बहू,शायद तुमने मुझे हल्के में ले लिया। – वर्षा गुप्ता
- Betiyan Team
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- on Jan 17, 2023
सच जीजी, तुम्हे देख कोई भी नहीं कह सकता कि अब तुम सास बनने जा रही हो.
फुर्ती इतनी की अच्छी अच्छी जवान लड़कियां भी गच्चे खा जाएं.
वैसे एक तरह से ठीक ही है ,अपने हाथ पैर चलाते रहो तो किसी के भरोसे नहीं रहना पड़ता, पर एक बात
कहूं जीजी, अब न आपके आराम के दिन आ गए हैं,अब बहु आ रही है अब थोड़ी अपनी सेवा का मजा लेना••••
क्यों छोटी बिल्कुल सही कह रही हूं न मैं,रजनी ने खिलखिलाते हुए अपनी बहन सुषमा से कहा••••
बहु•••ला रही हूं,कोई नौकरानी नहीं ,जो उसके आते ही अपनी सारी जिम्मेदारी उस पर छोड़ दूं.
मेरे लिए जैसे मेरी बेटियां हैं,, वैसे ही,,,,मेरी बहू भीं होंगी.
मै उसे अपनी पलकों पर बिठा कर रखूंगी.
सब किताबी बातें होती हैं,जीजी.
बहु ,कभी बेटी नहीं बन सकती,,खैर हमें क्या आजकल तो घर घर की कहानी है,आप हमसे बडी हो,दुनियां आपने हमसे ज्यादा देख रखी हैं,,पर हम दोनों की बहुएं आ गई हैं,तो समझाना हमारा फर्ज था बाकी आगे आपकी मर्जी.
शशि जी अपनी तीन बहनों में सबसे बड़ी हैं,दोनों ही अपनी गृहस्थी से पूर्ण हो चुकी हैं,,,शशि जी की भी दो बड़ी बेटियां हैं,,जिनकी शादी को भी काफी समय बीत चुका है,,,पर चूंकि शशांक दोनों बेटियों के बहुत समय बाद हुआ था, इसलिए अब घर में उसकी शादी का नंबर आया था.
शशि जी की दोनो बेटियां अपनी अपनी गृहस्थी में बहुत खुश थीं, अपने छोटे भाई के लिए श्रेया को पसंद करने वो दोनों खुद से ही गई थीं••••
श्रेया एक बड़े संयुक्त परिवार में पली बड़ी अपने भाई बहनों में सबसे बड़ी थी,,परिवार का ख्याल ,,आदर मान सम्मान ,,अच्छे से कर पाएंगी,,यही सोच कर अपने शंशांक के लिए श्रेया को पसंद किया गया था•••
सगाई से लेकर शादी तक शशि जी और अशोक जी ने दिल खोलकर खर्च किया था, एक एक चीज श्रेया को अपने साथ खुद ले जाकर उसकी पसंद से दिलवाई गई थी,,श्रेया भी इतना प्यार करने वाला परिवार पाकर बहुत खुश थी.
शादी खूब धाम से संपन्न हुई. कुछ दिन तक अपनी नई भाभी के साथ समय बिताने के बाद उनकी दोनों बेटियां भी अपने घर रवाना हो गईं.
पर जैसा सोचा था, वैसा उसके विपरीत ही निकला.
श्रेया एक संयुक्त परिवार की पली बढ़ी जरूर थी,,पर उसका सपना हमेशा एकल परिवार में रहने का था,उसे एकांत बहुत पसंद था•••••
हालांकि उसके नए परिवार में सास ससुर,पति और वो खुद इन चार सदस्यों के अलावा और कोई पांचवा नहीं था, पर फिर भी वह हमेशा सभी से कटी कटी सी ही रहती.
वहीं शशि जी ने अपनी नई बहु से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें लगा रखी थीं,,,
बेचारी सुबह श्रेया के उठने से पहले ही उसके लिए चाय नाश्ता तैयार करके रख देती थीं.
कई बार अशोक जी ने मजाक मजाक में उनसे कहा भी था कि शशि जी ये आप सही नहीं कर रहीं ,,माना श्रेया नई नई है,,पर उसे अपनी जिम्मेदारी शुरू से ही समझनी चाहिए.
आपको तो पता ही है,,माताजी थीं नहीं ,,बहुत छोटी सी उम्र में ही आकर मैंने अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया था,,
इस घर को और बच्चों को बनाने में दिन रात एक कर दिए पर अब जब तक हम हैं, मैं नहीं चाहती कि मेरी बहु भी इन सब तकलीफों से गुजरे, अभी नई नई है, उसे अपनी जिंदगी आराम से जी लेने दीजिए फिर तो यही सब करना है, शशि जी हंस कर बात टाल देतीं.
धीरे धीरे श्रेया ने शशि जी के प्यार का फायदा उठाना शुरू कर दिया ,वो सुबह ग्यारह बजे से पहले अपने कमरे से उठ कर ही नही आती,
जब तक अशोक जी अपना खाना लेकर दुकान पर निकल जाते थे. रात को भी अशोक जी जल्दी की खाना खा लेते थे,और श्रेया अपने और शशांक के लिए कभी विदेशी खाना बना लेती या फिर कभी होटल से ऑर्डर कर रसोई से निकल पार्क में घूमने निकल जाती,,वहीं हल्का खाने वाले शशि जी को अपने और अशोक जी के लिए खुद से खाना बनाना पड़ता.
ऐसी ही गृहस्थी की छोटी छोटी बातों से जल्दी ही उन दोनों के बीच मनमुटाव शुरू हो गया था,,,जहां शशि जी इसे श्रेया का बचपना समझ बातों को नजरंदाज कर देतीं
वहीं श्रेया नमक मिर्च लगाकर रात को शशांक के आते ही सारी बातें उसके सामने परोस देती.
धीरे धीरे घर का शांत वातावरण अशांत बन चुका था,,,घर के चार सदस्य भी दो हिस्सों में बंट चुके थे.
हालंकि शशांक इन सब बातों को समझता था पर वह बेचारा तो मां और पत्नी के बीच मात्र पिस कर रह जाता है.
श्रेया और शशांक की शादी की पहली सालगिरह थी,,दोनों ही बहनें अपने भाई भाभी को सरप्राइज़ देने के लिए रात बारह उपहार व केक काटने का प्रोग्राम बनाया था.
दोनों को एक साथ देख शशांक की तो मानो खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा,,पर श्रेया वह तो अपना यह दिन सिर्फ अपने पति के साथ ही बनाना चाहती थी,,इसलिए अनमने ढंग से ही वो केक काटने की रस्म में शामिल हो पाई.
मुझे ये दिखावा पसंद नहीं है, अपनी बहनों से कह देना अगली बार समय देख कर आया करें, पूरी नींद खराब कर दी,श्रेया को उसकी पहली वर्षगांठ का तोहफा देने जब वह उनके कमरे की तरफ आईं ,तब श्रेया के मुंह से इस प्रकार के शब्द सुनकर मानो उन्हे बृजपात सा हो गया.
जिसे वो बेटी बेटी कहते कहते नही थकती थीं, आज वही उनकी बेटियों को अपने ही घर आने के लिए भी समय का नियम बता रही है.
शशि जी गुस्से में अपने कमरे में चली आईं.
नासमझ है,अभी वो परिवार के महत्व को नहीं पहचानती और फिर तुम ही तो कहती हो धीरे धीर सीख जायेंगी,,फिर अब गुस्सा करने से क्या फायदा.
सारी बात जानने के बाद अशोक जी ने शशि जी को कहा.
शायद गलती मेरी ही थी, सुषमा और रजनी सही ही कह रही थीं,,खैर शायद मेरी किस्मत में ही ऐसा लिखा था, श्रेया की हरकत ने शशि जी को अंदर तक बहुत दुख पहुंचाया था.
श्रेया की शादी को तीन साल बीत चुके हैं,पर न तो वो अपने सास ससुर का खाना बनाती है और न ही घर के कुछ कामों में हिस्सा लेती है.
घर की बेटियों के छुट्टियों में रहने आने पर भी ,, उसका हर बार एक नया ही रूप निकल कर आता.
धीरे धीरे भाई की खुशी और घर की शांति के लिए दोनों ही अपने ही घर आना कम कर देती हैं.
परिवार की बदनामी के डर से ,और अपने बेटे की चिंता में वो दोनों भी चुपचाप सब कुछ सहन करते रहते हैं.
शशि जी बेचारी अपने मन की बात अपनी बेटियों से ही कर लेतीं.
इधर श्रेया ने पूरे समय शशांक के कभी उसके बहनों को लेकर कभी शशि जी के खिलाफ कान भरते रखना जारी ही रखा.
शशांक से अपने माता पिता का दुख नहीं देखा जाता ,,वहीं वह अपनी पत्नी को भी बहुत प्यार करता था
पर जब थकाहरा इंसान रोज रोज घर आकर एक ही चीज सुनता है तो उसका गुस्सा फूट ही जाता है.
एक दिन••••
मां,, मैं रोज रोज के क्लेश से तंग आ चुका हूं, श्रेया आप लोगों के साथ रहना ही नहीं चाहती.क्यों न आप दोनों घर के नीचे वाले हिस्से में रहने चले जाएं और श्रेया को ऊपर रहने दें, कम से कम घर में शांति तो रहेंगी. मैं आपका और पापा का अब और अपमान होते नहीं देख सकता ••••••वैसे भी श्रेया की हरकतों की वजह से दीदियां भी अब घर नही आती हैं,बेचारी इसमें उन दोनों का क्या दोष
आखिर उनसे उनका मायका क्यों छीना जाए•••••
अपने बेटे के मुंह से इस प्रकार के शब्द सुनकर उन्हें अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ,ये वही बेटा है,,जिसके लिए उन्होंने न जाने कितने ही मंदिरो में माथा टेका था.
बहु तो चलो दूसरे घर से आई है,,पर बेटा तो अपना है,,,••••
नहीं ••नहीं मैं यह सब क्या सोचने लगी,शशांक ऐसा कुछ नहीं सोच सकता,मां होकर मुझे उसकी परिस्थितियों को समझना चाहिए,,जो दर्द मुझे बहू ने दिया है,,उसके लिए मैं अपने बेटे को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकती,,अपने इस दर्द का निवारण मैं खुद ही निकालूंगी
उन्होंने,अपने आप को संयम में रखते हुए,उन्होंने बोलना शुरू किया,,,
तुम बिलकुल सही कह रहे हो. जानते हो तुम, जब मेरी दो बेटियां हो गई थीं तब डॉक्टर ने मुझे तीसरा बच्चा करने के लिए साफ मना कर दिया था,,तुम्हारे पिताजी तो बिल्कुल भी तैयार नहीं थे,,पर मैंने ही जबरदस्ती की थी,पर इस दिन के लिए नही•ं••••
ये घर तुम्हारे पिताजी ने अपनी मेहनत की कमाई से बनाया है
न तो मैं नीचे वाली मंजिल पर रहने जा रही,और न ही तुम ऊपर, बहुत हुआ ,,तुम दोनों अपना इंतजाम कहीं और कर लो.
अपने बेटे के लिए हर समय जान हाजिर करने वाली शशि जी इस प्रकार का भी कोई निर्णय ले लेंगी यह श्रेया ने कभी सपने भी न सोचा था,,उसके सारे सपनों पर पानी जो फिर चुका था.
थोड़ी ही देर में वह शशि जी के पास माफी मांगने के लिए खड़ी थी.
कभी कभी अत्यधिक मोह और मीठा भी अपने ही दर्द का कारण बन जाता है,,,और इस उम्र में अब हमसे ज्यादा झेला नहीं जाएंगा•••••तुम हमारे लिए पहले भी लाड़ली बहु थी और आगे भी रहोगी, पर मैं तुम्हारी सास हूं, तुम्हारे पति की मां,,,जो उसे जन्म देने के लिए अगर दुनिया से लड़कर कष्ट सहकर दुनिया में ला सकती है तो उसके बिना रह भी सकती है,,,आगे से कभी भी एक मां को कमजोर मत समझना.
मां का दिल था,,जल्दी ही पसीज गया,,पर अपने ही घर में अपने वर्चस्व के लिए फिर से ऐसा कोई निर्णय न लेना पड़े,,वह शशांक और श्रेया को अपने से दूर ••••ऊपर वाली मंजिल ने रहने का आदेश दे देती हैं!!!!
दोस्तों ,शशि जी ने ठीक किया या नहीं कृपया कर अपनी राय मुझे COMMENT बॉक्स में जरूर दीजियेगा,
#दर्द
आपकी दोस्त
वर्षा गुप्ता
सर्वमौलिक अधिकार सुरक्षित
धन्यवाद।।