सतरंगी जीवन – शिव कुमारी शुक्ला  : Moral stories in hindi

अवनी अपनी पी.जी. की परीक्षा देकर आज घर लौटी थी। वह अपने मम्मी-पापा एवं बुआ से मिलकर बहुत खुश थी। आज मम्मी ने उसके मन पसंद नाश्ता – खाना सब बनाया था। डाइनिंग टेबल पर बैठीं अवनी को मम्मी गर्म-गर्म पकौड़े  खिला रहीं थीं और बातें करती जा रही थीं ।

तभी उसका उसका ध्यान बुआ की ओर गया ,वह उदास सी चुपचाप रसोई में पकोडे तल  रहीं  थीं। जबअवनी ने मम्मी से बुआ की उदासी  कारण पूछा तो वे बोलीं अरे बेटा पडोस में  शुक्ला जी के यहाँ बेटे की शादी थी।  मैं सुजाता को भी अपने साथ ले गई वहाँ औरतों ने इन्हें देख उल्टी-सीधी बातें करनी शुरू कर दी । शुभ काम में आप एक विधवा को क्यों ले आई। बस सुजाता वहाँ से उठकर घर चली  आई और तब से ही  ऐसी ही गुमसुम खोई सी रहती हैं।

मम्मी आपने , न  बुआ से उदासी का कारण पूछा, न  ही उनके मन का दुख जानना चाहा।

अब बेटा मैं किसी की किस्मत तो नहीं बदल सकती जो उनके भाग्य में लिखा था वह घट गया, इसमें मेरा क्या कसूर है।

मम्मी मेरे साथ ऐसा कुछ हो जाए तब भी 

आप ऐसी ही तटस्थ रहेंगी।

चुप हो जा कैसी बातें करती है।

मेरे तो बात करने से ही आप दुखी हो गई 

तो क्या बुआ का दुख कम है जो आप समझना ही नहीं चाहतीं।

तो तू  ही बता मैं क्या करूं।

मम्मी कभी मां बनकर बुआ के दिल में क्या है जानने की कोशिश करो।

तभी उसने  देखा बुआ अपनी प्लेट लेकर अपने कमरे  में  चली गईं ।उसने भी अपनी प्लेट उठाई और बुआ के पीछे-पीछे उनके कमरे में पहुँच गई ।

बुआ आप इधर अकेले क्यों आ गईं मैं इतने दिनों बाद आई हूं  मेरे साथ नहीं   खाएगी? 

हां बेटा क्यों नहीं खाऊंगी।

 दोनों में बहुत  प्यार  था । बुआ – भतीजी कम बहनें  ज्यादा लगतीं थीं।  उसने प्यार से  बुआ  का मन बहलाने की कोशिश की। उसे पता है कि मम्मी का व्यवहार उनके प्रति शुरू से ही कुछ कठोर रहा है। जितना प्यार वे मुझे और भाई नमित को करती थीं उसकी तुलना में बुआ से सिर्फ ऊपरी तौर पर बात करतीं। उनके सुख दुःख से उन्हें कोई मतलब नहीं था। पहले तो दादा-दादी थे सो उन्हें उनका सम्बल था किन्तु उनके जाने  के बाद  बुआ विल्कुल एकाकी हो गईं। केवल  मैं  ही थी जो बुआ से हर समय चिपकी रहती, बातें करती, उनकी काम में मदद करती जो ये सब मेरी मम्मी को नहीं सुहाता। उस वक्त में छोटी थी. किन्तु अब  बड़ी हो गई हूँ। कुछ दिनों में मेरी नौकरी लग जाएगी। अब बुआ के बेरंग चेहरे पर मुझे रंग जो लाना था वह मैं लाकर रहूँगी। मम्मी पापा ने कभी उनकी इच्छा जनने की नहीं सोची। कभी उनका  

दुबारा घर बसाने का नहीं सोचा। अभी  उम्र ही क्या थी। में छब्बीस साल की हो गई। मेरी शादी की अभी कोई चर्चा नहींं है जबकि बुआ इस उम्र में विधवा होकर बापस अपने घर  लौट आईं थीं।

बुआ की शादी मात्र बीस बर्ष की  उम्र में कर  दी गई ।चार साल का वैवाहिक जीवन  भी कोई सुखद नहीं रहा। जिसके साथ शादी की उस लड़के को सालों से शराब पीने की आदत थी और यह बात उन लोगों ने छिपाई। उम्र में भी बह बुआ से दस साल बड़ा था। चार सालों तक पति के हाथों पिटते , गालीयां खाते निकल गये  सास भी परेशान करने में पीछे नहीं रही। अत्यधिक पीने से लीवर खराब होने के कारण मृत्यु हो गई। परिवार वालों ने मायके भेज दिया। तब से ही वे अपना बेरंग जीवन वैध्यव का ठप्पा लगाए काट रहीं हैं।

अब वह  आ गई है और अपनी बुआ के लिए  जरूर कुछ करेगी। 

अब घर में उसकी शादी की चर्चा  होने लगी मम्मी ने उसे कुछ लड़कों के फोटो  दिखाए जो उसने  पसंद नहीं किए।

एक दिन उसने मम्मी से कहा  -मम्मी क्यों न  हम बुआ की शादी दुबारा कर दें अभी उनकी उम्र ही क्या  है इतनी लम्बी जिन्दगी  वे  कैसे काटेंगी।

क्या उल्टी-सीधी बातें करती रहती है। अब उनकी शादी  होना संभव है क्या।

क्यों नही मम्मी सब संभव है। अगर कोशिश की जाए ।

कौन करेगा एक विधवा से शादी आजकल कुंवारी लडकियों को तो ढंग के लड़के मिलते  नहीं और  तू  विधवा की  शादी की बात कर रही है।

मम्मी यदि आज बुआ की जगह फूफा होते  तो क्या वे बुआ के  जाने के बाद शादी नहीं करते।

पुरुषों की बात ओर है कह मम्मी वहां से 

उठ कर किचन में चली गईं। किन्तु  इस बार वह निश्चय करके आई थी कि बुआ की शादी करवाऊँगी सो जब उसके ऊपर शादी करने का  ज्यादा  दबाव डाला गया तो उसने साफ कह दिया में शादी तभी करूंगी  जब मेरे साथ बुआ कि भी शादी

करोगे।

  पापा को जब यह बात पता लगी तो उन्होंने भी  उसे ही समझाया कि बेटी अब उसकी शादी हम कहां कर सकते हैं। कौन अपनायेगा उसे तू अपनी जिद छोड़ शादी के लिए हाँ कर दे। 

क्यों पापा बुआ तो आपकी सगी छोटी बहन हैं क्या आपका कुछ फर्ज नहीं बनता बुआ के लिए।

फर्ज तो निभा रहा हूं। रख रहा हूं न अपने साथ उसे खाना ,कपडा, जरूरत की सब चीजें मुहैया करा रहा हूँ न और क्या करुं।

 पापा केवल खाना कपड़ा  ही जीवन की आवश्यकता हैं। कभी आपने  अपनी बहन की इच्छा जानने की  कोशिश की कि वह क्या चाहती हैं।

 बेटा ये तेरी बड़ी-बड़ी बातें मेरी समझ से बाहर हैं।तू अपनी जिद छोड़ दें।

एक दिन जब मम्मी और दो-चार फोटो दिखाने लाईं  तो उसने साफ  बता दिया कि लड़का ढूंढने में  आप परेशान न हों में अपने साथ पढने वाले  डा वैभव से प्यार करती हूं और उनीसे शादी करूंगी ।यदि आपको लड़का ढूंढ़ना है तो बुआ के लिए प्रयास करो।

यह सुनते ही मम्मी पर जैसे गाज गिरी। कौन है ,किस जाति का है। ऐसे कैसे तुने इतना बड़ा फैसला ले लिया। हमसे पूछने  की जरूरत  भी नहीं समझी । मम्मी में डा वैभव को अच्छे से जानती हूं ।वै मेरे से एक साल आगे थे। सुदर्शन, सुलझे विचारों के हैं, डाक्टर हैं ,और अपनी हो जाति के हैं। अब कुछ और जानना चाहती हो। पर यह निश्चित है कि मेरी शादी बुआ के साथ एक ही मण्डप में होगी। 

तभी  वैभव का फोन आया अवनी तुमने अपने घर पर बताया या नहीं अब तो इन्तजार नहीं होता जल्दी करो। मैंने अपने घर पर सब बता दिया है। मेरे मम्मी-पापा को तो कोई परेशानी नहींं है वे मेरे निर्णय से खुश हैं। 

अवनी – वैभव मैंने मम्मी को बता दिया है अब वे पापा से बात कर लेंगी और शायद मान भी जाएंगे। किन्तु मैं एक बार अभी तुमसे मिलना चाहती हूं क्या तुम आ सकते हो। काफी शॉप में कहीं भी मिल लेंगे।

ठीक है मैं कल शाम तक पहुँच जाऊंगा। वैभव से मिलकर अवनी ने अपनी बुआ की समस्या बताई और अपना निर्णय भी। क्या तुम मेरी कुछ मदद कर सकते है।

वैभव अवनी में तो इन बातों को अभी समझता नहीं   कहां किससे बात करूं । हां  मेरी मम्मी जरुर सहायता कर सकती हैं। तुम सब कुछ मम्मी को फोन पर बता दो। अवनी के बात करने पर मम्मी  ने अपने दूर के रिश्तेदार भतीजे का नाम लिया कि वे लडकी हूँढ रहे हैं।लडका सरकारी स्कूल में टीचर है दो साल पहले कोरोना से उसकी  पत्नी की मृत्यु हो गई थी ।लडका अच्छा है तुम कहो तो में बात करुं ।

मम्मी  जी शुभ कार्य में देरी क्यों। आप इतने विश्वास से कह रहीं हैं फिर भी में चाहूंगी की  वे दोनों एक बार आपस में मिल लें।

ठीक है अवनी में जल्दी ही प्रयास करती है। और पन्द्रह दिनों में ही बुआ का मिलना हो रिश्ता पक्का हो गया।

पापा अब आप दोनों शादी की तारीख निकलवायें और एक ही  मण्डप पर दोनों की शादी करवा  दें। शादी अच्छे से  सम्पन्न   हो गई। बुआऔर अवनी अपने -अपने  घर चलीं गईं। 

राखी आने वाली थी सो मम्मी ने अवनी की फोन किया अवनी बेटा तुम राखी पर वैभवजी के साथ आजाओ शादी के बाद यह तुम्हारी पहली राखी है।

 मम्मी  आपने बुआ को फोन  किया क्या उनकी भी   तो पहली राखी  है।

मम्मी की चुप्पी से वह समझ गई। मम्मी में नहीं आ रही। यदि आप चाहतीं हैं में आऊँ तो पहले बुआ को फोन करो। वो भी तो पापा को अपने भाई को राखी बांधना चाहती होंगी। उनकी भी तो  मायके आने की इच्छा होगी। मम्मी आप बुआ प्रति इतनी निर्मोही कैसे हो सकतीं हैं। वे भी तो इस घर की बेटी हैं ।क्या आपने कभी सोचा है कि आपके बाद यदि नमित और मेरी होने वाली भाभी  मेरे साथ  ऐसा ही व्यवहार करेंगे तो मेरा भी तो मायका  छूट जाएगा। कहते-कहते उसका गला भर आया । रूक कर बोली मैं नहीं आऊंगी बुआ के पास चली जाऊंगी।

नहीं अवनी बेटा ऐसा मत करना। में अभी फोन कर तेरी बुआ को भी आने के लिए बोल देती हूं। मैं किस्मत वाली हूं  जो मुझे तेरी जैसी बेटी मिली। तूने मुझे मां  की तरह समझा कर मेरी आँखे खोल दी। अब से जो मेरा तेरी बुआ के साथ बेरंग सा रिश्ता था उसमें रंग भरने  का समय आ गया। अब से मेरे  एक नहीं दो बेटियों हैं समझी।

वाह मम्मी  बुआ को दिल  से अपना कर मेरा मन  खुश कर दिया आपने । अब मैं राखी पर दौडी चली आऊँगी मेरी बुआ भी जो  आ रहीं हैं। पर मम्मी एक बात और है उसे भी अच्छे से समझ लें, देने लेने में ,आदर सत्कार में दोनों दमादों के बीच कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए ।पद देखकर सत्कार न करें मेरी प्यारी मम्मी। अच्छा मेरी मां मम्मी बोलीं और दोनों मम्मी-बेटी जोर से खिलखिलाकर हँस पडी। अवनी ने अपनी मम्मी और बुआ के बीच के बेरंग रिश्ते में तो रंग भर ही दिया साथ ही बुआ का बेरंग जीवन भी सतरंगी कर दिया।

शिव कुमारी शुक्ला 

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित

वाक्य कहानी प्रतियोगिता 

बेरंग से रिश्तों में रंग भरने का समय आ गया।

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