कैसे हैं ये बंधन – मुकुन्द लाल   : Moral stories in hindi

   “छोड़ दे बाबूजी!… हे मांँजी छोड़ाओ हमको!… बचाओ दीदी!… अरे कोई तो समझाओ!… मेरा बापू मजबूर है, कहाँ से देगा रुपया!… तरस खाओ भैया जी!…”

   नलिनी विलाप कर रही थी। रो-रोकर अपनी जान की भीख मांग रही थी। अपने ही परिवार के अपने सास-ससुर, जेठ-जेठानी और अपने पति को संबोधित  करके गुहार लगाती रही लेकिन उनका पाषाण हृदय नहीं पिघला।

   नलिनी की जेठानी उसकी मर्मांतक पीड़ा और गिड़गिड़ाहट को नजरअंदाज करके चल दी अपनी कोठरी की तरफ। 

   धुंआ उगलने वाली आग से एक-डेढ़ वर्ष के पश्चात अचानक उस दिन लपटें निकलने लगी थी। नलिनी की सास आनंदी के तानों-उलाहनों ने घी का काम किया था आग को भड़काने में। आग की ज्वाला आमदा थी जलाकर भस्म कर देने के लिए उस कुनबे के अस्तित्व को।

   उसके ससुर कालू, सास आनंदी, जेठ नंदु और उसका पति वैभव ने मिलकर जबरन खीच लाया था नलिनी को आंगन से घर के पिछले एकांत हिस्से में ठीक उसी प्रकार जैसे बाघ अपने शिकार को खीचकर ले आता है भक्षण करने के लिए किसी झाड़ी या गुफा में।

   नलिनी रुदन करती रही, साथ-साथ, वह कहती रही, “हम इस घर के बहू हैं… हम तो मर जाएंगे, लेकिन दुनिया थूकेगी इस खांदान पर…”

   इसके जवाब में चारों ने मिलकर उसे पटक दिया जैसे खस्सी को पटक देता है कसाई जिबह करने की नीयत से।

उसके पति ने पैर को रस्सी से बांधते हुए कहा,

” तुम्हारे बाप ने धोखा दिया शादी में… सब्जबाग दिखाया कि स्कूटर देंगे… रंगीन टीवी देंगे. और उसकी जगह छोटा ब्लैक ऐंड भाइट टीवी मेरे माथे मढ़ दिया… जेवर का भी वही हाल किया।… जितना देने को कहा था उससे आधा दिया, वह भी असली है या नकली कहना मुश्किल है… वह तो शहर में ले जाकर जांच करवाने से ही पता चलेगा।… कुछ नहीं दिया, झूठ का पुतला… “

  ” ठग दिया धुर्त ने मीठा-मीठा बोलकर,कि शादी के बाद बाकी सामान और बाकी रुपए दे देगा!… हुंह! ” क्रोध से आंखें लाल पीला करते हुए नंदु ने कहा।

  ” अरे वैभव!… ये तो चीख-चीख कर खतरा में डाल देगी ये ससुरी!… सबसे पहले इसके मुंँह में कपड़ा ठूसो! ” कालू ने कहा।

   वैभव जबरन अपनी पत्नी के मुंँह में कपड़ा ठूसने का प्रयास करने लगा। 

   कालू बड़बड़ाता रहा, ” नाक कट गई सरेआम देख तो जाहिल, कमअकल दुखी के बेटा को उसके ससुर ने मालोमाल कर दिया… इतना दहेज दिया।… हुंह!… एक इसका बाप है।… हमको तो मूर्ख बना दिया… इस ठगी की जड़ में यही चापलूस लड़की है… इसका काम तमाम कर दो… हम अपने बेटे की दूसरी शादी कर देंगे।… झूठा!… धोखेबाज है इसका भाई-बाप सब… “

   उसी समय उसके पड़ोसी के घर की खिड़की बन्द होने की आवाज सुनाई पड़ी

   उस समय मोबाइल का युग नहीं था। संपन्न लोगों के घरों में फोन हुआ करते थे। श्वेत-श्याम टीवी आ गया था। अत्यंत ही अल्प प्रतिशत लोगों के पास रंगीन टीवी था।

   नलिनी का परिवार कस्बेनुमा गांव में रहता था खेती-बाड़ी के सहारे वे लोग जीवन-यापन करते थे।

   अपने पड़ोसी की खिड़की बंद होने की आवाज से उनके कान खड़े हो गए। तीनों बाप-बेटों ने घर के बंद सभी दरवाजों और खिड़कियों का दुबारा निरीक्षण किया। जब वे हर तरह से संतुष्ट हो गए तो पुनः जघन्य कांड को अंजाम देने के लिए वे लोग पहुंँच गए असहाय अवस्था में जमीन पर पड़ी नलिनी के पास।

   “जल्दी कर!… लाओ न करासन रे!… सिर्फ हाथ-गोड़ बांध देने से मर जाएगी!… मुंँह क्या ताक रहा है” 

नलिनी के जेठ ने वैभव को कहा।

   “अरे!… इसको क्या कह रहे हो?… इसका तो दिमाग ही नहीं काम कर रहा है जैसे” कालू ने दांँत पीसते हुए कहा।

   नंदु दौड़ पड़ा करासन तेल लाने के लिए कोठरी की तरफ। 

   लोमहर्षक घटना की बुनियाद रचकर आनंदी चली गई थी अपनी कोठरी में। 

   उसकी आंखों से क्रूरता टपक रही थी। उसके

 चेहरे पर बेरहमी की लकीरें उभर आई थी। 

   कुछ मिनट के बाद ही उसका जेठ करासन तेल लेकर पहुंँच गया था वहांँ पर। 

   आदमखोर भेड़यो ने बिना विलम्ब किए उस

की देह पर करासन तेल उड़ेल दिया। 

   तड़प उठी नलिनी करासन तेल की दुर्गन्ध और मृत्यु-भय से।

   अचानक तल्ख पर धीमी आवाज में कालू ने कहा,

“तुम सब पागल हो… माचिस लाया?” 

   वैभव दौड़ पड़ा माचिस लाने के लिए रसोई घर की तरफ। 

   उसने एक-एक डिबिया को देखा, आलमारी को टटोला लेकिन माचिस नहीं मिला । तब वह क्षुब्ध होकर बड़बड़ाया, “इसी वक्त माचिस को भी गायब होना था… आखिर कहांँ चला गया?… लगता है जादू से किसी ने छूमन्तर कर दिया हो।”

   पल-भर उसने ठहरकर अपनी दृष्टि इधर-उधर दौड़ाई लेकिन माचिस उसे कहीं नजर नहीं आया ।

   नलिनी का प्राण माचिस की डिबिया में ही कैद था।

 डिबिया खुलने भर की देर थी।

   क्षोभ से उसका चेहरा तमतमा उठा था। 

   वह दौड़ पड़ा सीधे अपनी भाभी के पास किन्तु उसकी भाभी ने भी माचिस के बारे में अनभिज्ञता जाहिर की। 

   उधर उसका बापू परेशान था माचिस के लिए। 

   अंत में वैभव अपनी माँ के पास पहुंँचा ।  

   माचिस की मांग अपने पुत्र द्वारा करने पर, क्षण-भर के लिए आनंदी खामोश रही फिर याद करते हुए उसने कहा, ” माचिस तो तेरे बापू ने ही बीड़ी पीने के लिए लिया था।… देख उसके बिछावन पर।” 

   वह बापू की कोठरी की तरफ दौड़ पड़ा। 

   वहांँ से माचिस लेकर वह जैसे ही नलिनी के पास पहुंँचा उसके घर के दरवाजे पर दस्तक होने लगी। 

   दस्तक सुनते ही , बाप-बेटे एक-दूसरे को दहशत भरी निगाहों से देखने लगे।

   पल-भर के लिए सन्नाटा छाया रहा, किन्तु दूसरे ही पल दरवाजे की कुंडी की कर्कश ध्वनि गूंजने लगी।

   नलिनी के सास-ससुर, जेठ-जेठानी और उसके पति के दिल भय से धड़कने लगे। उन लोगों के पैर के नीचे की जमीन खिसकने लगी। कालू ने हिम्मत बटोरकर दरवाजा खोल दिया। सामने पुलिस देखकर उसके चेहरे पर हवाइयांँ उड़ने लगी।

   ” क्या है हुजूर!” उसने हकलाते हुए पूछा।

   क्या है?… अभी बतलाता हूँ! “

   फिर उसने कड़कती आवाज में उससे पूछा,

” तुम्हारी बहू कहाँ है?

   पुलिस के दहकते प्रश्न से वातावरण में सन्नाटा छा गया।

   जब कालू भयभीत निगाहों से पुलिस को देखते हुए निरूत्तर खड़ा रहा तो पुलिस ने कड़कती आवाज में दुबारा पूछा,” अरे कमबख्त!… तुम्हारी छोटी बहू घर पर है या नहीं? 

   “वो!… वो!… “कालू की आवाज कंठ में ही अटककर रह गई। 

   पुलिस का दल मंत्रणा भरी निगाहों से एक-दूसरे को देखने लगा । उन्हें समझ में आ गया कि दाल में कुछ काला है। उसके पड़ोसी द्वारा दी गई गुप्त सूचना में सच्चाई है। 

   छानबीन और जांँच-पड़ताल के लिए उसके घर के अन्दर सिपाहियों का दल तेजी से अंदर दाखिल हो गया। 

   घर के अन्दर उसने वैभव को धर दबोचा। जेठ नंदु चाहरदीवारी फांदकर भागने में सफल हो गया। 

   कड़ी पूछताछ और डंडे के भय ने वैभव और कालू को तोड़ दिया। 

   घर के बाहर गली में भीड़ जमा हो गई थी। लोग वैभव और उसके परिवार को कोस रहे थे। कुछ लोग अपने निजी शब्दकोष के विशेष शब्दों द्वारा बने उपमाओं से उन्हें अलंकृत करने की धृष्टता भी दिखा रहे थे। 

   कालू और वैभव का सिर अपमान और बेइज्जती से नीचे झुक गया। 

   जब पुलिस ने डंडा घुमाते हुए वैभव को धमकाया, 

“अरे!… तेरी पत्नी कहांँ है?… नहीं तो इस डंडे से हड्डी तोड़ देंगे।”  

   “हुजूर!… उधर है” उंगली के इशारे से वैभव ने बताया, जहाँ नलिनी पड़ी  हुई थी।  

   पुलिस तेज कदमों से उस ओर चल पड़ी बाप-बेटे को साथ लेकर। 

   रस्सी में बंधी। करासन तेल में सनी जमीन पर पड़ी नलिनी को देखकर पुलिस भड़क उठी। उनमें से एक पुलिस गुस्से में चीखा,” खोलो रस्सी!… दुष्ट!… राक्षस!… हमलोग नहीं आते तो सचमुच जलाकर मार ही देता… तुमको दहेज चाहिए न!… अब दहेज का मजा मिलेगा, जब जेल में चक्की पीसनी पड़ेगी।” 

   वैभव सहमते हुए अपनी पत्नी के पास पहुंँचा। उसने उसके मुंँह में ठूसे हुए कपड़े को निकाला। फिर उसके हाथ-पैर में बंधी हुई रस्सी को खोला सिर झुकाए हुए शर्म से।

   नलिनी विलाप करने लगी। 

   पुलिस कड़ाई से पेश आ रही थी, इस घटना की जांँच-पड़ताल में उसके पति और ससुर के साथ।

   घर के माहौल में भय व्याप्त था। 

   नलिनी ने उचटती नजर से देखा कि जो उसके पति और ससुर घंटा भर पहले बाघ बने हुए थे, पुलिस के सामने भीगी बिल्ली बन गए थे। पुलिस की टोली की धमकी से थर-थर कांप रहे थे। इस दृश्य को देखकर वह उद्वेलित हो उठी।

   नलिनी के अंतस में तर्कों-कुतर्कों का बवंडर उठने लगा। उसके दिमाग में बिजली की तरह विचार कौंधने लगे कि उसके पति को पुलिस पकड़कर ले जाएगी तो वह किसके सहारे जीएगी कि मुकदमा में जेल की सजा हो गई तो पति के बिना मायके या ससुराल में कौन पूछेगा कि सजा भुगतने के बाद क्या उसका पति उसको अपने साथ रखेगा। इस सोच ने उसके अंतर्मन में खल-बली मचा दी। उसके प्रति कोमल भावनाएं उसके अंतस में उमड़ने-घुमड़ने लगी।

   उसके विलाप पर विराम-चिन्ह लग गया। वह देखने लगी डबडबाई आंँखों से पुलिस के कार्यकलापों को।

   एक सिपाही ने तल्ख व तेज आवाज में आंँखें लाल पीला करके कहा,” तुम्हारी ये औरत है?” 

    “हांँ हुजूर!” धीमी आवाज में उसने कहा

    ” सुनिए हवलदार साहब!… ये वैभव की औरत है और इसका पति इसको जलाकर मार देना चाहता था… अपनी जनाना को लकड़ी समझ लिया था क्या रे!… भेड़िया!” 

   वैभव मौन हो सिर झुकाए खड़ा रहा। 

   ,” छीः! छीः!… जिसकी मांग में तुमने सिंदूर भरा… अग्नि को साक्षी मानकर जिन्दगी-भर साथ निभाने का वादा करके शादी के बंधन में बंधे, और आज दहेज पूरा नहीं मिलने के कारण अपनी पत्नी की हत्या कर देने पर उतारू हो… तुम मर्द नहीं नामर्द हो… कलंक हो दोनों बाप-बेटे पुरुष जाति के नाम पर ” हवलदार ने घृणा से मुंँह सिकोड़ते हुए कहा। 

 ” ऐसे मानेगा हवलदार साहब!… ये उपदेश से सुधरेगा कहते हुए सिपाही ने डंडा से वैभव पर प्रहार करना चाहा किन्तु नलिनी ने एक झटके से सिपाही का डंडा पकड़ लिया। 

   फिर रोते गिड़गिड़ाते हुए कहा, ” छोड़ दीजिए इस कमअकल को… यह मर्द अपने मांँ-बाप के हाथ की कठपुतली है।” 

   हवलदार और सिपाहियों की टोली आश्चर्य से एक टक नलिनी को देखती रह गई। 

# छठवीं बेटियाँ जन्मदिवस प्रतियोगिता 

                        छठी कहानी 

          स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित 

                  ©® मुकुन्द लाल 

                       हजारीबाग(झारखंड) 

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