब मां के लिए मुश्किल था कि दोनों की तीमारदारी कैसे करें।

 लेकिन जब सुशांत की मां-पापा से बात हुई तो पत चला कि वानी का एक्सीडेंट हुआ है, और इस तरह से वो अकेली पड़ गई है, सुशांत भी काम छोड़कर नहीं आ सकता था।

ये सुनकर साहनी साहब और उनकी धर्मपत्नी रोहिणी वृद्धाश्रम से घर चले जाते हैं, वो सोचते हैं कि इस समय वानी को हमारी ज़रूरत है। 

रोहिणी वानी की खूब सेवा करती है, उसे छोटे बच्चे की तरह से नहलाना-धुलाना, टायलेट तक भी उसका साफ करना, अपने हाथों से खाना बना कर खिलाना भी, मालिश एवं जो भी एक्सरसाइज इत्यादि डाक्टर बताते सब दोनों पति-पत्नी खुद करते। इस तरह से वानी तीन महीने की बजाए दो महीने में ही अच्छा महसूस करने लगी।

लेकिन एक दिन जब साहनी साहब वानी को वाॅकर से सहारा देकर चला रहे थे, तो वानी की आंखों से अचानक ही गंगा- जमुना की धारा बह निकली।

साहनी साहब,” क्या हुआ बेटा, दर्द हो रहा है क्या? थोड़ी देर आराम कर लो, थोड़ी देर बाद फिर से कोशिश करेंगे चलने की”

” नहीं पापा दर्द बदन में नहीं दिल में है” 

इतने में रोहिणी भी आ जाती है, और घबराकर,” क्यूं वानी बेटा क्या हुआ? डाक्टर को बुलाऊं क्या?”



वानी और भी ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी, ” मां ,पापा, मुझे माफ़ कर दिजिए, मैंने इतना बुरा व्यवहार किया आप लोगों के साथ और आप मेरी कितने प्यार से देखभाल कर रहे हैं, ये आप की मेहनत का ही नतीजा है, जो मैं इतनी जल्दी ठीक हो‌ गई। आपने तो मुझे बेटी बनाया मगर मैं आपको मां- बाप ना बना सकी। मैं अपने किए पर शर्मिन्दा हूं” 

रोहिणी वानी को गले लगा लेती है, और कहती हैं,” पगली, अपने ही अगर अपनों का साथ नहीं देंगे तो फिर वो‌ कैसे अपने?”

वानी,” हां मां सच कहा, अपने तो अपने ही होते हैं, बस एक शिकायत है ईश्वर से‌ उसने मुझे आपकी कोख से पैदा क्यों नहीं किया? यही तमन्ना है कि अगले जन्म में मैं आपकी कोख से पैदा होऊं”

प्रेम बजाज ©®

जगाधरी ( यमुनानगर)

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