लड़के वाले सीजन -3 (भाग – 16) : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : जैसा कि आप सबने अभी तक पढ़ा कि ताई के द्वारा घर में किया गया हंगामा शांत हो गया हैँ… उन्हे अपनी गलती का एहसास हो गया.. उन्होने नारायण जी से माफी मांग ली हैँ…. ताई के मायके वाले सभी को राम राम कर घर को लौट गए हैँ….. तभी शुभ्रा की बुआ शन्नो की घर में एंट्री हुई…. शुभ्रा बहुत खुश हैँ… उसने उमेश को फ़ोन लगाया… दोनों की मन को गुदगुदाने वाली बातों का सिलसिला जारी हैँ… शुभ्रा की इस बात पर कि ऐसा लगता हैँ कि आप मुझे देख रहे हो… उमेश बोलता हैँ… तुम्हे तो इतना ही लगता हैँ…मेरा जानोगी तो हंसोगी … मैं तो कभी कभी….

अब आगे…. .

मैं तो कभी कभी यूनिट में काम करते हुए उठ जाता हूँ…. राहुल के साथ डांस करने लगता हूँ…. एक अलग ही ख़ुशी का एहसास होता हैँ जबसे तुम मेरी ज़िन्दगी में आयी हो….

अच्छा जी…. मुझे भी ….. आप कितने दिन की छुट्टी पर आ रहे हैँ शादी के लिए….?? शुभ्रा पूछती हैँ….

तुम कहो तो नौकरी छोड़कर आ जाऊँ….. बोलो शुभ्रा??

धत …. वो आपका स्वाभिमान हैँ… आप छोड़ सकते हैँ मेरे लिए नौकरी ?? कहिये ….

हां ज्यादा ज़रूरत हुई… कोई तकलीफ हुई तुम्हे य़ा माँ को… य़ा घर में किसी को… तो शायद कभी… पर बंशी वाला कभी ऐसा न  करें …. मैं 10 दिन की छुट्टी पर आ रहा हूँ शुभ्रा…. 18 को घर आ रहा हूँ…..

क्या सच में…. 18 तारीख तो परसों ही हैँ… शुभ्रा चहकती हुई बोली….

हां और क्या … तुम तो ऐसे खुश हो रही हो जैसे परसों ही मैं तुम्हारे पास आ जाऊँगा….. सच में तुम्हे तो मेरे आने की बहुत ख़ुशी हैँ…. अच्छा लगता हैँ ये सोचकर कि कोई मेरे भी ख्वाब देखता हैँ…. मुझे प्यार करता हैँ….

वो तो मैं बस ऐसे ही…. शहर में ही आ जायेंगे तो दिल को तो सुकून मिलेगा कि अब आप दूर नहीं पास में ही हैँ….

अच्छा… इतनी फिक्र अपने इस उमेश की… अच्छा ये बताओ आज मैं कैंटीन जाऊंगा… सामान लेने घर का… वहां आकर टाइम नहीं मिलेगा… तुम्हारे लिए क्या लेकर आऊँ बताओ??

जी…. मेरे लिए कुछ नहीं बस दादा जी के लिए च्यवनप्राश , पापा के लिए जूतें , विक्की के लिए हेलमेट कम्पनी का और माँ के लिए बॉडी लोशन उनके पैर बहुत फट ज़ाते हैँ सर्दी में काम करते हुए…एड़ियों से खून आने लगता हैँ… अब तो शादी का टाइम हैँ…बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रही खुद का…अभी तो ठंड भी नहीं आयी ज्यादा अभी से फट  रहे है हाथ पैर उनके….मेरे जाने के बाद तो बिमार ही पड़ जायेंगी माँ मेरी याद में… कहते हुए शुभ्रा फफ़ककर रोने लगी….

उसकी सिस्कियां सुन उमेश कहता हैँ… शुभ्रा…

मैं तुम्हे नहीं रोकूँगा रोने से…. आखिर वो तुम्हारी माँ हैँ… कैसे एक माँ अपनी पली पोशी बेटी को विदा कर देते हैँ…. पर तुम्हारी माँ से एक वादा ज़रूर करूंगा कि आपकी शुभ्रा की आँखों में मैँ य़ा मेरे परिवार वाले एक आंसू नहीं  आने देंगे…तुम अपनी माँ को भी ले आओ ना  घर शुभ्रा…

आप सच में बुद्धु हैँ…. ऐसे थोड़े ना होता हैँ… शुभ्रा अपने आंसू पोंछते हुए बोली….

अच्छा… पर तुम ला सकती तो शुभ्रा… मेरे यहां कोई मना नहीं करेगा….

जी ऐसा नहीं होता…. आपको पता है विक्की तो मुझे देख देखकर चुपचाप रो लेता हैँ… इतना लड़ता था मुझसे… अब तो झगड़ा करना ही बंद कर दिया हैँ उसने… हर दिन मेरे पसंद की कुछ ना चीज लाता हैँ खाने की कि दीदी को जो जो पसंद हैँ खिला दूँ …. कहां कोई चीज थोड़ी सी भी ज्यादा ले लेती थी उससे छीन लेता था….

अच्छा…मेरा भी य़हीं हाल हुआ था जब दी को विदा किया था ….. मैं तो दी के पास ही सोता था…. मैं समझाऊँगा विक्की को ज्यादा परेशान ना हो… जब मन करें अपनी दीदी से मिल आया करें …. अच्छा तुमने तो अपने लिए कोई सामान बताया ही नहीं…. तुम्हारे लिए क्या लाऊँ शुभ्रा ??

जी… मेरे लिए कुछ नहीं… मेरे लिए तो सब घर में ला ही रहे हैँ… और हां पैसे बता दीजियेगा सामान के… मैं गूगल पे कर दूँगी….कैंटीन से  सही पैसों में आ जाता हैँ इसलिये बोल दिया….

पागल हो क्या तुम …. मैं पैसे लूँगा तुमसे….. वो मेरे भी कुछ लगते हैँ…. अपने पैसे अपने पास रखो…

तो फिर मत लाईयेगा सामान अगर आप पैसे नहीं लेंगे तो… आप शादी के बाद कुछ भी लायें मैं मना नहीं करूंगी पर अभी आपसे कुछ लेना हमारे परिवार के स्वाभिमान पर  बात आ जाएगी….

ठीक हैं समझदार शुभ्रा जी… कर देना आप गूगलपे….. बस…. अच्छा शुभ्रा…. मुझे लीव के लिए एप्लिकेशन देकर आनी हैँ सर को… तुमसे शाम को बात करता हूँ….

ठीक हैँ जी… जाईये… बाय…

अरे रुको तो सही… बाय बोलने की इतनी जल्दी रहती हैँ तुम्हे … बोलो तो सही….

जी… नहीं… शर्म आती हैँ…

अरे बोलो ना यार….

जी…. आई लव यू ….धीरे से बोलती हैँ शुभ्रा… शुभ्रा के पीछे बुआ शन्नो खड़ी हैँ…

आई लव यू टू माय लव शुभ्रा…. उमेश तो बुलंद आवाज में बोलता हैँ…

बुआ आप…

उमेश बुआ का नाम सुन बोलता हैँ लो आ गयी शादी को किरकिरा करने….

शुभ्रा फ़ोन काट देती हैँ….

बुआ आप कब आयी?? नमस्ते बुआ…. शुभ्रा सकपकाती थी बोली…

मोये आयें तो एक घंटा होने को आयों… शुरू हैँ गयो तेरो नैंन मटक्का छोरे से….. काये बात की शर्म आ रही तोये अभाल… तू छोरा से कह रही… का करने कूँ कह रहो छोरो… सारी चूमा चाटी अभी ही कर लियो… ब्याह के बाद के लिए कुछ ना छोड़ियों ….

वो बुआ जी… ऐसी बात नहीं हैँ…. वो तो बस ऐसे ही…

चुप कर अब….. मैं सब जानूँ हूँ… चल अब नीचे…. तेरे ससुराल ते लहंगो आयें गयो हैँ… देख लै … अभी खोलो ना हैँ…. तेरो ही इंतजार हैँ रहो हैँ…

जल्दी से बुआ जी और शुभ्रा नीचे आती हैँ… लहंगे का बैग बबली खोलती हैँ….

लहंगा देखते ही शन्नो बुआ तपाक से बोल पड़ती हैँ..

जे का बाऊ जी??

का हैँ गयो… कैसो सुन्दर लाग रहो हैँ लाली को लांचा… आज तक किसी को ऐसो ना आयों… तोये का कमी लग रही शन्नो यामे…. दादा नारायण जी शन्नो बुआ से पूछते हैँ…

बाऊ जी… तुम हूँ सठिया गए हैँ…. चस्मा लगाये के देखियों नेक… कौन सो रंग हैँ लांचो को…. वो का कहत हैँ बैंगनी …. तुम्हे पतो होनी चाहिए  कि कालो औए नीलो रंग ना पहने हैँ शगुन के काम में…

सही कही जीजी तुमने…. मेरो भी ध्यान  ना गयो..

ताई सुमित्रा बोली….

अच्छा हुआ जीजी तुम आयें गयी…. अब सब काम तुम ही सही करायेंगी … शुभ्रा की माँ बबिता बोली…

चुप करो तुम सब.. .. कुछ शुभ अशुभ ना होवे हैँ…. सब कहबे की बात है …. जैसो हैँ बढ़िया हैँ… क्यूँ शुभ्रा लाली… दादा नारायण जी शुभ्रा की तरफ देखकर पूछते हैँ…

हां दादा जी… मुझे तो बहुत अच्छा लगा…

तुम सब की बुद्धि पर पाथर पड़ गए हैँ…. छोरा की माँ को फ़ोन लगाओ… मैं बात करूँ हूँ उनसे…. लहँगा तो बदलनो पड़ेगो ….

शन्नो बुआ अपनी बात पर अड़ गयी हैँ….

उमेश की माँ वीना जी को फ़ोन लगाया जाता हैँ…

शन्नो बुआ बोलती हैँ.. हेलो….

आगे की कहानी कल… आप लोग भी अपनी राय दे क्या लहंगे का रंग बदलना चाहिए य़ा नहीं….??

राधे राधे

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

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