बेसहारा – रश्मि स्थापक

“अरे! भानू… यह वही हाथ-गाड़ी है न जिसमें जगन को ले जाते थे तुम …।” मोहल्ले की सोसाइटी के अध्यक्ष नरेश ने पूछा। “हाँ साब…अस्सी से ऊपर के हो गए थे चाचा… दिखता बिल्कुल नहीं था उन्हें इसीलिए मैंने खुद ये गाड़ी उनके लिए बनाई थी…  उन्होंनें काम करना कभी नही छोड़ा … मैं उन्हें … Read more

 शारदा – अंकित चहल ‘विशेष’

मम्मी, उठ जाओ ! ‌मम्मी, उठो, कहता और ज़ोर ज़ोर से रोने लगता, ऐसा विलाप और क्रंदन सुनकर, पत्थर दिल ‌वालों की भी आँखें भर आईं। एक 6से 7 साल का लड़का, अपनी ‌मृत माँ के साथ लिपटकर, उसे जीवित करने का असफल प्रयास कर रहा था।      लेकिन ‌जाने वाले कभी वापिस नहीं आते, उस … Read more

पहला थप्पड़  –  स्मिता सिंह चौहान

“आज भी कुछ हुआ है भाभी जी “रिंकी शालिनी की कामवाली उससे पूछती है ,”कुछ नहीं हुआ ,तू अपना काम कर”शालिनी कहते हुए रसोई से बहार चली गयी ।उसकी आँखे लाल और सुजी हुई थी ,जिस मुँह को उसने दुपट्टा से पल्ला रखके ढक रखा  था ,उसमे से उसके गालो पर पड़े निशान उसकी कहानी … Read more

शक करना पत्नियों का अधिकार है – मनप्रीत मखीजा 

“कितनी बार कहा है तुम्हें निशा, मेरे फोन कॉल रिसीव मत किया करो । कुछ इंटरनेशनल कॉल्स भी आते है तुम उनकी लैंग्वैज मे बात नही कर पाओगी। फिर वहाँ से ऑर्डर नही मिलते। ” इतने मे पुनीत का फोन बजा और पुनीत, “हैलो सर, हाऊ आर यू ” कहते.. फोन पर बात करते हुए … Read more

ओ री चिरैया, अँगना में फिर आजा रे – पल्लवी विनोद

आज पाखी की विदाई है। मनोहरलाल जी शादी की तैयारियों के बीच रह-रह कर एक नजर पाखी की तरफ देख रहे हैं जैसे वो इस पल को अपनी आँखों में बसा लेना चाहते हैं। चिड़िया की तरह घर आँगन में फुदकने वाली पाखी आज उन्हीं का आँगन छोड़ कर चली जायेगी। कैसे जिएंगे उसके बिना! … Read more

 लड़की हो तो बच्चा गिरवा दो – संगीता अग्रवाल 

“खुशी बेटा क्या सोच रही है यहाँ अकेले बैठी?” टीना अपनी 10 साल की बेटी से बोली। “कुछ नहीं मां ऐसे ही…..अच्छा मां ये बताओ लड़की होना बहुत बुरी बात होती है क्या? बच्चा गिराना क्या होता है?” खुशी ने सवाल किए। “बेटा तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो। ये सब बातें तुमने कहाँ सुनी।” … Read more

बहू भी तो बेटी है – रश्मि प्रकाश

“हैलो माँ हम लोग मथुरा जाने का सोच रहे है, तुम बोल रही थी ना तुम्हारा बहुत मन है मथुरा घूमने का तो तुम यहां आ जाओ फिर हम जाएंगे। तुम आओगी ना? टिकट करवा देती हूँ। बस तुम ये बता दो कब आओगी फिर हम जाने की तैयारी करेंगे।” राशि ने माँ से पूछा। … Read more

बहुत कर लिया बर्दाश्त  –  ज्योति आहूजा

आज सुधा अपनी जिंदगी का वह हिस्सा फिर से याद कर बैठी जिसमें  वह इतनी कमजोर और लाचार थी कि आज भी वह समा उसके जहन में कड़वी याद के रूप में उभर कर सामने अा गया। “बात उन दिनों की है जब सुधा जीवन के उस मोड़ पर थी जब वह ना तो बच्ची … Read more

एक भाई दूज ऐसी भी – उषा गुप्ता

“आई, दिवाली पांच दिन तक क्यों मनाते हैं ?”नन्हीं रूपा ने सोफ़े को झटकते हुए पूछा। “बेटा, इस समय पांच दिन तक हर रोज नया त्यौहार होता है ना इसलिए ।” माँ ने सोफे के कुशन बिछाते हुए कहा। “एक तो दिवाली और एक धनतेरस मुझे मालूम है ,और क्या आई ?” रूपा माँ का … Read more

इत्तफाक – विजया डालमिया 

पर फड़फड़ाते हैं अरमानों के अल्फाज बनकर उतर जाते हैं पन्नों पर कोई कहानी बनकर। वह एक गुनगुनाती, मुस्कुराती सुबह थी ।मैं कार से उतर कर अपनी धुन में आगे बढ़ रही थी। इतने में ही एक बाइक मेरे बगल से तेजी से निकली ।सड़क पर थोड़ा कीचड़ था जिसके छीटों ने मेरे कपड़ों को … Read more

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