कलंकित बहू – संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi

  आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी मोहिनी देवी एक सशक्त महिला होने के साथ साथ घर की मुखिया का किरदार भी बखूबी निभा रही थीं…I दो बेटों और पोते पोतीयो से भरा पूरा परिवार को उस दिन ग्रहण लग गया जब एक कार दुर्घटना में मोहिनी देवी के पति और छोटे बेटे अमन की आकस्मिक मौत हो गयी…..पूरा शहर स्तब्ध…..अचानक जैसे सब कुछ बिखर गया….I

धीरे-धीरे समय बीतने के साथ छोटी बहू विभा को पति के जगह पर अनुकम्पा नियुक्ति में नौकरी मिल गई…I अमन के मौत के बाद विभा जिन्दा लाश बन कर रह गई थी… उसने खामोशी को अपना कवच बना लिया था….घर के अन्य सदस्य धीरे-धीरे समान्य जिंदगी में लौट ही गये थे.. कमी थी तो सिर्फ विभा के जिन्दगी में…..!! जिसे मोहिनी देवी भलीभांति समझ रहीं थीं पर नियति के आगे मौन थी…!

   अब नौकरी लगने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी …कल से विभा को ऑफिस जाना था….एक नई जिंदगी की शुरुआत….I  ये सच है कि विभा भी एक नये माहौल में सब कुछ भूलना चाहती थी… धीरे-धीरे विभा खुश रहने लगी , उसके मृतप्राय हुए अरमान फिर से अंकुरित होने लगे….I

हालांकि अमन की कमी विभा के दिल में एक टीस बनकर कभी-कभी दर्द दे ही जाती थी….

सुबह शाम घर का काम और दिन भर ऑफिस में…..समय का पता ही नहीं चलता, बहु को खुश और व्यस्त देख मोहिनी देवी भी संतोष की साँस ली…..I

पर कहते हैं ना…यदि आप खुश हैं तो वैसे ही कुछ लोगों की परेशानी बढ़ जाती है …ठीक यही हुआ विभा की जिंदगी में…….मुहल्ले में कानाफूसी चालू हो गई….देखो तो विभा को नौकरी मिलते ही कैसे बदल गयी…दो तीन महीने तो बहुत दुखी होने का नाटक रची अब देखो…..कैसे बन ठन के ऑफिस जाती है….तरह तरह की बातें होने लगीं…..! मुहल्ले की एक महिला ने तो यहाँ तक कह दिया कि आज उसने मोटर सायकिल में किसी के साथ कहीं जाते हुए भी देखा है…..

“अरे ये तो बहु के नाम पर कलंक है “

  जबकि विभा ने ऑफिस से लौटते ही मोहिनी देवी को बताया था कि आज उसे ऑफिस के किसी काम से दूसरे कार्यालय जाना था जो काफी दूर था और गरमी की चिलचिलाती धूप….! उसी समय रास्ते मे अमन के पुराने दोस्त अतुल मिल गए थे और वो उन्हें कार्यालय तक छोड दिए थे…I

बस फिर क्या था , काड़ी लगाने के लिए इतनी सी बात ही काफी थी…

हमने अपनी आंखों से देखा है उसे किसी अन्य मर्द के साथ मोटरसाइकिल में जाते हुए …जैसे न जाने कितनी अनाप-शनाप बातें…

अरे इसके पीछे की वास्तविकता पर भी तो कभी गौर किया होता ..पर नहीं अपना मुंह है कह दिया कुछ भी …पैसे थोड़ी ना लगने हैं…!

अतुल अमन का काफी पुराना मित्र था अमन के साथ हमेशा उसके घर आना जाना होता था …अमन की मौत के बाद जब भी उसके घर आता था वहाँ विभा को दुखी देख अतुल विभा के प्रति बहुत सहानुभूति रखता था….I अमन के होते हुये अतुल का घर आना किसी को नहीं अखरा….I अब जब अमन नहीं है अतुल घर आता है तो मुहल्ले वाले की कानाफूसी शुरू हो जाती है…I

साथियों …. ” क्या एक स्त्री स्वयं का… स्वयं पर …स्वतंत्रता या प्रतिबंधता निर्धारित नहीं कर सकती…! उसे कैसे रहना है….कैसे जीना है….कैसा दिखना है….ये सब परिवार या समाज वाले निर्धारित करेंगे ”  उसे दुबारा खुश होने का अधिकार नहीं है…I

एक स्त्री जिसका पति अतीत बन चुका है …उसे अपने वर्तमान को संवारने का अधिकार नहीं I हमारी सोच इतनी संकीर्ण क्यों… ?

हमें तो उसकी खुशी में खुश होना चाहिए ना.. फिर उजूल फिजूल की बातें… अरे कम से कम खुश नहीं हो सकते तो शांत ही रहना चाहिए.. ये नकारात्मक टिप्पणी देकर हम क्या साबित करना चाहते हैं…!

    हम बगले झाँकना कब बंद करेंगे कामकाजी महिलाओं के प्रति शक का नजरिया विकृत मानसिकता का परिचायक नहीं है ?….खैर….!!

      जब आग लगती है तो दूर तक धुंआ उठता है और यही धुंआ मोहिनी देवी के कानो तक पहुंचा…I

आसपास के लोगों को ऐसा विश्वास था विशेष कर महिलाओं को …कि मोहिनी देवी को जब इन सब बातों की  भनक पड़ेगी तो उनके घर पर आपसी  ” तकरार “अवश्य होगा …मोहिनी देवी के रौबदार व्यक्तित्व से सबको यही उम्मीद थी…!

       अगले दिन मोहिनी देवी ने सबेरे उठ कर एक छोटा सा पूजा का कार्यक्रम रखा और मुहल्ले तथा परिचितों को पूजा में सम्मिलित होने का निमंत्रण दिया, पूजा समाप्त होने पर प्रसाद बाटँते वक़्त मोहिनी देवी ने सभी से आग्रह किया….एक सप्ताह के बाद एक छोटा सा कार्यक्रम हमने और रखा है …आप सभी आमंत्रित है…..सभी महमानों के साथ विभा भी अचंभित थी…I

मोहिनी देवी ने अपनी बात की  तारतम्यता बनाए रखी…

      हमने अपनी बहु विभा की सगाई अतुल के साथ रखी है …आप सब आशीर्वाद देने अवश्य आयें ….I मोहिनी देवी एक साँस में बोलती गईं… अरे ये क्या बोल रही है मोहिनी देवी ….? सारे मेहमान हक्का बक्का आखें फाड़ कर देखते रहे…I

आपसी  तकरार की बात तो दूर उन्होंने तो बड़े सहज और सरल तरीके से आज अपनी एक ऐसी छवि प्रस्तुत की …जो सख्त कठोर होते हुए भी एक कोमल दिल रखती है… और जो शायद नारी के मन की व्यथा भली भाती समझती है..!

हाँ विभा , मैंने अतुल और उसके परिवार वालों से बात कर ली है और अतुल की आँखों में तुम्हारे लिये प्यार और सम्मान देखा है मैंने….I

” आज मोहिनी देवी तुम्हारी सास नहीं एक माँ बन कर फैसला ले रहीं है “….

“और जब एक माँ फैसला लेती है तो उसमे हमेशा बच्चों का हित छिपा होता है.”…I

कल्पना से परे मोहिनी देवी का निर्णय……तेज तर्रार, रौबदार व्यक्तित्व के पीछे एक माँ का दिल भी तो था मोहिनी देवी में….और मोहिनी देवी के इस फैसले ने सबका मुँह बंद ही नहीं किया वरन विभा को कलंकित बहू होने से भी बचा लिया……!!

यह सच है साथियों ..जब अभिभावक किसी फैसले का विवेक बुद्धि और सोच समझकर समर्थन करते हैं तो किसी की मजाल नहीं की कोई काना फूसी या आवाज उठा कर उपेक्षा कर सके…!

(स्वरचित मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित अप्रकाशित  रचना )

साप्ताहिक विषय

 #तकरार

   संध्या त्रिपाठी

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!