सासू मां मुझे माफ कर दो.. – अर्चना खंडेलवाल Moral Stories in Hindi

‘ये तो खुशी की बात है, रिंकू की शादी तय हो गई, नंदिता जी अपने पति कमल जी से कह रही थी, छोटी तो कब से बहू ढूंढ रही थी, पर इतनी जल्दी पन्द्रह दिनों में ही शादी कर पायेंगी।

क्यों ना कर पायेगी, तुम्हारी बहन जो है, तुम्हारे सारे गुण उसके अंदर है, देखना हमारी साली सब कर लेगी, अब सब काम छोडो और शादी में जाने की तैयारी कर लो, कमल जी हंसते हुए बोले।

नंदिता रसोई में गई और गैस पर चाय चढ़ा दी, तभी उनकी बहू नीतू आई, मम्मी जी मै आ तो रही थी, और उसने चाय का काम संभाल लिया।

बहू तुम्हारे देवर रिंकू की शादी तय हो गई है, पन्द्रह दिनों बाद शादी है, तुम्हें जो भी तैयारी करनी है, आराम से कर लेना, और हां शादी में पहननें के लिए अच्छे से कपड़े और जेवर रख लेना, तुम अपनी शादी के बाद पहली बार किसी शादी में जा रही हो।

ये सुनकर नीतू खुश हो गई, पहली बार वो अपनी मौसी सास के यहां जा रही है, वहां ननिहाल पक्ष के और लोगों से भी मिलना हो जायेगा।

नियत समय पर नंदिता जी, अपने पति, बेटे नीरज और बहू नीतू के साथ शादी में पहुंच गई, शादी की सभी रस्में हो रही थी, तभी नीतू की नजर दूल्हन को भेजे जाने वाले लहंगे पर पड़ीं, वाह! मौसी जी आपने तो बहू के लिए बड़ा ही सुंदर लहंगा चढ़ाया है, काफी महंगा होगा?

इसका काम भी कितना सुन्दर है।

हां, बहू को खुद ही पसंद करने बुलाया था, अब उसे यही पसंद आया तो सोचा शादी तो एक बार होती है, तो बहू की इच्छा पूरी कर दी, अब थोड़ा महंगा जरूर है,मौसीजी ने हंसते हुए कहा।

तभी नीतू की नजर होने वाली बहू के गहनों पर जा ठहरी, मौसीजी गहने तो आपने बड़े भारी चढ़ायें है।

इतने सुंदर गहने है, सारे नये लगते हैं, लेटेस्ट डिजाइन के भी है, बहू के लिए तो आपने बहुत कुछ किया है और नीतू ने शिक़ायती नजरों से अपनी सास नंदिता जी को देखा और अपनी बात पूरी की।

नंदिता जी समझ गई कि नीतू अपनी शादी के सामानों की तुलना होने वाली बहू से कर रही है, पर वो उस वक्त कुछ ना बोली। अच्छे से शादी हो गई और सब घर लौटकर वापस आ गये।

घर आते ही नीतू ने सबसे बात करना बंद कर दिया, नंदिता जी ने पूछा तो वो यही बोली, आपने अपनी बहू के लिए कुछ भी अच्छा नहीं किया, मेरा तो शादी का लहंगा भी सुंदर नहीं था और जेवर भी आपने सारे ही पुराने चढ़ा दिये, एक भी गहना नया नहीं चढ़ाया, आपने तो मुझे सस्ते में ही अपनी बहू बना लिया है।

आपने तो हर जगह मेरी उपेक्षा की है, मुझे तो अपने होने वाले ससुराल से बहुत सारी अपेक्षाएं थीं, घर की इकलौती बहू बनकर आई थी, पर मेरे गहनों और कपड़ों में आपने बड़ी कंजूसी कर दी। ये सब नंदिता जी सुनती रह गई।

नीतू ऐसी बात नहीं है, हमने अच्छे से अच्छा लहंगा तुम्हें चढ़ाया था, अब शादी को एक साल भी होने जा रहा है और यहां तो थोड़े ही महीनों में फैशन बदल जाता है, और तुम्हें बुलाया तो था लहंगा पसंद करने को, पर तुम्हारी दादी ने मना कर दिया था कि मेरी पोती शादी से पहले घर से बाहर ना जायेगी, आप अपने हिसाब से सब सामान ले लो।

ठीक है, मेरी दादी ने कहा था, पर गहने तो आपने पुराने ही चढ़ा दिये थे, नीतू ने फिर रूआंसी होकर कहा।

बहू गहने पुराने नहीं है, मैंने धीरे-धीरे पैसे जोड़कर बनवाये थे, क्योंकि तेरे ससुर जी की अच्छी नौकरी नहीं थी, तो ज्यादा कभी पैसा रहा नहीं, मेरे गहने तो नीरज की पढ़ाई और करियर बनाने में लग गये थे।

जब नीरज की नौकरी लगी तभी मै पैसे जोड़कर एक-एक करके बहू के लिए गहने बनवाकर रखती चली गई, उनमें से एक भी गहना पुराना नहीं है, सब तुम्हारे लिए नये ही बनवाये है, नंदिता जी ने समझाना चाहा।

हां तो ठीक है, सभी बनवाते हैं, पर डिजाइन तो सुंदर बनवाना चाहिए, मुझे तो एक की भी डिजाइन पसंद नहीं आई, मौसीजी ने देखो कितने लेटेस्ट डिजाइन के बनवाये है, उनकी पसंद आपसे तो बहुत अच्छी है, ये कहकर नीतू अपने कमरे में चली गई। नंदिता जी की आंखें भर आई। बड़े ही जतन से वो अपने इकलौते बेटे नीरज के लिए बहू लाई थी, नीतू सब तरह से काम कर लेती थी, खाना पकाने में भी माहिर थी, बस उसकी तुलना करने की आदत से वो परेशान हो जाया करती थी, कहीं भी जाकर आयेगी या कोई भी घर पर आयेगा तो वो उससे तुलना करने लगती थी, उसकी इसी आदत के कारण घर का माहौल तनावपूर्ण सा रहता था।

नंदिता जी काफी सीधे और सरल स्वभाव की थी, अपने पति कमल जी की कमाई में उन्होंने हर तरह से निभा लिया, कभी भी किसी बात के लिए उलाहना नहीं दिया, उनके घर में चाहें पैसों की कमी रही पर घर में हमेशा एक सूकून भरा, प्यार वाला माहौल रहा है, क्यों कि घर की गृहणी ही जब मन से संतुष्ट थी तो घर में कभी क्लेश नहीं होता था, वो कभी अपनी आर्थिक स्थिति की तुलना अपनी बहनों से नहीं करती थी, उन्होंने और कमल जी ने जीवन का हर लम्हा सूकून से जीया है, लेकिन जब से नीतू बहू बनकर आई है, घर का सुख और शांति ही चली गई है और अब नीतू की तुलना करने की आदत से सभी परेशान हो चुके हैं।

नीतू कभी भी सन्तुष्ट नहीं रहती थी, वो काम अपनी मर्जी से करती थी, अपनी पसंद का कपड़ा चुनती थी, लेकिन जब वो अपने से बेहतर कोई चीज या कपड़ा देख लेती थी तो घर में क्लेश मचा देती थी।

शादी को दो साल हो गये और उसने एक बेटी को जन्म दिया, बेटी का नाम टीया रखा। टीया बड़ी ही प्यारी और चुलबुली थी। एक दिन नीतू ने नीरज से कहा कि, मुझे टीया के पहले जन्मदिन के लिए नई फ्रॉक लेनी है और बिल्कुल वैसी ही लेनी है, जैसी आपके दोस्त की बेटी ने अपने पहले जन्मदिन पर पहनी थी।

ये सुनकर नीरज चौंक गया, नीतू मेरा दोस्त खानदानी अमीर है, और वो फ्रॉक बड़ी महंगी है और ब्रांडेड भी है, वो दस हजार से कम की नहीं होगी, और साल भर की बच्ची के लिए इतना महंगा कपड़ा खरीदकर क्या करेंगे?

साल भर में वो छोटा हो जायेगा, नीरज ने समझाना चाहा।

आपके लिए मेरी खुशियां जरा भी मायने नहीं रखती है, मै क्यूं औरों की तरह खुश नहीं रह सकती हूं, अपनी बेटी को औरों की तरह महंगी फ्रॉक नहीं पहना सकती हूं! नीतू रोने लगी।

नीतू समझा करो ये तुम औरों से क्यों अपनी तुलना करती हो, महंगी फ्रॉक पहनाने से ही तुम्हें खुशियां मिलेगी क्या? हम एक अच्छी सी ड्रेस वैसे भी ले सकती है? और हम बहुत खुश है, तुम खुश भी रह सकती हो, वो सब तुम्हारे हाथ में है, अच्छा घर है, पति है, सास-ससुर भी तुम्हें तंग नहीं करते हैं, जीवन में और क्या चाहिए? पर नीतू समझी नहीं और उसने गुस्से में बेटी का पहला जन्मदिन ही नहीं मनाया, कमल जी और नंदिता जी ने भी उसे बहुत समझाया था पर वो मानी नहीं।

एक दिन नीतू गुस्से से पैर पटकते हुए घर आई और नंदिता जी से कहने लगी, मम्मी जी अब हम भी नया घर लें लेंगे? ये घर काफी पुराना सा हो गया है, जगह-जगह से रंगहीन हो गया है।

उसकी बात सुनकर नंदिता जी समझ गई कि आज जरूर किटी में कुछ हुआ होगा, इसलिए ये भी नया घर लेना चाह रही है, अभी इस फ्लैट में आये हुए दस साल ही हुए है, और घर तो सालो साल चलते हैं, उन्हें इतनी जल्दी बदला तो नहीं जाता है। उन्होंने कुछ नहीं कहा और बोली, तुम नीरज से बात कर लेना।

नीतू तो जैसे आज नीरज के आने का ही इंतजार कर रही थी, आते ही बरस गई, मेरी सहेली ने नया घर लिया है, बड़े-बड़े कमरे हैं, कमरों के बाहर बड़ी-बड़ी बॉलकोनी है, सामने पार्क है, और बहुत ही शानदार इंटीरियर करवाया है, आप एक बार उसका घर देख लो फिर हम भी वैसा ही बनवा लेंगे।

ये सुनते ही नीरज बोला, हमारा घर भी अच्छा है, सामने दो बॉलकोनी है और थोडी दूर पर पार्क है, तो हम क्यूं घर बदले? इतनी मेहनत से मम्मी -पापा ने ये घर लिया है, सब कुछ ठीक ही तो है, फिर हमारा इतना बजट भी नहीं है।

सब कुछ कहां ठीक है, कमरे कितने छोटे हैं, मेरी सहेली का घर देखोगे तो देखते ही रह जाओगे? और हम कहां अच्छे से रह रहे हैं, उसका घर उसके ठाठ-बाट तो आपने देखे ही नहीं, मुझे कुछ नहीं पता, मुझे भी वैसा ही घर चाहिए ताकि मै भी शान से रह सकूं, ये घर बेच देंगे और नया लोन ले लेंगे, घर खरीदने में कितना सा तो पैसा लगता है।

अच्छा! लोन तो ले लेंगे  पर ईएमआई भी चुकानी होती है, घर खरीदने में मम्मी -पापा की बड़ी मेहनत है, उन्होंने प्यार से घर सजाया है, फिर हम जैसे भी है खुश हैं, तुम बेवजह दूसरों से तुलना करके खुद भी दुखी होती हो और हमें भी दुखी करती हो, पूरे घर में सबको सुनाती रहती हो, सबसे झगड़ा करके घर का माहौल खराब करती हो, ये तो ठीक नहीं है, नीरज ने समझाया  पर नीतू नहीं समझी और अपनी बेटी को लेकर गुस्से से मायके चली गई और जिद करने लगी अगर आप मेरे रहने के लिए नया घर नहीं लेंगे तो मै कभी वापस नहीं आऊंगी।

बेटा! उसे रोक ले, वो घर की लक्षमी है, उसे खुश रखना चाहिए, नंदिता जी ने बीच बचाव किया, नहीं मम्मी उसे जाने दो आज चार साल हो गये है, उसने सबका जीना मुश्किल कर रखा है, जो औरों से अपनी तुलना करता है वो कभी खुश नहीं रहता है।

बेटा, हम उसे समझायेंगे, ताकि वो सही राह पर चलेगी।

मम्मी, वो कभी भी नहीं समझेगी, और हमारी जिंदगी भी नरक कर देगी, ऐसी पत्नी से तो ना हो तो ही अच्छा है, नीरज ने गुस्से में कहा।

नीतू अपनी बेटी को लेकर मायके चली गई,अगले दिन जब नीरज ऑफिस गया तो नंदिता जी बहू के मायके चली गई।

उस वक्त नीतू अपने कमरे में थी, नीतू के मम्मी-पापा को नंदिता जी ने सारी बातें बताई तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि उनकी बेटी ने चार सालों से ससुराल वालों का जीना मुश्किल कर रखा है।

पापा मै अब कभी ससुराल नहीं जाऊंगी, यहीं आपके पास रहूंगी, नीतू ने कहा।

ये सुनकर नीतू के पापा ने उसे उठाकर एक थप्पड़ दे मारा तो नीतू देखती रह गई।

पापा, आपने मुझे थप्पड़ मारा !!!!  मेरी गलती तो बताओं, मैंने ऐसा क्या कर दिया है।

हां मारा !! क्योंकि तूने ससुराल में हमारे संस्कारों की धज्जियां उड़ा दी है, तूने आपनी मम्मी से क्या यही सीखा है? तेरी मम्मी ने हमेशा मेरा साथ दिया है, जैसा भी रखा उस माहौल में हमेशा खुश रही, तेरी मम्मी ने कभी हमारे घर की तुलना किसी ओर से नहीं की, तुलना करने से कुछ हासिल नहीं होता है, जिसे तुलना करने की आदत हो जाती है, वो कभी खुश नहीं रहता है, सबको अपने कर्मो से नसीब होता है, जिसके भाग्य में होता है उसी को ही मिलता है, तू इस तरह का जीवन जी रही थी रोज अपने पति और सास को ताने देती थी, अगर हमें पहले पता होता तो मै ये थप्पड़ तुझे पहले लगा देता।

रिश्तों की डोरी बहुत मजबूत होती है, ऐसे ही तोड़ी नहीं जाती है, जो तू एक बार जिद में तोड़ देगी तो कहीं की भी नहीं रहेगी।

ये सब देखकर नीतू की मम्मी भी उसे समझाती है, बेटी घर की गृहणी के व्यवहार और सोच पर पूरे परिवार की खुशियां निर्भर करती है, तूने अपने व्यवहार और तुलनात्मक सोच से घर में इतनी अशांति फैला रखी है, जो तेरे पास सुख है, तूने उसकी सदा उपेक्षा की है और जो नहीं है उसके पीछे भागे जा रही है, ऐसी सोच से तू कभी खुश नहीं रही और ना ही ससुराल वालों को तूने खुश रखा। आज तो तेरे सास-ससुर और पति तुझसे परेशान हैं, कल को तेरी यही घटिया सोच तेरी बेटी पर भारी पड़ जायेगी। तू उसकी भी तुलना और लड़कियों से करेगी, पढ़ाई को लेकर, रूप रंग और अन्य गतिविधियों को लेकर तू कभी संतुष्ट नहीं रहेगी, जब तू ही संतुष्ट नहीं रहेगी अपनी बेटी की तुलना करती रहेगी तो वो भी खुश नहीं रहेगी और तुझसे चिढ़ने लग जायेगी और एक दिन दूर हो जायेंगी।

ये तो तेरी किस्मत अच्छी है जो तुझे इतने अच्छा परिवार मिला है,तेरी सास ने भी हम लोगों को ये बात तुझे प्यार से समझाने को कहा क्योंकि उन्हें लग रहा था तू अपने मम्मी-पापा की बात तो जरूर मानेंगी।

इतना अच्छा घर मिला है, पति मिला है, कोई तेरे पास बहुत ज्यादा पैसों की कमी भी नहीं है।

घर है सभी सुविधाएं हैं,घर छोटा हो या बड़ा क्या फर्क पड़ता है? घर में तो प्यार और शांति होनी चाहिए, कपड़े ब्रांडेड हो या साधारण सब अपने बजट में ही लेना चाहिए, जिसमें हम खुश रहें और हमारे पति के चेहरे पर भी मुस्कान बनी रहें।

हमेशा नीचे देखकर चलना चाहिए, जो हमसे छोटे लोग हैं, जो हमारे पास है वो लोग उस तरह का जीवन जीना चाहते हैं पर हम है कि ऊपर की  ओर देखकर चलते हैं, हमसे ज्यादा अमीर ज्यादा समृद्ध लोगों से अपनी तुलना करने लगते हैं और हमें इससे सिवाय दुःख, चिड़चिड़ापन और निराशा के कुछ भी हासिल नहीं होता है।

नीतू की आंखें शर्म से झुक गई, वो कुछ नहीं कह पाई, कभी अपनी बेटी की ओर देख रही थी तो कभी अपनी सास की ओर, फिर दौड़कर वो सास के पैरों में गिर पड़ी, मम्मी जी मुझे माफ कर दो, मैंने आप सबको बहुत तकलीफ़ दी है, आज पापा के थप्पड़ और मम्मी की सीख ने मुझे जीवन का बहुत बड़ा पाठ सिखा दिया है, अब मै सही राह पर चलूंगी, मुझे जो सुख मिला है मैंने उसकी उपेक्षा करके अपने जीवन में बेवजह के दुःख पाल लिये थे। अब जो भी है, जैसा भी है, जितना भी है, मैं उसी में खुश और संतुष्ट रहूंगी और रिश्तों की मजबूत डोर टूटने नहीं दूंगी।

नंदिता जी ने अपनी बहू को गले लगा लिया, फिर नीतू मायके एक क्षण भी नहीं रूकी, अपनी बेटी और सास के साथ वो ससुराल चली गई।

धन्यवाद

लेखिका

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक अप्रकाशित रचना 

रिशतो की डोरी टूटे ना

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