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आ अब लौट चलें  –  प्रीति सक्सेना

 इकलौते बेटे बहू के आग्रह पर , वृद्ध माता पिता शहर आ तो गए पर, यहां की भागती दौड़ती जिंदगी के साथ , तालमेल बैठा पाना उनके लिए बड़ा कठिन हो रहा था, छोटा सा फ्लैट, बेटा बहू, दो बच्चे और ये दो, कुल मिलाकर छह प्राणियों का परिवार !!
 
        बच्चे शहर की जिंदगी के अभ्यस्त थे , पर
गांव का खुला खुला घर, आसपास सारे पड़ोसी जिनके साथ बरसों के बनाए मधुर सम्बंध, यहां
आजू बाजू कौन है ये तक पता नहीं, बेटा बहू नौकरी पर और बच्चे स्कूल, सारा घर एक अजीब से सन्नाटे से घिर जाता, कहीं कोई आहट नहीं कोई शोर नहीं , दिल घबरा सा जाता वृद्धों का, बस एक दूसरे से बातें करें भी तो कितनी करें, बाबूजी को अपनी चौपाल, सरपंच जी मुखिया जी से की गई चर्चा याद आती वहीं अम्मा को भी बड़ी, पापड़ बनाना याद आता, यहां की सब्जियां देखकर खाने से मन उचट जाता, अपनी बगिया की हरी भरी साफ सुथरी साग भाजी याद आती!! पड़ोसनो से की गई
दुनियां जहान की पंचायत याद आती जिसे सोचकर मुस्कुराहट आ जाती चेहरे पर!!
 




     पंडिताइन की बहू की जचकी होना थी, मेरे बिना जापे के लड्डू कैसे बनाएगी, सारे गांव में मुझसे अच्छे लड्डू कौन बांध सके है, सोचकर अम्मा की गरदन गर्व से तन गई, देख बाबा बोले …. बुढ़िया किस बात पर ऐंठे जा रही है कुछ बता तो … अम्मा तुरंत बोली… मोहन से कहकर टिकट तो कटवाओ जी, मेरा मन न लगे यहां सच्ची, आते जाते रहेंगे अपन  यहां पर, घरौंदा तो अपना वही रखेंगे जी.. मोहन से बात कर ही लो आप तो.. ……      अब तो . . . बाबा भी सोच विचार में पड़ गए!!
 
  आखिर मोहन को मना ही लिया कि आते जाते रहेंगे पर अपने घोंसले से उन्हें दूर न करें, आज वो दिन आ गया मोहन अम्मा बाबूजी को स्टेशन छोड़ने आया है, उन्हें खंभे के पास बैठाकर ठंडे पानी की बोतल लेने स्टॉल पर गया है, आज अम्मा अपने को बहुत हल्का फुल्का सा महसूस कर रही हैं, बाबूजी भी इत्मीनान से आलथी पालथी मारकर बैठे हैं , मोहन पानी ले आया , लाउडस्पीकर पर घोषणा हुई, ट्रेन दो घंटे देरी से आएगी, बाबूजी ने मोहन को ऑफिस जाने को कहा वरना देर हो जाती!!
 
   अम्मा बिल्कुल निश्चिंत सी होकर बोली, मुझे नींद सी आ रही है, आपका सहारा लेकर एक झपकी ले लूं, बाबूजी समझ रहे थे आज बहुत खुश और निश्चिंत दिख रही है, सिर हिलाकर उन्होंने पत्नि का सिर अपनी जांघों पर टिकाकर सिरहाना सा बना दिया, अम्मा भी खुशी की एक लंबी सांस लेकर सो गई!!
 
प्रीति सक्सेना
इंदौर

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