पद चिन्ह – कंचन श्रीवासत्व

 

पुरुषों की बनाई इस दुनिया में स्त्रियों का अस्तित्व उन्हीं से है जितना सच ये है ।उतना ही सच ये भी है कि बदलते वक्त के साथ  कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं ,इसकी वजह सिर्फ ऊंची महात्वाकांक्षा है। खैर कोई बात नहीं ये कोई मुद्दा नहीं है सब ठीक है पर जहां बात तीज त्योहार और पूजा पाठ की आती है तो उस मामले में पुरूष को आदि काल से लेकर आज तक कोई उपवास और धार्मिक कर्मकांड करते नहीं पाया गया।

इसके लिए स्त्री का ही सर्वोच्च स्थान रहा ।

मगर आज कल की बहू बेटियों को कौन बताए अपने आगे सुनती ही नहीं है।

 मिश्रराइन को इसी बात की चिंता है , माना वो आजाद ख्यालों की है पर इस मामले में बिल्कुल कट्टर हिन्दुस्तानी है, हर तीज त्योहार सास के बताए नियमों के अनुसार करती है पर पिछले महीने ब्याह कर आई इंजीनियर बहू से कुछ कहते हुए डर रही ,पता नहीं वो मानेगी की नहीं।

इसलिए उन्होंने बेटे के द्वारा कहलवाया ।पर बेटा उससे कुछ कहता कि उसके पहले ही वो आकर बोली मां कल वट सावित्री व्रत है कैसे करती है आप भाभी वगैरा तो घर डंडी लाकर गमले में लगा  कर पूजा करती है पर मैं वैसे ही करूंगी जैसे आप करती हैं ये सुन उन्होंने चैन की सांस ली और बोली बेटा जिस तरह खंडित मूर्ति की पूजा नहीं होती उसी तरह डाल की भी पूजा नहीं होती।



या तो पेड़ लगाओ या जहां पर पेड़ हो वहां जाकर पूजा करो।

तभी व्रत का पूरा फल मिलता है।

इस पर वो बोली  तो चलिए वहीं करते हैं जहां सारी औरतें पूजा करती है।

जिसे सुन उनके मन में हिलौरें लेते बवंडर शांत हो गए और खुश हुई ये सोचकर कि भले आधुनिक है पर संस्कारी है बड़ों की बात मानने वाली और धार्मिक भी है फिर दोनो ने जाकर बरगद के पेड़ के नीचे पूजा की और पति के लम्बे उम्र की कामना भी की।ये देख मां बेटे मन ही मन मुस्कुराए मानों कह रहे हो।

माना आज की स्त्रियां अपना वर्चस्व स्थापित कर रही पर पूजा पाठ धर्म के मामले में अपने बड़ों के ही पद चिन्हों पर चल रही है।

 

स्वरचित

कंचन आरज़ू

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!