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बंदिशें सिर्फ हमारे ऊपर ही क्यों…..? – सीमा रस्तोगी 

“बिटिया! अब आगे की पढ़ाई-लिखाई के सपने देखना बंद कर दो, जितना पढ़ना-लिखना था पढ़-लिख गईं, अब अपनी अम्मा के साथ मिलकर घर-गृहस्थी संभालना सीखो!

“बाबा! कुछ भी हो जाए, लेकिन मुझको अपनी पढ़ाई आगे भी जारी रखनी है! संध्या मचलते हुए रघुनाथ से बोली

“बिटिया! चाहता तो मैं भी था कि तुम खूब पढ़ो-लिखो, लेकिन आज तक इस गांव की बेटियां गांव के बाहर पढ़ने नहीं गईं!

“क्यों बाबा?

“बिटिया तुमने देखा तो है ही शहर और गांव के बीच का रास्ता कैसा ऊबड़-खाबड़ और जंगली है और तो और नदी भी बीच में पड़ती है, इस गांव के बेटे तो साइकिल से शहर जाकर पढ़-लिख आते हैं, लेकिन बेटियों के लिए वो रास्ता सुरक्षित नहीं है!

“बाबा! आप मुझको भी साइकिल दिलवा दीजिए, मैं भी साइकिल से ही पढ़ने जाऊंगीं!

“बिटिया! आज तक इस गांव की किसी लड़की ने साइकिल नहीं चलाई!

“बाबा! तो क्या हुआ? मैं चलाऊंगीं, आप बस मेरा एडमिशन शहर के स्कूल में करवा दीजिए, वादा करतीं हूं आपसे कि आपको कभी निराश नहीं करूंगीं और फिर सिर्फ हम लड़कियों के लिए ही बंदिशें क्यों बाबा? संध्या अपनी जिद पर अड़ी थी…

 

तभी संध्या के स्कूल के अध्यापक आ गए…

“अरे मास्टर साहब! आप बहुत अच्छे समय पर आ गए, आप ही समझाइए ना संध्या को, कि उसको जितना पढ़ना-लिखना था, पढ़-लिख लिया, कहीं गांव से बाहर जाकर बेटियां पढ़-लिख पाएंगीं!

“कैसी बातें कर रहें हैं आप रघुनाथ जी! बल्कि मैं तो आपको समझाने के लिए आ रहा था कि संध्या बहुत ही मेधावी बुद्धि की छात्रा है इसके पैरों में बेड़ियां मत डालिएगा, ये जितना भी पढ़ना चाहें इसको पढ़ने दीजिएगा, संध्या बहुत ही प्रखर बुद्धि की बालिका है!

“देखा बाबा आपने! मास्टर साहब भी यही कह रहें हैं, अब तो हमको शहर पढ़ने भेज दीजिए!

“लेकिन मास्टर साहब! गांव वाले क्या कहेंगें?

“रघुनाथ जी! देखिए अगर कोई नई शुरूआत करनी है, तो आलोचनाओं से बिल्कुल भी नहीं घबराना चाहिएं, थोड़े दिन तो सब लोग बोलते हैं और फिर चुप हो जाते हैं, और ये भी हो सकता है कि आपकी देखा-देखी और लोग भी अपनी बेटियों को शहर के बड़े स्कूल पढ़ने के लिए भेज दें!

“ठीक है फिर तो! रघुनाथ बेबस होकर बोले, प्रखर बुद्धि की अपनी बिटिया को देखकर सोचते तो वो भी थे, कि उनकी बिटिया खूब पढ़े-लिखे, लेकिन गांव वालों की बातों से डर लगता था…. अंत में संध्या की जिद की जीत हुई… उसका एडमिशन शहर के स्कूल में हो गया… संध्या साइकिल से स्कूल जाने-आने लगी…

गांव वालों ने तरह-तरह की बातें बनाईं “रघुनाथ का तो दिमाग खराब हो गया है! छोरी बिगड़ जाएगी, नाक ना कटवाए रघुनाथ की तो कहना! लेकिन रघुनाथ को मास्टर साहब की बात याद आती कि समाज में कुछ भी परिवर्तन करेंगें तो आलोचनाओं का सामना तो करना ही पड़ेगा…! और वो उन सब कटाक्षों को अनसुना कर देते….

 

समय बढ़ चला, संध्या की देखा-देखी और भी बेटियां शहर पढ़ने जाने लगीं…. संध्या ने तो फिर पीछे मुड़कर ही नहीं देखा… वो लगातार पढ़ाई में आगे-आगे बढ़ती चली गई और उसी गांव के ग्रामीण बैंक की मैनेजर बनकर आ गई…. आज सभी गांव वाले जो रघुनाथ पर कटाक्ष करते थे, आज वही कहते नहीं अघाते कि “हम लोग तो सोचते ही थे कि संध्या बिटिया जरूर जीवन में कुछ अच्छा ही करेगी! इसने तो गांव की बेटियों के लिए एक नई क्रांति उत्पन्न कर दी! रघुनाथ और गंगा तो अपनी बिटिया की उन्नति को देखकर फूले ही नहीं समाते…..

 

ये कहानी स्वरचित है

मौलिक है

आपको मेरी कहानी कैसी लगी, लाइक और कमेंट्स के द्वारा अवश्य अवगत करवाइएगा और प्लीज मुझको फॉलो जरूर कीजिएगा।

धन्यवाद आपका🙏😀

आपकी सखी

सीमा रस्तोगी 

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