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मन की गिरहें –  लतिका श्रीवास्तव

शारदा जी आ तो गईं है  शशांक के साथ पर मन बिलकुल बुझा बुझा सा है….शशांक के पापा के साथ एक ही बार बेटा बहु के पास आई थी ….सारी सुविधाएं होते हुए भी दोनो का मन ज्यादा दिन वहां नहीं लग पा रहा था तब शशांक से कहकर वापिस अपने खुद के घर में लौट आए थे।शशांक बहुत नाराज़ हुआ था उसकी दिली ख्वाहिश थी कि पापा के रिटायरमेंट के बाद हम दोनों को उसी के साथ रहना चाहिए।लेकिन शुरू से अपने मन मुताबिक जीवन जीने वाले उसके पापा को किसी भी दूसरी जगह ज्यादा दिन भले ही बेटा बहु का घर ही हो!!!  अच्छा ही नहीं लगता था।

पर अचानक उन्हें दिल का दौरा आया और शारदा जी को अकेला कर गया….हतप्रभ सी शारदा जी के लिए बिना पति के ज़िंदगी की कल्पना करना भी असम्भव था।शशांक ने इस बार उनकी एक नहीं सुनी थी .. “नहीं मां अकेले तो आपको रहने ही नहीं दूंगा ….।.हजार बार उसी घर में पति की यादों के ही साथ रहने की उनकी दिली अभिलाषा और मनुहार अपने बेटे की जिद के सामने पराजित हो गई थी।अब वो शशांक से अपने मन की उलझनें कैसे साझा करतीं!!!!

बहू बेटे पर मैं बोझ हो जाऊंगी…. उन दोनों की गृहस्थी मेरे आने से अव्यवस्थित हो जायेगी…. मिनी बहू भी जॉब करती है….मेरे लिए उसको परेशान होना पड़ेगा….पिछली बार तो उसने कुछ दिनों की छुट्टी ले ली थी ऑफिस से…थोड़े दिनों के लिए आना रहना अलग बात है पर अब हमेशा के लिए उनके साथ रहने के नाम से ही जैसे उनके शरीर का रक्त सूखा जा रहा था…..इतने सारे उनके आने जाने वालों के साथ मेरा एडजस्टमेंट कैसे हो पाएगा….मिनी की बिलकुल इच्छा नहीं होगी!! शशांक की जिद के कारण वो विवश हो गई होगी…मिनी को बहुत बुरा लग रहा होगा!!..मेरे जाने से कोई विवाद की स्थिति ना बन जाए… हे ईश्वर इस बुढ़ापे में क्या हाल कर दिया मेरा..!!अपना पति अपना घर सब छूट गया…! अब तो मैं मिनी का किचन भी ज्यादा नहीं संभाल पाऊंगी …. मुझसे ज्यादा काम नहीं हो पाता है और सबकी खाने की पसंद भी बदल गईं हैं…..सबसे बड़ी समस्या उनके लिए अलग से कोई कमरा भी नहीं है वहां…. उन्हें वहीं बैठक में सोना पड़ेगा इतने खुले कमरे में उन्हें नींद ही नहीं आती …!शारदा जी अपनी आगे आने वाली ज़िंदगी के बारे में बहुत आशंकित ,विवश संकुचितऔर उद्विग्न थीं।



“मां…मां  शशांक की आवाज से वो जैसे नींद से जागी.. हां बेटा ….अपनी विवश व्यथित मनोदशा को छुपाने का भरसक प्रयास करते हुए शारदा जी ने कहा।….बस थोड़ी देर में घर आ जायेगा मां …शशांक ने उत्साह से बताया तो शारदा जी का दिल फिर से बुरी तरह धड़क उठा….अब क्या होगा??

घर आ गया …मिनी बाहर ही खड़ी थी ..शशांक ने कार का दरवाजा खोला ही था कि तब तक मिनी ने आगे बढ़कर उनके पैर छू लिए और हाथ में पकड़े कलश के पानी को उनके चारों ओर घुमाया ..जैसे वो मिनी के आने पर करती थीं… दीप जलाकर उनकी आरती उतारी और बड़ा सा बुके देकर स्वागत करते हुए गले से लगा लिया…मां आपका स्वागत है आपके ही घर में….मिनी ने बहुत उल्लास से कहा…

शारदा जी अचरज से उन सुखद पलों को जी ही रहीं थीं की मिनी उनका हाथ पकड़ के बहुत संभाल के उन्हे घर के अंदर ले आई ….ये आपका कमरा है मां …मेरा कमरा…!शारदा जी आश्चर्य से देख रही थीं.. मिनी ने अपना बेडरूम खाली करके शारदा जी का सभी सामान वहां सुव्यवस्थित तरीके से सजा दिया था…उनकी पसंदीदा किताबों से भरी एक अलमारी भी कोने में रखी थी….उनके ठाकुर जी भी छोटे से पूजा घर में सुशोभित हो गए थे….!

अरे मिनी .. नहीं नहीं बहू मेरे कारण तुम लोग परेशान नहीं हो मैं तो कहीं भी रह लूंगी …. ये तुम्हारा कमरा है मैं यहां नही रहूंगी…शारदा जी की आंखों में आंसू आ गए।



अरे मां क्या तेरा मेरा कमरा लगा रखा है….अपना ड्राइंग रूम कितना बड़ा है इसी में पार्टीशन करके हम लोगों का कमरा यहां शिफ्ट हो गया है देखो….शशांक उन्हे पकड़ के

अपने शिफ्टेड कमरे  में ले गया..ये ज्यादा अच्छा है मां।

…..और हां मां ये क्या बहू बहू की रट लगा रखी है आपने आपकी बेटी हूं मैं…आप ही तो कहतीं थीं मेरी कोई बेटी नहीं है …मैं हूं तो आपकी प्यारी बेटी…मिनी ने उनके गले लग कर बहुत लाड़ से कहा…।तब तक किसी ने आके उनके पैर छू लिए …ये श्यामा है मां यहीं रहेगी दिन भर आपके साथ और आपके सभी कामों में आपकी सहायता करेगी ….मिनी कह रही थी…..

…….बस मांअब से आप निसंकोच होकर अपनी बेटी के साथ अपने घर में रहिए ,खूब किताबें पढ़िए,मॉर्निंग इवनिंग वॉक करिए, फिल्में देखिए …..मिनी कह ही रही थी कि शशांक ने बात काटते हुए कहा .. हां और रोज मेरा पसंदीदा नाश्ता बनाइए तरस गया मां आपके हाथ की मटर की कचौड़ी गाजर का हलवा दही बड़े……….

वो खुश होकर बोलता जा रहा था और शारदाजी के मन की तो  सारी गिरहें खुलती जा रहीं थीं…जैसे घनघोर तूफान और बारिश के बाद खिली धूप के साथ खुला स्वच्छ आसमान ……..।

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