तकरार नहीं प्यार…रश्मि झा मिश्रा : Moral stories in hindi

“बड़े भैया का आज सुबह फोन आया था… बहुत परेशान लग रहे थे…!”

” इसमें कोई नई बात तो नहीं है… भैया भाभी तो हमेशा परेशान ही रहते हैं…!” बोलती हुई जूही अंदर जाने को हुई तो प्रतीक ने उसका हाथ पकड़ लिया बोला…

” सुनो ना जूही… भैया सचमुच परेशान थे… जब से छोटे भैया नौकरी छोड़कर गांव आ गए हैं तब से रोज नई तकरार घर में बनी रहती है… इस बार उन्होंने कहा है गांव आकर सब झमेला खत्म करने को…!”

” पर इसमें हम क्या कर सकते हैं… और अभी छुट्टी कहां है आपको… बच्चों की भी कोई छुट्टी नहीं है… अभी कैसे गांव जाएंगे…!”

” अभी छुट्टी नहीं है… लेकिन गर्मी की छुट्टियां में तो जा सकते हैं ना… वह तो आने ही वाली है…!”

” हद है प्रतीक… आप तो जानते हैं दो-तीन दिनों से ज्यादा के लिए मुझे वहां नहीं जाना और आप छुट्टियों में जाने की बात करते हैं… वहां जाकर भी जिम्मेदारी के साथ घर संभालना लगा ही रहता है… पर मुझे लंबी छुट्टियों में कोई जिम्मेदारी नहीं चाहिए… मैं बस आराम करना चाहती हूं…!”

” वह सब तो ठीक है… पर फिर भी जाना तो पड़ेगा ही ना… भैया ने बुलाया है इस बार… तुम तो जानती हो भैया ने कितना कुछ किया है मेरी पढ़ाई के लिए और फिर मां भी तो उन्हीं के साथ रहती हैं… उनका तो खेती बाड़ी छोड़कर दूसरा कोई आजीविका का साधन भी नहीं है ना… चलो देख कर आते हैं हम क्या कर सकते हैं…!”

” ठीक है जैसी आपकी मर्जी…!”

 मिली और मिनी तो गांव जाने के नाम से खुश होकर नाचने ही लगीं… कुछ दिनों के बाद सभी लोग गांव पहुंचे… वहां पहुंचने पर… दादी का लाड़… बड़ी मां का दुलार… फिर बच्चों को मां की कहां पड़ी… दोनों बच्चियों वहां जाकर मस्ती में डूब गईं… बड़े भैया के बच्चे दिन भर मिली और मिनी को सर पर बिठाए रखते… और बड़े पापा से तो सब मिलकर इतनी शरारतें करतीं कि पूछो नहीं… पर छोटे भइया ने अपने बच्चों को सबसे दूर ही रखा था… छोटी भाभी ने अपने बच्चों को बाहर हॉस्टल में डाल रखा था… अभी छुट्टियों में भी बच्चे घर आए तो उन्हें बाकी बच्चों से घुलने से रोकती थीं…!

 कुछ दिन तो ऐसे ही मस्ती मजे में निकल गए… फिर बड़े भैया और छोटे भैया के बीच का मसला बाहर आया… आखिर छोटे भैया घर का… जायदाद का… बंटवारा चाहते थे… पिताजी की लंबी चौड़ी संपत्ति के लालच में ही वह अपना छोटा-मोटा जॉब छोड़कर सुख भोगने गांव आए थे… यह उन्होंने खुद ही स्पष्ट कहा…

” गांव में अपना इतना बड़ा घर आंगन सुख संसाधन छोड़कर.… वहां धूप बरसात में किसे पड़ी है जो अपनी जान सुखाए… प्रतीक तू भी गांव ही आजा… सब अपना अपना हिस्सा लेंगे और मजे से गांव में जिंदगी बिताएंगे…!”

 प्रतीक तो देखता ही रह गया… क्या इसीलिए पिताजी ने हमें पढ़ाया लिखाया था… कि हम घर आकर उनकी कमाई पर मजे करें…छोटे भैया बंटवारा चाहते थे… अपना हिस्सा लेकर अलग होकर रहना चाहते थे… प्रतीक ने साफ कह दिया…” ठीक है बड़े भैया हो जाने दीजिए बंटवारा…!”

” क्या कहते हो प्रतीक… क्या यही सलाह करने आए हो… मां के रहते यह सब ठीक नहीं…!”

” हम कर ही क्या सकते हैं भैया… जब छोटे भैया यही चाहते हैं तो यही सही… इसी से सब झमेला खत्म होगा…!”

 बड़े भैया अपने पढ़े-लिखे काबिल छोटे भाई की बात कभी नहीं टालते थे…” ठीक है जैसा तुम्हें ठीक लगे…!”

 आखिर पंचों को बुलाया… बुलाकर सारी प्रॉपर्टी के बराबर तीन हिस्से लगा दिए गए.… बड़े भैया ने कहा कि…” प्रतीक पहले तुम ले लो… तुम्हें जो हिस्सा चाहिए…!” पर प्रतीक ने पहला मौका छोटे भैया को दिया… छोटे भइया ने खुशी-खुशी सबसे बढ़िया हिस्सा जमीन जायदाद का जो तीन में था उसे चुना… और अलग हो गए… बाकी दोनों हिस्से… दोनों भाइयों को कागज बही देकर… पंच विदा हुए…

 बंटवारा तो हो गया था… पर बड़े भैया और भाभी के प्यार का बंटवारा नहीं हुआ था… वे अभी भी उतने ही लाड़ और दुलार से बच्चों का और जूही का सत्कार कर रहे थे… जूही को तो भाभी ने बिल्कुल नई नवेली बहू सा मान दिया था…” तू रहने दे… तुमसे नहीं होगा…” सुन सुनकर तो अब जूही ही कभी शरमा जाती…” क्या भाभी इतना कमजोर समझा है मुझे क्या… अब आप थोड़ा आराम करें मैं कर लूंगी…!”

” नहीं नहीं जूही थोड़े दिनों को तो आई हो… एक तो कभी आती नहीं…तुम बैठो मैं हूं ना…!”

इतना मान तो जूही को मायके में भी ना मिलता… वहां भी कुछ काम कर ही लेती थी…!

 भाभी के साथ पहली बार इतने दिन रहने का मौका मिला… पर भाभी के प्यार और अपनेपन से ऐसा लगा जैसे कभी अलग ही नहीं थे…!

 गर्मी की छुट्टियां खत्म होने को थीं… अब दो दिनों में उन्हें वापस जाना था… रात को जूही और प्रतीक ने आपस में कुछ निश्चय किया… सुबह प्रतीक बड़े भैया के पास गया और बोला…” भैया एक बार फिर पंचों को बुलाइए… मुझे कुछ और भी बात करनी है… कुछ छूट गया…!”

” पर क्या प्रतीक…!”

” आप बुलाइए तो…!”

” ठीक है तू जो कहे…!”

 प्रतीक ने पंचों के सामने अपने हिस्से के कागजात भैया को दिए और कहा…” मैं अपना हिस्सा मां के नाम करता हूं… जिसकी पूरी जिम्मेदारी भैया उठाते हैं इसलिए वह सब भैया का है… बंटवारे के बाद से कितने ही चाचा, भैया यहां तक की छोटे भैया सब ने आकर मेरे हिस्से के रखरखाव की जिम्मेदारी मांगी… पर एक बड़े भैया हैं जिन्होंने आज तक सिर्फ मुझे दिया है… कभी कुछ मांगा नहीं.… मां तो सबकी है… पर मां की पूरी देखभाल खुशी-खुशी भैया ने हमेशा की है… इन्हीं के आशीर्वाद से शहर में हमें सब कुछ मिला हुआ है… जिसकी आवश्यकता है… इसलिए मुझे गांव में हिस्सा नहीं, प्यार और परिवार चाहिए… मैं अपनी सारी संपत्ति बड़े भैया को दे रहा हूं… पंचों की उपस्थिति में… इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए…!”

 छोटे भैया भाभी ने कुछ विरोध जताया तो पंचों ने साफ कह दिया…” यह प्रतीक का हिस्सा है… वह चाहे ले… चाहे दान करे… चाहे लुटा दे… इससे किसी को कोई मतलब नहीं होना चाहिए…!”

 बड़ी भाभी कुछ बोलना चाहती थी तो जूही ने उनके दोनों हाथ थाम लिए…” नहीं भाभी कुछ मत कहिए… हम पर अपना प्यार बस इसी तरह हमेशा बनाए रखिए… आपके प्यार और आशीर्वाद की दो रोटी मुझे गांव आने पर हर बार मिलती रहे…!”

” अरे जूही वह तो वैसे भी मिलेगी… पर अपना हिस्सा क्यों छोड़ रहे हो तुम लोग… भाभी छोड़ कहां रहे हैं… बस अपना परिवार जोड़ रहे हैं… हमें हिस्सा नहीं परिवार के साथ रहना है… तकरार नहीं प्यार के साथ रहना है… बस और कुछ नहीं…!”

 बड़े भैया ने प्रतीक को और भाभी ने जूही को गले लगा लिया…!

स्वलिखित

रश्मि झा मिश्रा

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