बेसहारा – रश्मि स्थापक
“अरे! भानू… यह वही हाथ-गाड़ी है न जिसमें जगन को ले जाते थे तुम …।” मोहल्ले की सोसाइटी के अध्यक्ष नरेश ने पूछा। “हाँ साब…अस्सी से ऊपर के हो गए थे चाचा… दिखता बिल्कुल नहीं था उन्हें इसीलिए मैंने खुद ये गाड़ी उनके लिए बनाई थी… उन्होंनें काम करना कभी नही छोड़ा … मैं उन्हें … Read more