समझदारी से रिश्ते मजबूत बनते है । – संगीता अग्रवाल Moral Stories in Hindi

 ये क्या है सुन्यना आज फिर पोहा बनाया है तुमने नाश्ते मे तुमसे कितनी बार कहा है मुझे पोहा नही पसंद !” रितेश नाश्ता देख गुस्से मे बोला ।

” वो मेरी आँख देर से खुली फिर जल्दी जल्दी मे यही बन पाया बस आज खा लीजिये कल कुछ ओर बना दूंगी!” सुन्यना बोली ।

” तुमसे कितनी बार बोला है जल्दी उठा करो थोड़ा पर तुम्हारा रोज का यही है !” ये बोल रितेश गुस्से मे थोड़ा बहुत खा चला गया। 

सुन्यना को बुरा लगा और उसकी आँखों मे आंसू छलक आये पर अपने बच्चो के सामने वो खुद को कमजोर नही दिखाना चाहती थी इसलिये फीकी मुस्कान के साथ वो बच्चो को नाश्ता खिलाने लगी और फिर उन्हे स्कूल भेज दिया। बच्चो के जाने के बाद उसने घर के बाकी काम समेटे और फिर वही सोफे पर लेट कुछ सोचने लगी। 

यूँ तो रितेश सुन्यना से प्यार करता था उसकी हर जरूरत का ध्यान रखता था पर कभी कभी छोटी छोटी बात पर उसका भड़कना सुन्यना को समझ नही आता था। 

” मम्मा मम्मा आप यहां सोफे पर क्यो सोई है ?” अचानक बेटी पीहू की आवाज़ से सुन्यना को होश आया कि वो बहुत देर से सोफे पर लेटी है ।

” कुछ नही बेटा आ गये तुम स्कूल से अब चलो कपड़े बदलो मैं खाना देती हूँ !” सुन्यना बोली। 

” मम्मी पापा गंदे है आपको डांटा उन्होंने इसलिए आप उदास हो !” अचानक उसका छह साल का बेटा कन्नू गुस्से मे बोला।

” नही बेटा ऐसा नही बोलते पापा को ब्रेकफास्ट अच्छा नही लगा इसलिए बोले वो अभी तुम जाओ कपड़े बदलो !” मुस्कुराते हुए सुन्यना बोली । 

अगले दिन रात के खाने पर अचानक रितेश ने जैसे ही खाना खाना शुरु किया उसे सब्जी मे स्वाद नही आया स्वाद तो बच्चो को भी नही आ रहा था पर वो रितेश को देख डर गये कि अब पापा मम्मी को फिर गुस्सा करेंगे ।

” सुन्यना तुम्हारी तबियत सही नही है ?” पर बच्चे ये देख हैरान रह गये कि पापा ने गुस्सा होने की जगह प्यार से पूछा।

” हम्म हाँ दोपहर से थोड़ा बुखार और सिरदर्द है ..!” सुन्यना बुझे स्वर मे बोली। 

” तुम अपने कमरे मे जाकर आराम करो मैं तुम्हारे लिए दूध और दवाई लाता हूँ !” रितेश बोला।

” अरे नही आप खाना खाइये मैं ठीक हूँ !” सुन्यना बोली पर रितेश ने जबरदस्ती उसे कमरे मे भेज दिया पर सुन्यना उसे पहले खाना खत्म करने की बोल कर गई । 

” पापा आज आप गुस्सा नही हुए ?” कन्नू ने हैरानी से पूछा।

” क्यो बेटा गुस्सा क्यो ?” हँसते हुए रितेश बोला।

” आज मम्मा ने सब्जी अच्छी नही बनाई फिर भी आप आराम से खा रहे हो जबकि कल पोहा अच्छा बना था तब भी गुस्सा थे आप !” इस बार पीहू बोली। 

” बेटा कल मेरा पोहे का मन नही था तो थोड़ा गुस्से मे बोल गया पर आज तुम्हारी मम्मा की तबियत खराब है उसने जैसा भी खाना बनाया ठीक है । हम गुस्सा अपनों पर ही करते है और ध्यान भी अपनों का ही रखते है । बीमारी मे अगर उससे थोड़ी बहुत सब्जी बेकार हो भी गई तो क्या हुआ रिश्ते ऐसे ही निभते है बेटा कभी नर्म कभी गर्म पर एक दूसरे की दुख तकलीफ समझते हुए। वरना रिश्ते जोकि मजबूत भले होते है पर एक नाजुक डोर से बंधे होते है जो कभी भी टूट सकती है। इसलिए हमें उस डोर को बचाने का प्रयत्न करना चाहिए भले थोड़ी तकलीफ क्यो ना झेलनी पड़े !” रितेश ने बच्चो को समझाया। 

” पर पापा मम्मा को जब आप गुस्सा करते हो मम्मा को बहुत बुरा लगता है अगर उन्होंने रिश्ते की डोर तोड़ दी तो ?” पीहू अचानक बोली। 

” नही बेटा ऐसा नही होगा तुम्हारी मम्मा बहुत समझदार है पर फिर भी मैं कोशिश करूंगा अब मम्मा पर गुस्सा ना होऊँ ओके चलो अभी खाना खाओ मैं मम्मा को दूध बिस्किट खिला दवाई देकर आता हूँ !” रितेश ये बोल उठ गया। 

अंदर जाती सुन्यना ने सारी बात सुन ली थी रितेश के कहे शब्द सुन उसकी आंखे नम हो गई । वो सोचने लगी सच मे रिश्ते की डोर भले नाजुक हो पर पति पत्नी समझदारी से चले तो उस डोर को बहुत मजबूत बना सकते है ।

आपकी इसपर क्या राय है बताइयेगा जरूर !!!

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

#रिश्तो की डोरी टूटे ना

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