ढूंढती आंखें – संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi

का हो जिज्जी…..आधी रात में बारात लगी का ….?? 8:00 बज गएल…. अभी तक इमली ना घुटाइल गएल…!

कब बारात लगी… कब द्वार पूजा होई ….??  कौनो टाइम बा…की नाहीं…. गांव से आई देवरानी ने जेठानी महिमा से कहा… !

   हां हां देवरानी जी …. बस अब चलते हैं इमली घुटाई की रस्म भी कर ही लेते हैं। इसी बीच बेटे शशांक ( दूल्हा ) के दोस्तों… भाइयों के भी लगातार फोन आ रहे थे… अब देर किस बात की हो रही है यार ….शंशाक परेशान होकर हर फोन का जवाब देता कि अभी एक रस्म होना बाकी है…। चारों ओर उथल-पुथल मची थी… शादी में आए मेहमान भी उकता कर खुसुर-पुसुर कर रहे थे…।

एक महिमा ही थी….जिसकी नजर दरवाजे पर किसी को ढूंढ रही थी….

दरअसल महिमा दो भाइयों की अकेली बहन थी। भाइयों की प्यारी ….मां बाबूजी के ना रहने के बाद भी मायके में वही अपनापन …मौज मस्ती और अल्हड़पन….. कुछ हकीकत से बेखबर …बेबाक ….!

  उसे पता ही नहीं चला रिश्तों को निभाने के लिए कुछ मर्यादायें  कुछ सीमाएं भी आवश्यक हैं….. !

       एक बार कुछ बातों को लेकर  ” तकरार ” हो गई थी बड़े भैया से….. बात तो मामूली थी पर शायद अहंकार ज्यादा था। वैसे भी कहासुनी सीधे भैया से नहीं उनके परिवार वालों से हुई थी पर कहते हैं ना…..

  ” भाई के घर संबंध मधुर बनाने के लिए भाभी से व्यवहार बनाना ज्यादा आवश्यक होता है ” ….!

    धीरे-धीरे समय बीतता गया। महिमा अपने बेटे की शादी में बड़े प्यार से दोनों भाइयों के घर खुद निमंत्रण देकर आई थी। और अपने घर शादी में आने का विशेष अनुरोध भी किया था….वो सोच रही थी ….अच्छा है …एक यही मौका है …. भाई बहन के मध्य आई दूरी मिटाने का।

अपने और मायके के बीच की दूरी मिटाने के लिए उसने कोई कसर नहीं छोड़ी …भाइयों के घर जाकर खुद उन्हें अपने घर आने का आमंत्रण दी… और उसे पूरा विश्वास भी था कि इस बार बेटे की शादी में पिछला सारा कड़वाहट मिट जाएगी …।

उस छोटे से  “तकरार ” की क्या औकात जो भाई बहन के  प्यार के बीच में दीवार बन दूरियां बढ़ा सके..!

इसी बीच बड़े भैया के पैर में फ्रैक्चर हो गया… ऑपरेशन की नौबत आ गई …उनका कंप्लीट बेस्ट बेड रेस्ट हो गया….।

इस स्थिति में महिमा ने खुद ही बड़े भैया को इस हालत में अपने घर आने से मना कर … आराम करने की सलाह देकर आई थी…. शादी के हर प्रोग्राम में भाभी बकायदा सम्मिलित हो रही थी।

खैर….. आपाधापी के मध्य बारात निकलने से पहले इमली घुटाई की रस्म होती है….. इस रस्म के बाद ही बारात निकलती है …. मान्यतानुसार इमली घुटाई की रस्म भाई द्वारा पूरी की जाती है….

कहीं ना कहीं रीति-रिवाजों …संस्कारों परंपराओं में इन सबका बहुत महत्व है…

   और महत्व हो भी क्यों ना… हमारे हर …रस्म ..रीति रिवाज …संस्कार.. परंपराएं… किसी न किसी रूप में सकारात्मकता की रक्षा कवच जो होती हैं…।

भावनाओं के आदान-प्रदान का माध्यम हमारे रीति रिवाज रस्म ने …महिमा की आंखों में भाई की अनुपस्थिति का दुख साफ दिखाई दे रहा था….।

सब उतावले हो रहे थे… अब देर किस बात की हो रही है छोटे भाई भाभी इमली घुटाने के रस्म को पूरा करने के लिए पास में खड़े थे वहां पर बड़ी भाभी दिखाई नहीं दे रही थीं…

9:00 बज गए हैं.. चलिए पंडित जी इमली घुटाई की रस्म शुरू कीजिए …छोटे भाई भाभी आगे आ गए …तभी किसी ने आकर कहा बड़े मामा मामी आ गए हैं।

क्या….?? बड़े भैया ….पर क्यों….?? उनका तो बेड रेस्ट … रुक जाइए पंडित जी…. उन्हें विवाह परिसर में आने दीजिए …..! भैया को वाकर से धीरे-धीरे मंडप तक आने में आधे घंटे से ज्यादा समय लग गया…. दूल्हे के दोस्त यार व सारे मेहमान रिश्तेदार उकता रहे थे ….सब देर होने को लेकर निराशा लिए हुए थे….।

  एक महिमा ही थी …जिसे बिल्कुल भी देरी नहीं हो रही थी …. जैसे ही भैया वाकर पकड़ कर मंडप में इमली घुटाई की रस्म अदा करने पहुंचे ……भाई की आंखों में देर से पहुंचने और उनके चलते बारात देर से लगने का अफसोस साफ दिखाई दे रहा था …..

पर बहन महिमा भी उस तकलीफ को समझ रही थी… कैसे डॉक्टर के मना करने के बाद भी …तकलीफों के बीच गाड़ी में बैठना फिर उतरने में वही मुश्किल ….पग पग पर मुश्किलों का सामना करते हुए …भैया ने रस्म निभा कर अपना फर्ज पूरा कर ही दिया…..

वो सिर्फ फर्ज ही नहीं…. रस्म की आड़ में… धूमिल पड़े रिश्तो को चमका रहे थे…

भाभी को समझते देर न लगी ….उन्होंने महिमा के कंधे पर हाथ रखते हुए बस इतना ही कहा….. आप चिंता मत कीजिए….. आपके भैया डॉक्टर से पूछ कर ही आए हैं…. इसीलिए थोड़ी देर हो गई …..

तब महिमा को लगा था… कहीं सच में देर तो नहीं हो रही है ….पर अब लग रहा है देर आए दुरुस्त आए तब और अब की सोच से पूरी तरह संतुष्ट महिमा…..

महिमा ने प्यार और कृतार्थ भरी नजरों से भाभी की ओर देखकर कहा …….सच में भाभी ….ये महज रस्म ही नहीं…. सकारात्मक भावनाओं की रक्षा कवच भी है ….रिश्तों की मजबूती की मिशाल ….हमारी परंपरा रस्म और संस्कृति….. ने ढूंढती आंखों का इंतजार खुशी खुशी समाप्त कर दिया… ।

साथियों ….मेरे विचार पर आपके प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा ..!

( स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार  सुरक्षित और अप्रकाशित रचना )

साप्ताहिक विषय

   # तकरार

संध्या त्रिपाठी

2 thoughts on “ढूंढती आंखें – संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!