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बीते साल में पड़ोसियों की धूप छांव – निधि शर्मा 

“बहू पिछले साल तुमने कितनी सारी चीजें बनाई थी याद करती हूं तो मुंह में पानी आ जाता है। गाजर के हलवे, चिक्की और याद है जिस रात लाइट गई थी और ठंड में हमने आग जलाया फिर कैसे तुमने उसमें बैंगन का भरता और लिट्टी बनाई थी। सबके साथ मिल बैठकर खाने का मजा ही कुछ और होता है, इस साल तो इतनी ठंड पड़ी भी नहीं फिर भी तुमने कुछ स्वादिष्ट बनाया नहीं..।” ललिता जी अपनी बहू नेहा से कहती हैं।

नेहा बोली “मम्मी जी याद मत दिलाए बीते साल के उस रात की..! मुझे क्या पता था अंधेरे में आग सेंकना इतना महंगा पड़ जाएगा। मैंने सोचा हम चार-पांच लोग है लिट्टी चोखा बनाऊंगी और मजे से खाऊंगी पर आपके बेटे ने पड़ोस के राय जी के पूरे परिवार को इकट्ठा कर लिया। सोचिए तीन तीन बार आटा गुंदी फिर भी मेरे लिए ही कम पड़ गया, अरे सामने वाले को ये तो सोचना चाहिए कि अगर लिट्टी अच्छी बनी है इसका मतलब ये नहीं कि बस खाते ही जाओ बनाने वाले की हालत भी तो देखो..!”

ललिता जी बोलीं “बहु तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारे हाथों में स्वाद है और तुम्हारे हाथों के स्वाद की वजह से तुम्हारे पति की तारीफ होती है तो इससे अच्छी बात एक पत्नी के लिए क्या हो सकती है..?”

नेहा मुस्कुराकर बोली “मम्मी जी काश कि मुझे भी किसी के हाथों का स्वाद मिलता और मैं भी उसका आनंद ले पाती। कहना और करना दोनों अलग अलग बात होती है।”

   ललिता जी आश्चर्य से बोलीं “बहु इसका मतलब तुम इस बार गाजर का हलवा और चिक्की नहीं बनाओगी..!” नेहा बोली “क्यों नहीं बनाऊंगी जरूर बनाऊंगी पर उतना ही जितने हमारे घर में लोग हैं। पिछले साल बहुत पड़ोसियों को खिला दिया पर उनके घर से तो एक छोटी सी कटोरी में भी कुछ नहीं आया..!”




   कुछ रोज बाद ललिता जी बालकनी में बैठी हाथ पैर में तेल लगा रही थीं और नेहा उनको गरमा गरम गाजर का हलवा देते हुए बोली “लीजिए मम्मी जी कुछ रोज पहले ही आपने हलवे की फरमाइश की थी, तो मैंने बहू होने का धर्म निभाया और आपकी ख्वाहिश पूरी कि अब आप खाकर बताइए कैसी बनी है।” 

ललिता जी बोलीं “जरा रुको बहू अब क्या मुंह जलाओगी..” फिर धीरे से उन्होंने एक चम्मच हलवा मुंह में लिया आंखें बंद करके उसके स्वाद का पता लगाया फिर बोलीं “अच्छी बनी है पर पिछले साल के हलवे की बात ही कुछ और थी..! सही कहते हैं लोग कि खाने का मजा तो सबके साथ ही आता है।”

तभी नीचे से पड़ोसी राय जी की पत्नी बोलीं “अरे चाची जी अकेले-अकेले किस चीज का आनंद ले रही हैं..?” ललिता जी ने नेहा की तरफ देखा नेहा ने इशारे में उन्हें मना किया, ललिता जी ने झट से अपने आंचल से कटोरी को ढका और बोलीं “अरे बहन जी मैं बहू को ये कह रही थी कि ठंड में ज्यादा रसोई में काम ना करें बेचारी अकेले क्या क्या करेगी।” की बातों को सुनकर नेहा मुस्कुराने लगी।

राय जी की पत्नी बोलीं “ललिता बहन काम तो हम लोग किया करते थे। आजकल की बहुएं क्या जाने जीवन की धूप छांव को इनको चूल्हा जलाना नहीं पड़ता फिर भी काम करने से भागती है, याद करो बीता समय इतने लोगों का खाना बनाते पर कभी मेहमानों के नाम से घबराते नहीं थे।” 

   ललिता जी सोचीं ये तो घुमा फिरा कर मुझे ही सुना रही है.! तो वो बोलीं “बहन जी पहले की बात अलग थी अब महंगाई कितनी बढ़ गई है, अब कौन किसी को पूछता है अब तो लोग पड़ोसियों के घर बायना देने से पहले 4 बार सोचते हैं। अब सब हमारी तरह तो होते नहीं की लिट्टी चोखा बनाया तो खुद भी खाए और पड़ोसियों को भी खिलाएं।”




राय जी की पत्नी को ये बात तीखी मिर्च की तरह लगी और वो बात को वहीं खत्म करके घर के अंदर चली गई। कुछ देर पहले ही नेहा का पति मानव घर आया था मां और चाची की वार्तालाप सुनकर वो बोला “मां ये आप चाची से कैसी बात कर रही थीं, पिछले साल तो आप दोनों में बहुत दोस्ती थी और आज बायने का भी हिसाब लेने लगीं..!”

ललिता जी बोलीं “तुम तो रहने ही दो जब खर्चा होता है तो कहते हो महंगाई कितनी बढ़ती जा रही है।  पिछले साल सबको बुलाकर लिट्टी चोखा खिलाया बहू के बारे में सोचा उसे कितनी मेहनत करनी पड़ी थी। सही कहती है बहू कहने और करने में बहुत फर्क होता है और हम ही आगे बढ़कर पड़ोसियों को क्यों खिलाएं, कभी पड़ोसी इस सर्दी में हमारे लिए एक कप चाय तक नहीं भेजते..!” इतना कहकर वो अपना सास बहू का सीरियल देखने लगीं।

  अगले दिन मानव के सभी पड़ोसी पिछले साल के लिट्टी चोखा और गाजर के हलवे की तारीफ कर रहे थे। मानव ने मुड़कर अपनी मां और पत्नी की तरफ देखा दोनों ने उसे आंखें दिखाई और ललिता जी बोलीं “अरे अगर आप सबको लिट्टी चोखा और हलवा आना है तो क्यों ना इस बार हम सब मिलकर बनाएं। कोई गाजर का हलवा बनाए तो कोई लिट्टी और कोई चोखा, सब मिल बैठकर बनाएंगे खाएंगे तो मजा भी दुगना आएगा।” 

फिर क्या था सब इस बात पर राजी हुए तो नेहा धीरे से ललिता जी को बोली “मम्मी जी आपने तो कमाल कर दिया..! इसी बहाने मैं अपनी पिछले साल की कड़वी यादों को भूल पाऊंगी, ये हमारे पड़ोसी बहुत चालाक बने फिरते हैं अब आया न ऊंट पहाड़ के नीचे।” इतना कहकर दोनों सास बहू हंसने लगी।

दोस्तों पुरानी यादें तो जीवन की धूप छांव की तरह होती है अगर वो अच्छी है तो उन्हें बार-बार याद कीजिए। जिन यादों से तकलीफ पहुंचे उसे भूल जाना ही बेहतर है और पिछले साल की भूल से सीख भी लेनी चाहिए ताकि नई यादें बनाई जाए आप क्या कहते हैं..?

आपको ये कहानी कैसी लगी अपने अनुभव और विचार कमेंट द्वारा मेरे साथ साझा करें बहुत-बहुत आभार

निधि शर्मा 

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