हिदायतों के बाद भी — मुकुन्द लाल

प्रवीण के दफ्तर जाने के बाद रजनी अपनी बच्ची रिंकी को गोद में लेकर घर में बैठी हुई थी। अचानक गेट को खटखटाने की आवाज आई।

 ” कौन?”

 फिर भी प्रत्युत्तर में कोई आवाज नहीं आई।

 उसके जेहन में अपने पति द्वारा दी गई चेतावनी युक्त बातें उभरने लगी।

 शहर में बढ़ते अपराधों, लूट-पाट और ठगी से संबंधित घटने वाली घटनाओं के मद्देनजर पहले ही अपनी पत्नी को हिदायतें दे रखी थी कि जब वह दफ्तर चला जाय तो गेट पर ताला लगाये रखना है, किसी फेरीवाले से कोई सामान नहीं खरीदना है, उसको भी अकेले या रिंकी के साथ घर से बाहर नहीं निकलना है। घर के पिछले दरवाजे पर भी ताला लगाये रखना है.. आदि-आदि।

 कुछ मिनट के बाद फिर आगन्तुक ने गेट को जोर-जोर से पीटना शुरू कर दिया। तब विवश होकर वह गेट के पास गई और उसे फटकारने लगी, ” कैसे आदमी हो?.. आदमियत तुममें है या नहीं.. गेट को ढोल समझ लिया है क्या?”

 ” हम रिश्तेदार हैं साहब के।”

 ” साहब से क्या रिश्ता है तुम्हारा?”



 ” पहले गेट खोलिएगा तब न बताएंगे”

 ” पहले बताओ।”

 ” प्रवीण बाबू मेरे मौसेरे भाई लगते हैं।”

 ” कैसे?.. समझाओ, अपना पूरा पता बताओ.. “

” पूरा ब्यौरा कैसे दें, पहले गेट खोलिए टायलेट जाना है.. हम सब बतायेंगे उनका और अपने पूरे खांदान का इतिहास और भूगोल, मेहरबानी करके जल्दी गेट खोलिए नहीं तो मेरे लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा.. हम कोई चोर, उचक्का नहीं हैं। “

 उसने गेट खोल दिया।

  वह तेज गति से अंदर आया, अपना बैग हाॅल के मेज पर रखकर रजनी द्वारा बताए गये बाथरूम में धनुष से छूटे हुए तीर की तरह प्रवेश कर गया।

 बाथरूम से लौटने के बाद उसने प्रवीण के माता-पिता और अन्य रिश्तेदारों के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी दी, उसी क्रम में उसने अपना नाम विलास बतलाया।

 चाय-पानी की औपचारिकता पूरी करने के थोड़ी देर बाद रजनी ने कहा, ” मैंने कभी घरेलू फंक्शन में नहीं देखा और न कभी गांव में आते-जाते देखा..”

 ” बात ऐसी है कि मेरा काम कोलकाता और मुंबई जैसे बड़े-बड़े शहरों में चलता है, गांव देहात में मेरा धंधा नहीं चल सकता है, कभी- कभार गांव में भी आ जाता हूँ। अभी हम गांव से ही चले आ रहे हैं। “

 उसकी वाक्-पटुता ने रजनी के मन में उमड़-घुमङ रही शंका की उर्मियों को शांत कर दिया था।

 कुछ पल के बाद उसने पूछा,” दफ्तर से प्रवीण बाबू कब लौटेंगे? मैं तो अभी ही चला जाता किन्तु वे दुख मान जाएंगे कि हमसे बिना मुलाकात किए हुए चला गया, हम भेंट-मुलाकात करके तुरंत यहांँ से चले जाएंगे। रात में कोलकाता वाली ट्रेन पकड़नी है।”

 दफ्तर से लौटने के बाद आगन्तुक को देखते ही प्रवीण का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंँच गया, फिर भी उस पर नियंत्रण कर लिया उसने,उसके बाद क्रोध-भरी नजरों से अपनी पत्नी को देखते हुए उसे कमरे में बुलाया, फिर अत्यंत धीमी आवाज में कहा,” यह क्या किया तुमने? हिदायत देने के बाद भी।”



 ” मैं क्या करती?.. उसने कहा कि साहब मेरे मौसेरे भाई हैं, मेरा मोबाइल भी कई दिनों से रिचार्ज नहीं है, इसलिए मैं आपको खबर नहीं कर सकी।”

 ” मेरा मौसेरा भाई नहीं है, वह मेरे अपने मौसेरे भाई के चचेरे भाई का दूर के रिश्ते में भाई है। “

 क्षण-भर बाद उसने पुनः कहा,” खैर!.. सतर्क रहो, कड़ी निगरानी रखो, इस ग्रह को घर से जितना जल्द हो सके विदा कर देने में ही भलाई है..यह शरीफ सा दिखने वाला आदमी कई बार जेल की यात्रा कर चुका है। “

 आश्चर्यचकित होकर रजनी प्रवीण का मुँह देखती रह गई।

 प्रवीण ने उसका हाल-चाल पूछा, उसे खाना खिलाया, कुछ देर ठहरने के बाद उसने कहा,

” प्रवीण भाई!.. यात्रा के दौरान हड़बड़ी में मेरे पाॅकेट से पैसे गिर गए कहीं, कृपया भाड़े भर पैसे दे दीजिए, दुबारा आया तो पैसे लौटा दूँगा।”

 ” नहीं!.. नहीं!.. लौटाने की जरूरत नहीं है, आदमी ही न आदमी के काम आता है” जबरन अपने चेहरे पर मुस्कान बिखेरते हुए उसने कहा, फिर उसको भाड़े के पैसे भी दे दिये।

 कुछ मिनट के बाद ही वह वहांँ से मेज पर रखे हुए अपने बैग को लेकर निकल गया।

 पति-पत्नी ने राहत की सांँस ली।

 थोड़ी देर के बाद यकायक रजनी ने कहा,” मेज पर रखी हुई कीमती कलाई घड़ी गायब है।”

 प्रवीण अपनी पत्नी का चेहरा देखता रह गया।

   स्वरचित

   मुकुन्द लाल

   हजारीबाग

 

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