हंसनी – अनुज सारस्वत

“ओ हंसिनी मेरी हंसिनी, कहाँ उड़ चली

मेरे अरमानों के पंख लगा के, कहाँ उड़ चली”

रेलवे ट्रैक पर एक साइड रेडियो रखा हुआ था उसमें यह गाना बज रहा था और एक साइड छैलामल मस्ती में कबूतर की भाँति गर्दन नचा नचा कर धुन में मस्त था ,तभी वो क्या देखता है थोड़ी देर पर एक बेहद सुन्दर लड़की ट्रैक पर चल रही है, और पीछे से ट्रेन सायरन बजाती हुई आ रही है, छैलामल शोर मचाता हुआ उस तरफ भागा।

“ओ आंख की अंधी कान की बहरी मैडम ट्रैक से दूर हट जा री कुचल देयी है ट्रेन तो मलीदा बन जायी है”

पर उस लड़की के कान पे जूँ तक ना रेंगी वो बेधड़क चलती जा रही थी, छैलामल उस तक पहुंच चुका था उसे ट्रैक से हटाने की कोशिश कर ही रहा था कि ट्रैन दोनों को पार करती हुई धड़ाधड़ निकल गयी,लेकिन दोनों को खरोंच तक ना आयी।

छैलामल यह देखकर बड़ा चौंका और बोला

“अबे तेरी सास को ले जाये बंदर ससुरा ट्रेन तो बेलन की तरह चल के निकल गयी और हम ठूंठ से खड़े गजब जादू होई गवा रे”

इतने उसके गाल पे थप्पड पड़ा वो थप्पड़ उसी लड़की ने मारा और बोला।

“आँख का अंधा तो तू है,कोई जादू नही है, हम लोग मर चुके हैं, और भूत बने हैं ताजा ताजा ,देख मेरी बाॅडी पास की नदी में तैर रही।”


“पागल हो गयी है का छोरी हम ना ही मरे मरे हमारे दुश्मन,हम कोई सपना देख रहे। अभी तो बहुत कुछ देखनो बाकी है,झूठ ना बोल वरना हार्ट अटैक से सच्ची में मर जायेंगे आयी बड़ी मर गये वाली”

फिर वो लड़की बोली

“मान  बे गधे की दुम मरा क्या दोबारा मरेगा,यकीन ना हो रहा तुझे देख ये पटरी के पत्थर उठा के दिखा जरा”

छैलामल बहुत कोशिश किये पत्थर को ना उठा पाये हाथ आर पार हो रहे, अब तो छैलामल को काटो तो खून नही

छैलामल सर पकड़कर पटरी पर शौच मुद्रा में बैठकर रोने बैठ गया और बोला

“हाय हम कैसे मर गये अभी तो हमायी उम्र ही का थी हम तो दैनिक क्रिया करन आये थे यहाँ पटरी पे,का पतो थो जा क्रिया के साथ आत्मा भी निकल जायी है।

फिर उसे कल रात का याद आया और बोला

“अरे राम कल ढोलकी और झुमकी(नचनिया) ने हमें भोज पर बुलाये थे वही ससुरे कुछ जहर टाईप दिये होंगे।”

फिर वो उस शहरी लड़की के भूत से बोला

“चलो हमें तो छल से मारे कछु लोग लेकिन तुम काहे अपनो अनमोल जीवन जानबूझकर समाप्त किये,यह तो बहुत ही गलत बात है देखन में तो बहुत पढ़ी लिखी लगे हो लेकिन कर्म तो नौसिखिए बाले काहे कर लये”

फिर वो लड़की बोली

“मैने बहुत जान से किसी पर भरोसा किया था खुद से ज्यादा लेकिन उसने मेरा भरोसा तोड़ दिया भगवान माना था उसको ,लेकिन वो जालिम किसी और के चक्कर में मुझे छोड़कर चला गया।”

इससे आगे वो कुछ बोलती छैलामल बीच में रोकते हुए बोला

“धत तेरे की काहे किसी को इतना सर पे चढाये जिससे खुद की आत्मा दुखे जै तो सरासर पाप करे तुम,और का दुनिया खत्म  हो गयी थी, या लड़का बिरादरी खत्म हो गयी थी, सच्ची भटकियो अब भूत बनके जबतक उम्र ना पूरी हो जाये,हम तो छल से मारे गये तो हम ज्यादा दिन के भूत ना है,कित्ते पशु,पक्षी,कीट पतंगा के जन्म के बाद जै मानव जन्म मिले है और तुम छलांग मार के बह निकली”

फिर वो लड़की बोली

“रहने दो तुम नही समझोगे की प्यार क्या होता? “

अब तो छैलामल आगबबूला हो गया और बोला


“ओ शहरी हंसनी हम से ज्यादा प्यार ना पतो है तुम्हे तुम तो एक काम प्यार करत रही, हम पूरे गाँव में प्रसिद्ध थे।सबको खुश रखते थे,हमें पूरी गाँव की जनता प्यार करती थी और हम पूरे गाँव को।

कोई जब भी परेशान होता तो मलुआ की चौपाल पे आ जातो और हम सब में बैठकर देख दर्द भूल जाता,फिर एक दिन गाँव में नचनिया पार्टी आयी जिसमें एक झुमकी(नचनिया) और ढोलकी(ढोलक बजाने बाला) थे,वो ऐसा राग और तालमेल छेड़ते कि सब गाँव वाले बावरे हो जाते,और खूब रुपया लुटाते।जिससे गाँव बाले बर्बाद होने लगे,हमसे यह व्यथा ना देखी जाती हम सबसे मना करते कि मनोरंजन ठीक है पर पैसा लुटाकर बीवी बच्चा को और खुद को बर्बाद ना करो, मैने चौपाल लगा लगाकर गांव वालन को खूब समझाओ, लोग समझने लगे, अब ढोलकी और झुमकी के तन बदन में आग लग गयी कि कैसे उनके योजना पे पानी फिर गया।हम चतुर नही थे सीधे थे तो कल दोनों ने हमें भोज पर बुलाया और खाने में जहर मिला दिया।हमें तो मालूम भी ना पड़ी कब प्राण कबूतर बन गये हमाये।लेकिन हमें फिर भी उनसे कोई शिकायत ना है क्योंकि भगवान के ऊपर पूरा भरोसा है जो करेंगे वो सही करेंगे”

इतना उदार व्यक्ति को देखकर वो लड़की अचंभित हो गयी। और बोली

“आप सच कह रहे,अब मुझे अपने इस काम पर बहुत पछतावा हो रहा है,प्यार का मतलब आपने सिखाया एक नही अनेक होता है। सबके लिये जीना और ईश्वर से प्रेम ही सच्चा प्रेम है,लेकिन अब मैं कब तक भूत बनी रहूंगी,मैं बहुत शर्मिंदा हूं।”

इतना कहकर वो रोने लगी फिर छैलामल बोला

“अरे काहे चिंता करे हो हम कछु करेगें देखो हमारी तेरहवीं हुए तक तो हम साथ रहेंगे तुम्हारे करते हैं कछु उपाय”

इधर गाँव वाले छैलामल की शरीर की दाह संस्कार ओर चुके थे पूरा गाँव शोक संतृप्त था,तेरहवीं का दिन नजदीक आ गया था, देवदूत विमान लेकर आ चुके थे, छैलामल से बैठने का आग्रह किया,फिर छैलामल बोला

“हम ना जा रहे हमें और भूत बनो रहने दो”

देवदूत अचंभित हो गये ऐसा पहली बार देखा था उन्होने कि देवदूतों को कोई मना करे,जबकि वो विमान लेकर आये अगर यमदूत यमपाश लेकर आते तो बात अलग थी।

अब देवदूत आग्रह करके बोले

“क्यों भैया हमारी नौकरी खाने पे तुले हो, बहुत दिनों से वैसे भी स्वर्ग में कोई दिव्य आत्मा नही आयी सब पापी ससुरे नर्क ही भोग रहे लेकिन आज यह पावन दिन आया और तुम नखरे दिखा रहे।चलो “

फिर छैलामल बोले एक शर्त पर चलेंगे

“जै छोरी को भी ले चलो हमाये संग”

देवदूत अवाक रह गये और बोले

“दिमाग खराब है क्या ये पापिन तो नर्क की भी भागी ना है।भगवान के दिये अनमोल जीवन को खुद नष्ट करके बैठी।

ना बाबा ना हम से ना हो पायेगा।”

फिर छैलामल बोला

“देखो अपने बड़े को भेजो तुम अगर ना हो पायेगा तो।अब ये पापिन ना है इसे पछतावा हो गया है और हमारे बड़े कहते जो प्रायश्चित करले तो मन निर्मल हो जावे “

देवदूत उसकी बातों पर रीझ गये उन्होनें अंतर्मन काल कनेक्ट करी धर्मराज जी के साथ और सारा माजरा बताया,धर्मराज जी ने आज्ञा दे दी की दोनों को साथ ले आओ ,दोनों विमान में बैठ गये फिर छैलामल बोला


“ऐ ड्रायवर साहब नेक मेरे गाम के ऊपर से ले चलियों बहुत प्रेम है मोय गाम से”

इधर तेरहवीं का आयोजन पूरा हो चुका था,गांव वाले इकठ्ठा थे सरपंच जी बोले

“छैलामल ने गाँव को इक ऊर्जा दी थी वो जान था यहाँ की और  हम लोग भटक गये थे, आज से हम लोग कसम खात है कोई नचनिया डाँस नही होगा इस गांव में। जो छैलामल चाहता था। कोई रूपये नही लुटायेगा। “

नचनिया और ढोलकी सुन रहे थे,वो दबे पाँव गाँव छोड़कर भाग निकले।

यह देखकर ऊपर से छैलामल बोला

“देखा ईश्वर से प्रेम और भरोसे का कमालमेरे  ना रहते हुए भी न्याय मिल गया।

चलो ड्रायवर भैया स्पीड बड़ा दो अब प्रभु के दर्शन करने जल्दी “

और गीत गुनगुनाते गया

“उड़ जायेगा हंस अकेला जग दर्शन का मेला “

विमान उड़ चला।

-अनुज सारस्वत की कलम से

(स्वरचित एवं मौलिक)

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