मायके आने पर सवाल क्यों….? – रश्मि प्रकाश Moral Stories in Hindi

“ राशि तुम्हें नहीं लगता ये नीति इतना मायके आती रहती है और मम्मी जी हमें तो मायके कभी जाने नहीं देती….।”जेठानी रति ने राशि से कहा

” हाँ भाभी सही कह रही हो आप ….पर नीति को तो हम मना कर नहीं सकते आख़िर इस घर की इकलौती बेटी जो  है…. उपर से मम्मी पापा के साथ साथ ये दोनों भाई भी बहन के इंतज़ार में पलक पाँवड़े बिछाएँ रहते हैं ।” राशि ने कहा 

“ इस बार हम भी अपने मायके चले क्या…. बच्चों की छुट्टियाँ यूँ ही निकल जाती हम घर की ज़िम्मेदारियों में लगे रह जाते है ।” रति मायूस हो बोली 

दोनों जेठानी देवरानी बातों में इतनी मशगूल थी कि ये पता ही ना चला कब सासु माँ सुनंदा जी दरवाज़े पर आकर उनकी बातें सुन कर चल दी…..

अपने कमरे में जा कर वो आँखें मूँदकर कुर्सी पर बैठ गई…. देवेन बाबू अपनी किताब पढ़ने में मशगूल थे बीबी के आने का उन्हें पता ही नहीं चला…अचानक सिसकीं सुन कर वो नज़रें उठाकर देखे तो सुनंदा जी को रोता देख घबरा गए….

“ क्या हो गया सुनंदा…. रो क्यों रही है…. किसी ने कुछ कहा है क्या….?” देवेन बाबू ने पूछा 

“ किसी ने कुछ नहीं कहा है जी …. पर नीति का बार बार जब तब घर आना बहुओं को पसंद नहीं आता…. मैँ नीति को आने से मना तो नहीं कर सकती हूँ ना…. यहीं पास में रहती है तो कैसे कह दूँ मत आया कर…. पता बहुओं को लगता है कि मैं उन्हें मायके नहीं जाने देती पर दोनों खुद कहाँ जाना चाहती है…..बेवजह मुझे कोस रही है….अपने पति और बच्चों की वजह से जा नहीं पाती हैं और नाम सास का लगा रही…..।”सुनंदा जी उदास हो बोली 

“ देखो सुनंदा….. जब भी कोई बात हो और तुम्हें लगे ये गलत है वही पर बोल दो…. पर अभी वे दोनों तुमसे सामने से  तो कुछ कही नहीं है …. अब क्या बात हुई है नहीं पता बस तुम सुनकर उसपर प्रतिक्रिया दे रही हो….रिश्तों के बीच कई बार छोटी छोटी बातें बड़ा रूप ले लेती है…… हमें रिश्तों की डोर टूटने नहीं देना है …हमें सबको साथ लेकर चलना है…. दोनों बेटा बहू और बेटी दामाद हमारे ही है ….उनके बीच कोई भी मतभेद होने से रिश्ते बिगड़ सकते हैं…. हम तो उनके बड़े है…. ये सब छोटी छोटी बातों को लेकर चलोगी तो दुखी ही रहोगी…..अब ये पता नहीं दोनों ऐसी बातें क्यों ही कर रही थी….. जब तुम्हारे सामने बात  हो तो पूछ लेना तब चुप मत रहना ।” देवेन जी ने समझाते हुए कहा 

सुनंदा जी हाँ में सिर हिलाते हुए उठ कर बाहर चल दी 

लगभग सप्ताह भर बाद फिर नीति अपने मायके पहुँची…..अक्सर बच्चे स्कूल चले जाते पति ऑफिस रहते तो वो यहाँ आ जाया करती ….. आज जब आई दोनों भाभियाँ रसोई में लगी पड़ी थी…. 

नीति आते ही बोली,“ भाभी मम्मी पापा चाय बनाने बोल रहे आप लोग भी पिएँगी…?“

“ आप बना रही है तो ज़रूर पी लेंगे.।” रति ने कहा और दोनों एक-दूसरे को देख हँस दी

नीति के चाय लेकर जाते ही दोनों फिर नीति को लेकर बातें करने लगी…. तभी सुनंदा जी रसोई में आकर कुछ नमकीन खोजने के क्रम में दोनों बहुओं की बात सुन कर बोली,“ रति और राशि तुम्हें नीति के यहाँ आने से आपत्ति क्यों होती हैं…… ये तो मैं नहीं जानती पर एक बात बता दूँ….. जब तुम दोनों से पहले नीति का ब्याह करने की बात चल रही थी तो उसके पापा बहुत रोते थे….. कहते थे बेटी विदा हो कर चली जाएगी फिर ना जाने कब मिलने आएगी….. तब नीति कहती थी मत करो शादी….. मुझे भी आप लोगों को छोड़कर कहीं नहीं जाना ….. फिर जब यहाँ पुनीत के परिवार के बारे में पता चला तो देवेन जी खुश होकर जल्दी रिश्ता तय कर दिए ये सोच कर कि बेटी यहीं पास में रहेगी तो मिलने आती रहेंगी….. बस तब से नीति हमसे मिलने आने लगी….. बहू तुम दोनों को जब भी मायके जाना हो जाओ….. मैं कभी मना नहीं करती….. मैं तो ख़ुशी से कहूँगी अपने माता-पिता से मिल कर उनका हाल चाल पता किया करो…. वो भी बेटी का बाट जोहते ही होंगे…… नीति को ये बात कभी पता ना चलने देना तुम दोनों उसके आने से बातें बनाती हो…. वो तुम दोनों का बहुत मान करती है ….मैं नहीं चाहती ये छोटी सी बात कोई बड़ा रूप ले ले और सब रिश्ते बिखर जाएँ…..।” सुनंदा जी कह ही रही थी कि नीति की आवाज़ सुनाई दी,“ माँ चाय ठंडी हो रही है…… वही दे जाऊँ…?”

“ नहीं बेटा आ रही हूँ….।” कह सुनंदा जी चली गई 

रति और राशि एक दूसरे का मुँह देखने लगी……

“हाँ सासु माँ ने कभी हमें मायके जाने के लिए मना तो नहीं ही किया है…. बस त्योहार पर कह देती तुम लोग नहीं होंगे तो घर में रौनक़ कहाँ रहेंगी और हम रूक जाते थे…… मतलब हमारे रहने से इस घर की रौनक़ है भाभी?” राशि ने पूछा 

“तुम सच कह रही हो राशि…… हम फ़िज़ूल ही सोच रही है नीति इतना आती है…. माँ ने कभी नीति के आने पर हमें ना ज़्यादा काम कहा ना कुछ स्पेशल करने को…. उपर से नीति तो हमारी  मदद कर जाती है…. मैं भी ना ये पड़ोसी गरिमा की बातों में आ कर ये सवाल कर बैठी ।” रति ने कहा 

रति और राशि अब नीति के आने पर कुछ नहीं कहती …. अब दोनों एक एक कर अपने मायके जाने लगी अपने माता-पिता का हाल चाल जानने उनके साथ भी थोड़ा वक़्त बिताने…… ।

शादी के बाद ज़िम्मेदारी तो आ जाती है पर मायके का मोह भंग नहीं हो सकता….. हम खुद को इतना व्यस्त कर लेते हैं कि उनके प्रति अपने कर्तव्य भूल जाते हैं जिन्होंने जन्म दिया है……दोस्तों सुनंदा जी ने सही समय पर अपने घर के रिश्ते की डोर को टूटने से बचा लिया …साथ ही साथ बहुओं के दिल में अपने माता-पिता के लिए कर्तव्य का बोध भी करा दिया ।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

# रिश्तों की डोर टूटे ना

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