लाश़ोत्शव – विनोद सिन्हा ‘सुदामा’

अभी एक लाश़ पूरी तरह जली भी नहीं थी कि दूसरी आ गयी..दूसरी को चिता पर लिटाता कि तीसरी..फिर चौथी फिर पाँचवी….करते करते…डोम राजा के सामने लाशों की कतार लग गयी…!!

डोम राजा खुश भी हो रहा था कि आज अग्निदान के अच्छे पैसे मिल जाऐ़गे …अतः इस आशा में बार बार एंबुलेंस से उतरती लाशें जो अस्पतालों से लाकर श्मशानघाट पर पटक दी जा रही थी लालच भरी नज़रों से देख रहा था

लेकिन यह क्या…???

इन लाशों के परिजनों का तो दूर दूर कोई नामोनिशान नहीं था,परछाई तक भी नज़र नहीं आ रही थी किसी की..किसी लाश़ के साथ..

मरघट तो पहले से ही सूनसान था..आज़ और भयानक सन्नाटा छाया था यहाँ…जबकि होना यह चाहिए था कि इतने मुर्दा शरीरों के बीच..रूदन एवं आँसूओं की पुरजोर चित्कार सुनाई देनी चाहिए थी…

पर नहीं..कोई नहीं था जो कहता कि ये मेरे पिता की लाश है ये मेरी पत्नी की..ये भाई की ये बहन की..ये मित्र की.!

इन लाशों संग सभी रिश्तों ने भी दम तोड़ दिया था शायद…

न कोई कांधा देने वाला था,न कोई मुखाग्नि और ना ही  श्राद्धकर्म करने वाला..

तो फिर वह इन लाशों का मोल भाव करता भी तो किससे.. कोई था नहीं तो फिर किससे अग्नि दान के पैसे मांगता….



कौतूहलवश डोम राजा ने स्वास्थ्य कर्मियों से पूछा तो बस यही जवाब मिला…

कोई नहीं.. बस जैसे तैसे जला देना..

ओहहह…आज़ पहली बार श्मशान घाट पर आयी लाशों को देख कर खुश होने के बदले डोम राजा का मन करूणा से भर गया था..आँखें सजल थी..अंतर आत्मा रो रही थी…इच्छा हो रही थी कि जोड़ से चिल्लाए..इतनी जोड़ से कि पूरा ब्रह्मांड काँप उठे.. परंतु डोम राजा की क्षमता सीमित थी..मन ही मन रो कर रह गया…!

यह जानकर कि इस महामारी से मरने वालों को उनके परिजन छोड़ देते हैं यहाँ तक मुखाग्नि तो दूर कांधा तक नहीं देते..फिर चाहे..पिता हो या पुत्र…पति हो या पत्नी माँ हो या सास…सारे रिश्तों को इस महामारी ने प्राण हरने से पहले ही मार दिया होता है..कोई पास तक नहीं आता….और शायद सगे संबंधियों के इस विग्रहती के कारण भी इंसान समय से पहले मर जाता है…..

पास इतनी मदिरा भी नहीं थी कि जिसे पीकर स्वयं में शक्ति का संचार करता…और ज्ल्दी जल्दी चिताएं सजाता…

वैसे भी कहा गया कि वेदना जब अपनी परकाष्ठा पार कर जाती है और जब आप आपार दु:ख देख या सहन नहीं कर सकते तो आपके धर्य की सीमा टूट जाती है..

डोम राजा के साथ भी यही हो रहा था…सामने पड़ी लाशें बयां कर रही थी कहर कितना बड़ा है..मानव जाती पर कैसी विपदा है..



एक सच यह भी था कि अपने जीवन काल में डोम राजा ने एक साथ इतनी बड़ी संख्या में इतनी लाशें पहली बार देखी थी.! क्या बुज़ुर्ग, क्या जवान,ऐसा लग रहा था मानों लाशें ही एक दूसरे से गले लग कर रो रही हों..

जाने डोम राजा में कहाँ से इतनी हिम्मत आ गयी कि वहाँ पड़ी सारी लाशों को एक कतार में चिताएं सजा अग्नि के हवाले करने लगा थोड़े ही क्षणों में पूरा श्मशानघाट आग की लपटों में डूब गया…कहीं तमस का नामों निशान नहीं,हर तरफ़ जलती चिताओं से निकल रही आग़ की लपटें आँखों को चकाचौंध कर रही थीं,सारी ज्वाला आकर मानों आज़ श्मशान घाट म़े ही विरजमान हो गयी हो जैसे…कतार में सुलगती चिताओं को देख कर ऐसा लग रहा था मानो आज़ लाशोत्शव हो कोई…जैसे अमावस के दिन दीपोत्सव होता है…डोम राजा खामोश था परंतु उसकी आँखें सज़ल जिनसे निरंतर गंगा बह रही थी…अब यह गंगा मोह की थी दया की थी या सहानुभूति की कही नहीं जा सकती…!!

लेकिन बिना मोल अग्निदान का अपना कर्तव्य निर्वहन कर ..डोम राजा अपने आप को हल्का महसूस कर रहा था शायद यह कर्म उसका यह कृत उसके मोक्ष का कारण भी बने..और हरी चरणों में थोड़ी जगह मिल जाए शायद..।

साथ ही साथ डोम राजा ईश्वर से मन ही मन प्रार्थना कर रहा था कि आगे कभी किसी श्मशान घाटों में ये दु:ख और अफ़सोस से भरा मंज़र कहीं कभी देखने को नहीं मिले….!

कभी देखने को नहीं मिले….!!

विनोद सिन्हा ‘सुदामा”

21/05/21

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!