शादी फिर प्रेम, या प्रेम फिर शादी – सुधा जैन

सुंदर सी प्यारी सी नैना अपने हृदय कमल में सपनों का संसार  संजोए थी। नैना का जन्म मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था, पर  परिवार में सबकी लाडली थी। उसकी सभी इच्छाओं की पूर्ति होती थी। उसने अपनी शिक्षा भी अच्छे से पूर्ण की ,और सपनों के राजकुमार की कल्पना करने लगी। उसकी बड़ी भाभी … Read more

लाश़ोत्शव – विनोद सिन्हा ‘सुदामा’

अभी एक लाश़ पूरी तरह जली भी नहीं थी कि दूसरी आ गयी..दूसरी को चिता पर लिटाता कि तीसरी..फिर चौथी फिर पाँचवी….करते करते…डोम राजा के सामने लाशों की कतार लग गयी…!! डोम राजा खुश भी हो रहा था कि आज अग्निदान के अच्छे पैसे मिल जाऐ़गे …अतः इस आशा में बार बार एंबुलेंस से उतरती … Read more

हंसनी – अनुज सारस्वत

“ओ हंसिनी मेरी हंसिनी, कहाँ उड़ चली मेरे अरमानों के पंख लगा के, कहाँ उड़ चली” रेलवे ट्रैक पर एक साइड रेडियो रखा हुआ था उसमें यह गाना बज रहा था और एक साइड छैलामल मस्ती में कबूतर की भाँति गर्दन नचा नचा कर धुन में मस्त था ,तभी वो क्या देखता है थोड़ी देर … Read more

बेटियां – अनामिका मिश्रा

आराधना स्कूल के लिए तैयार हो रही थी। तैयार होते हुए उसने पूछा, “माँ टिफिन दे दो समय हो चला है!” पर मां का कोई जवाब नहीं आया। वो कमरे से बाहर निकल कर देखती है, कि मां सो रही है। उसने आवाज लगाया, तो उसकी माँ धीरे से बोली, “बेटा, आज सिर में बहुत … Read more

बुरे से भगवान भी डरे  – सुधा जैन

बचपन में जब हम सब भाई बहन छोटे थे, तब मेरे नाना हमारे घर आते ,और हमें बहुत सारी कहानी सुनाते। कहानी सुनना बहुत अच्छा लगता था ,क्योंकि उस समय मनोरंजन, ज्ञान ,जिज्ञासा, उत्सुकता, ध्यान इन सबके लिए एकमात्र माध्यम कहानी था। एक बार नाना जी ने हमें कहानी सुनाई ,और उस कहानी को सुनकर … Read more

माँ तेरे आँचल की छाँव – दिव्या राकेश शर्मा

माँ की अंतेष्टि भी हो गई।सब रस्में निपट गई।दे दी गई माँ को आखिरी विदाई।वेदिका पापा की सूनी आँखों को देख रही थी।भैया की खामोशी और चित्रा की मासूमियत।अभी तो माँ की जरूरत थी उसे।माँ की तस्वीर पर चढ़े हार को देखकर वह अपनी रूलाई नहीं रोक पाई।मुँह में पल्लू ठूंस कर वह बाथरूम की … Read more

पद चिन्ह – कंचन श्रीवासत्व

  पुरुषों की बनाई इस दुनिया में स्त्रियों का अस्तित्व उन्हीं से है जितना सच ये है ।उतना ही सच ये भी है कि बदलते वक्त के साथ  कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं ,इसकी वजह सिर्फ ऊंची महात्वाकांक्षा है। खैर कोई बात नहीं ये कोई मुद्दा नहीं है सब ठीक है पर जहां … Read more

हिदायतों के बाद भी — मुकुन्द लाल

प्रवीण के दफ्तर जाने के बाद रजनी अपनी बच्ची रिंकी को गोद में लेकर घर में बैठी हुई थी। अचानक गेट को खटखटाने की आवाज आई।  ” कौन?”  फिर भी प्रत्युत्तर में कोई आवाज नहीं आई।  उसके जेहन में अपने पति द्वारा दी गई चेतावनी युक्त बातें उभरने लगी।  शहर में बढ़ते अपराधों, लूट-पाट और … Read more

अकेले – पूनम वर्मा

शैली को इस शहर में आए कुछ ही दिन हुए थे । उसकी दो जुड़वाँ बेटियाँ थीं । एक दिन वह दोनों बेटियों को लेकर कॉलोनी के पार्क में गई । बच्चियाँ खेलने में मशगूल हो गईं और शैली किनारे बेंच पर बैठ गई । तभी एक अधेड़ महिला उसके पास आकर बैठीं और बातचीत … Read more

अनदेखा प्यार – गोविन्द गुप्ता 

राघव जो कभी भी ऑनलाइन प्लेटफार्म की ओर गया ही नही शोशल मीडिया से दूर रहने का ही मन करता था उसका, पर दोस्तो के कहने पर फेसबुक आईडी बना ली और वाट्सअप भी इनस्टॉल कर लिया तो धीरे धीरे पोस्ट लाइक कमेंट्स होने लगे अनजाने दोस्तो से दोस्ती अच्छी लगनी लगी खुद की सेल्फी … Read more

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