बुरे से भगवान भी डरे  – सुधा जैन

बचपन में जब हम सब भाई बहन छोटे थे, तब मेरे नाना हमारे घर आते ,और हमें बहुत सारी कहानी सुनाते। कहानी सुनना बहुत अच्छा लगता था ,क्योंकि उस समय मनोरंजन, ज्ञान ,जिज्ञासा, उत्सुकता, ध्यान इन सबके लिए एकमात्र माध्यम कहानी था। एक बार नाना जी ने हमें कहानी सुनाई ,और उस कहानी को सुनकर हम बहुत रोमांचित हो गए ।

एक गांव की बात है। सास और बहू रहते थे। बहू रसोई में काम करती और उसकी आदत थी कि सुबह उठकर कुछ ना कुछ खा लेना ,चाहे रोटी हो ,पराठा हो या जो भी बासी बचा हो, वह घर के सभी सदस्यों से छुपकर  खा लेती ।यह बात कोई नहीं जानता था ।एक बार सासु जी ने सत्यनारायण भगवान की कथा का आयोजन घर पर करवाने की सोची और बहू को कहा “बहू आज तुम व्रत रख लेना और कथा के बाद ही भोजन करना “।

बहू ने सासु जी के सामने हां कर दी, लेकिन उसे पता था कि उसका भूखा रहना मुश्किल है।

कथा का दिन आया ।आज तैयारियों के कारण सासूजी भी रसोई में आ जा रहे थे। बहू को मौका नहीं मिल रहा था कि कुछ भी खा ले, लेकिन उसके दिमाग में  खुराफात चल रही थी ।उसने एक पोटली ने आटा बांधा और पानी का हंडा लिया और पनघट पर जाने लगी।

पनघट पर जाकर उसने एक बड़ा पत्ता लेकर  उस आटे को गूंध लिया ,और चार बाटियां बना ली ।सोचने लगी इसे कहां पर सेंकू।

थोड़ी दूर पर ही श्मशान गृह था, वहां पर एक चिता जल रही थी, उसने तुरंत वहां जाकर बाटियां सेक ली।

अब सोचने लगी इन्हें बगैर घी के कैसे खाऊं?


मैंने तो घी के बगैर कभी खाई नहीं,

बस गांव में ही माताजी का एक मंदिर था। वहां पर शुद्ध घी की अखंड ज्योति जलती थी। वह वहां गई। संयोग से उस समय कोई नहीं था। उसने घी के दिए में से बांटिया चुपड़ी और माताजी के मंदिर में कोने में खड़े होकर खा ली, और पानी भरकर घर आ गई।

आराम से पूजा-पाठ हुई। उसका पेट तो भरा हुआ था। खाने में कोई जल्दबाजी नहीं की। सास ने सोचा” कितनी सुशील बहू है, कितनी देर हो गई फिर भी भूख नहीं लगी”।

इस प्रकार वह दिन बीत गया।

अगले दिन माताजी के मंदिर में जब पुजारी जी आए तो देखा, माताजी के मुंह पर उंगली रखी हुई है। पुजारी जी ने ऐसा कभी नहीं देखा था। उन्हें लगा ,मुझसे कोई गलती हो गई है ।उन्होंने माता जी के हाथ जोड़े और एक बार फिर शरीर की शुद्धि की। नहाए पूजा की ।लेकिन माता जी की उंगली नहीं हटी। ऐसा उन्होंने कई बार किया।

गांव के सरपंच, मुखिया सभी को बुलाकर यह बात कही। लेकिन माताजी के मुंह से उंगली नहीं हट रही थी। सभी परेशान हो गए। पूरे गांव में ऐलान करवाया गया। जो भी माताजी के मुंह से उंगली हटाएगा, उसे इनाम दिया जाएगा।

जब बहू ने भी यह बात सुनी तो वह कहने लगी,” मैं हटा सकती हूं, माताजी के मुंह से उंगली”


सासु जी ने “ऐसा”

उसने बोला” हां”

वह मंदिर में गई और पुजारी जी से कहा “मैं हटा सकती हूं उंगली, पर शर्त यह है कि मैं मंदिर में अकेली जाऊंगी”।

सभी ने हां बोल दिया। वह मंदिर में गई और माताजी के सामने खड़े होकर माताजी को कहने लगी” क्यों माताजी मैंने तुम्हारे लिए दिए में से थोड़ा घी क्या लेलिया ,तुमको इतना बुरा लग गया और तुमने मुंह पर उंगली रख ली” माताजी ने मुंह पर से उंगली नहीं हटाई, तब वह दुष्ट बहू बोली “उंगली हटा रही हो या नहीं ,बड़ी देखी, अगर नहीं हटाओगी तो मैं तुम्हारे मुंह पर थप्पड़ मार दूंगी “।

जब माताजी ने यह बात सुनी तब मन ही मन सोचा” इस दुष्टा का क्या भरोसा, यह मेरे मंदिर में आकर मेरे ही दिए से घी लेकर मेरे ही सामने बाटी खा सकती है, तो यह मुझे मार भी सकती है।  इसके लिए कोई बड़ी बात नहीं है। और ऐसा सोचकर माताजी ने अपने मुंह से उंगली हटा ली। बहु बाहर आई और कहा कि “मैंने माता जी के मुंह से उंगली  हटा दी है “

गांव के सभी लोग बहू को मान गए और उसकी जय-जयकार करने लगे। कहने का आशय यह है कि जो बुरे होते हैं, उनसे भगवान भी डरते हैं ,इंसान की तो क्या औकात।

जब भी कहीं हमें ऐसे लोग मिले तो उनसे तौबा कर लेना चाहिए। यह कहानी सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा था। जीवन की एक सीख भी मिली की कभी ऐसे लोग मिले तो मन में सोच लेना कि” बुरे से भगवान भी डरे* तो हम तो क्या चीज है?

इस प्रकार रहस्य और रोमांच से भरी हुई कहानी सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा।

सुधा जैन

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