शादी फिर प्रेम, या प्रेम फिर शादी – सुधा जैन

सुंदर सी प्यारी सी नैना अपने हृदय कमल में सपनों का संसार  संजोए थी।

नैना का जन्म मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था, पर  परिवार में सबकी लाडली थी। उसकी सभी इच्छाओं की पूर्ति होती थी। उसने अपनी शिक्षा भी अच्छे से पूर्ण की ,और सपनों के राजकुमार की कल्पना करने लगी।

उसकी बड़ी भाभी कभी-कभी उससे मजाक में पूछती कि दीदी पहले शादी फिर प्रेम या पहले प्रेम फिर  शादी।

प्यारी सी नैना सकुचा कर बोलती, जो भी हो, फिर बोलती पहले शादी फिर प्रेम, फिर भाभी से बोलती की शादी और प्रेम साथ-साथ हो जाए तो कितना अच्छा हो।

प्यारी सी नैना के लिए एक रिश्ता आया, बहुत बड़े जमींदार परिवार में लड़का बैरिस्टर नवीन ।

नवीन के पिताजी को नैना भा गई और नैना का विवाह नवीन से हो गया।

सपनों को  संजोए हुए अपने पति के हवेली नुमा घर में उसका प्रवेश हुआ। नवीन बहुत पढ़े-लिखे, लेकिन उनका स्वभाव बहुत ही जड़ और संवेदनाओं  से रहित था।


पत्नी उनके लिए सिर्फ भोग्या थी। विवाह की प्रथम रात्रि को ही उनके कठोर स्वभाव की झलक नैना को मिल गई। नैना को इत्र बहुत पसंद था लेकिन उन्होंने उस इत्र की शीशी को फेंक दिया। चादर पर गुलाब के फूल बिखरे हुए थे ,उनको एक ही क्षण में झटक दिया, और नैना को उसी दिन ढेर सारी हिदायत दे दी, जैसे कि इस परिवार की परंपरा है कि तुम्हें खिड़की के पास खड़े नहीं होना है ,ताक झांक नहीं करना है, मेरे अध्ययन कक्ष में भी बगैर आज्ञा के प्रवेश नहीं करना है। प्यारी सी नैना कुछ समझ ही नहीं पाई, यह कैसी शादी है ,जहां पर प्यार का दूर-दूर तक पता नहीं है। उसका कोमल मन टूट सा गया। पति ने नैना को मात्र शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति का माध्यम बना लिया ।घड़ी के कांटे की तरह हर काम समय पर चाहिए था। उसके मन को, उसकी भावनाओं को, उसके हृदय की कोमलता, को कभी पढ़ने की कोशिश ही नहीं की। नैना सोचती थी, चांदनी रात में प्रिय पतिदेव के साथ बैठकर तारों को निहारु,  बगीचे में पौधों को प्यार से देखें ,लेकिन उसके सपने अपने पति के अनुशासन में, उनके स्वभाव की कठोरता में न जाने कब पिघल गए।

हंसती खेलती नैना कब उदासी के आवरण में ढक गई, पता ही नहीं चला जब मायके में आई तो भाभी ने बोला, नैना तुम्हें क्या हो गया तुम तो कितनी हंसती खिलखिलाती थी, कितना श्रृंगार करती थी, और अब तुम्हारे चेहरे पर उदासी कैसी ?

वह कहने लगी, भाभी क्या बताऊं? यह कैसी शादी, जहां पर प्यार का नामोनिशान नहीं है, मात्र आर्थिक, सामाजिक स्वतंत्रता,  बड़ी हवेली, बड़ी गाड़ी, नौकर चाकर इनसे अगर जीवन की खुशियां मिलती, तो मुझे ऐसी खुशियां नहीं चाहिए।

मुझे तो चाहिए अपने पति का प्यारा सा साथ, प्यार से भरा हुआ संसार जहां मेरे हृदय को पढ़ा जा सके ,

मेरी कल्पनाओं को साकार रूप मिल सके।

उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे परिवार के सब लोग समझ भी गए ,लेकिन हमारे देश की परंपरा विवाह को बहुत- मजबूत बंधन मानती है, और शादी को तोड़ना कहीं से भी आसान नहीं होता है।

सभी समझते हैं ,शादी समझौते की नींव पर टिकी रहती है।

नैना भी यही समझने लगी ,और शादी को एक समझौता मानकर अपने जीवन का निर्वाह करने लगी।

सोचने लगी कैसी विडंबना है? नारी के मन को पति क्यों नहीं जान पाते?

क्यों  उसे मात्र भोग्या समझते हैं, कभी-कभी ह्रदय में ख्याल आता कि हर माता-पिता जैसे लड़के का पारिवारिक स्टेटस देखते हैं, संपन्नता देखते हैं, शिक्षा देखते हैं, रंग, रुप ,कद, काठी देखते हैं, वैसे ही उस लड़के के हृदय को भी पढ़ा जाना चाहिए ।

उसके हृदय में भावनाएं हैं कि नहीं, वह नारी के मन को थोड़ा समझता है कि नहीं, ऐसी मन में उठापटक चलती रहती। यह भी समझने लगी कि अगर हर नारी जीवन में समझौते को ना माने तो किसी की गृहस्थी भी ना चले ,और पहली बार ससुराल आने के बाद , कोई भी लड़की दूसरी बार आना ना चाहे।


समय गुजरता रहा, वह गर्भवती हुई, तब भी पति का व्यवहार एक मशीनी व्यवहार था। अस्पताल जाते समय भी वह सोच रही थी कि इस कठिन समय में तो उसके पति उसके साथ होते पर उन्होंने तो मात्र अच्छे हॉस्पिटल और डॉक्टरों के व्यवस्था करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली।

समय गुजरता रहा, नैना के विवाह को 4 साल हो गए जब शादी की सालगिरह आई, तब नैना अच्छे से श्रृंगार कर अपने पति के अध्ययन कक्ष में गई, अपने श्रृंगार को दिखाना चाहती थी। अपने पति के मन को पढ़ना चाहती थी। लेकिन पति के पास इन सब चीजों की फुर्सत नहीं थी, वह तो समझते थे कि नारी को अनुशासन के माध्यम से ही कैद रखा जा सकता है।

नवीन के एक दोस्त अजय उनसे मिलने आए, और उन्होंने पूछा कि कैसे चल रही है तुम्हारी गृहस्थी, नवीन के मन में तो नारी के प्रति बहुत सारा जहर भरा हुआ था। सो वही बात कही, अजय ने उन्हें समझाया कि नारी मात्र भोग्या नहीं है, उसके अपने सपने हैं, उसकी अपनी स्वतंत्रता है ,उसके अपने विचार हैं, हमें एक दूसरे के विचारों का सम्मान करना चाहिए। यह जीवन की गाड़ी को चलाने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। नवीन बहुत कठोर थे फिर भी उनके हृदय में कुछ सोचने को मजबूर हो गया।

नैना कठोर अनुशासन और संवेदनहीन पति के साथ रहते-रहते थक गई, और उसने अपने मायके जाने की सोची और अपने नन्हे से पुत्र को लेकर जाने लगी ।

पाषाण ह्रदय नवीन के हृदय में प्रेम का संचार हुआ, अपनी पुरानी बातों को याद करके पश्चाताप करने लगे ।उन्होंने कब-कब नैना का  हृदय दुखाया इस बात को याद करने लगे, और नैना के पास आकर उससे माफी मांगने लगे। उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे। नैना तो प्रेम की प्यासी थी, तुरंत उसने माफ कर दिया, और अपने पति की बाहों में सिमट गई ।आज उसे शादी और प्रेम दोनों मिले, और वह ईश्वर को धन्यवाद देने लगी।

सुधा जैन

 

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