सही दिशा…रश्मि झा मिश्रा: Moral stories in hindi

दरवाजे पर आह.. की आवाज के साथ गिरने की हड़बड़ाहट सुनकर दृष्टि ने दरवाजा खोला… तो सामने एक प्यारी सी लड़की साड़ी में लिपटी पैर पकड़े बैठी कराह रही थी…” क्या हुआ…!” दृष्टि बोल पड़ी… उसने पैर सीधा करने की कोशिश करते हुए कहा…” सीढ़ियां उतरने में अचानक पैर मुड़ गया… बहुत दर्द हो रहा है…!” दृष्टि ने उसे सहारा दिया और बोली…” मोच तो नहीं आ गई… साड़ी में चलने की आदत नहीं होगी ना… !”

वह थोड़ा शरमाते हुए बोली…” हां दीदी… अभी कुछ ही दिन हुए हैं शादी को… ऊपर वाला घर मेरा है… आनंद नीचे उतर गए… इसलिए जल्दी में उतरने के चक्कर में साड़ी नहीं संभाल पाई…!”

 नीचे से तभी हार्न की तेज आवाज आई… वह थोड़ा कराहते हुए बोली… ” आनंद ही होंगे… !”

वह किसी तरह लंगड़ाते उतरने लगी तो दृष्टि ने कहा…” कॉल कर लो ना… ऊपर बुला लो उसे… या अभी मत जाओ…!”

” नहीं दीदी… बहुत गुस्से वाले हैं… ससुराल जाना है ना… मना कर दिया तो बुरा मान जाएंगे…!”

 दृष्टि को उसके लिए बड़ा अपनापन सा लगा इसलिए उसने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया और उसे सहारा देते हुए बोली…” चलो मैं नीचे छोड़ आती हूं…!” तब तक कई बार गाड़ी का हॉर्न बज चुका था नीचे उतरते हुए उसने अपना नाम दिशा बताया… साथ ही यह भी की कल ही ये लोग इस घर में शिफ्ट हुए हैं… बहुत बड़ा ससुराल है… ज्यादा दूर नहीं है… यही सब थोड़ी बातें करते हुए वे लोग गाड़ी के पास आ गए…

 दिशा को किसी का हाथ पकड़ आता देख भी आनंद गाड़ी से नहीं निकला… ना कोई नमस्ते… ना हाल-चाल… ना परिचय… सीधे दिशा को घूरता रहा दिशा ने कार का दरवाजा खोला और उसके बैठते-बैठते गाड़ी स्टार्ट हो गई…बस उसने इतना ही सुना… गाड़ी चलाते चलाते आनंद बोला…” शुरू हो गया नाटक तुम्हारा…!”

 दृष्टि मन ही मन सोचती रही… इतनी प्यारी लड़की को इतना अड़ियल पति कैसे मिल गया…! दृष्टि के मन में पहले ही मुलाकात में दिशा अपने भोलेपन से पहचान बना चुकी थी… वह घर के कामों में उलझी कानों को नीचे गाड़ी की आहट पर लगाए बैठी थी…!

 दृष्टि का अपना भरा पूरा घर था… दो बच्चे पति सास ससुर सब की सेवा टहल करती दृष्टि को अनमना सा देख सासू मां ममता जी ने पूछा…” क्या बेटा आज ऐसी अनमनी क्यों हो…!”

 दृष्टि ने सुबह की सब बातें बताई तो ममता जी बोल पड़ीं…” देखो दृष्टि सभी लोग तेरे पति की तरह नहीं होते… तू दूर ही रहना ऐसे लोगों से…!”

 पर दृष्टि का मन पता नहीं क्यों भाव से भरे शब्द दीदी से खींचा चला गया था… रात के 10:00 बजे के लगभग उसी गाड़ी की आवाज पहचान कर उसने खिड़की में से आंख लगाया तो देखा सचमुच वही लोग थे… दिशा धीरे-धीरे कदम बढ़ाती…एक एक कदम रखती आगे बढ़ रही थी… आनंद बेपरवाह अपनी धुन में सीढ़ियां चढ़ते ऊपर चला गया… वह धीरे-धीरे सीढी की मुंडेर पकड़ पकड़ ऊपर चढ़ रही थी… जब दृष्टि के दरवाजे के पास पहुंची तो उसने धीरे से दरवाजा खोल कर पूछा…” क्या हुआ मोच ही आ गई क्या…अभी तक दर्द ठीक नहीं हुआ…!”

 दिशा ने दर्द से ऊपर देखकर कहा…” हां शायद…!”

 ” दिखाई नहीं कहीं…!”

” कहां हो पाया… घर में पूजा थी… फिर 3 घंटे का सफर आते जाते निकल गए…!”

 दृष्टि से रहा नहीं गया उसने फिर उसे सहारा दे दिया…” चलो मैं पहुंचा देती हूं…!”

” नहीं-नहीं… बहुत रात हो गई है आप आराम करिए मैं चली जाऊंगी इसी तरह…!”

 पर दृष्टि ने जबरदस्ती पता नहीं किस अधिकार से उसे पकड़ कर दो मंजिल चढ कर ऊपर तक पहुंचा दिया… उसके घर का दरवाजा खुला था… अंदर से शराब की भयानक गंध आ रही थी… वहां पहुंचते ही दिशा ने दृष्टि का हाथ छुड़ाकर कहा…” जाइए आप जाइए…!”और झटके से अंदर जाकर उसने दरवाजा बंद कर लिया…!

 दृष्टि बड़े असमंजस में अपने घर वापस आ गई… अब तो आनंद से उसे चिढ़ सी मच गई…” कैसा इंसान है… इतनी प्यारी नई नवेली पत्नी को ऐसे दर्द में छोड़ शराब की बोतल खोल कर बैठ गया…छिः…!

 दूसरे दिन दृष्टि इसी इंतजार में थी कि आनंद जाए तो वह दिशा का हाल-चाल पूछ आए… पर ऐसा नहीं हुआ… तीन दिन बीत गए पर आनंद कहीं नहीं गया… और ना ही ऊपर से कोई आवाज ही आती थी… दृष्टि का मन बड़ा बेचैन था अपने घर के काम धंधे निपटाते उसका मन दिशा में लगा हुआ था…वह सोच रही थी कि अबकी बार मिलते ही उसका नंबर ले लूंगी…!

 ममता जी ने इस बीच कई बार समझाया.…” दूसरों के बारे में इतना क्या सोचना… आजकल किसी से मतलब रखने का जमाना नहीं रहा… तू भी अपना मन शांत रख…!” पर दृष्टि अपने मन को नहीं समझा पाई यह सब…!

 तीन दिनों बाद आनंद नीचे उतरा… गाड़ी की आवाज और आहट पाते ही दृष्टि गैस आफ कर ऊपर भागी… बेल बजाया तो थोड़ी देर में लंगड़ाते हुए दिशा ने आकर दरवाजा खोला… बड़ी बुरी हालत में थी लड़की… देखते ही दृष्टि का हाथ पकड़ कर बोली… “जाओ दीदी… ज्यादा दूर नहीं गए… बस आते ही होंगे…!”

” पर क्यों दिशा…!’

” आप नहीं समझोगी… जाओ आप…!”

” आजकल की दुनिया में भी कोई इतना बर्दाश्त करता है क्या… क्या हालत बनी है तुम्हारी… कुछ तो बताओ… मैं चली जाऊंगी… गाड़ी की आवाज आते ही निकल जाऊंगी…!”

 दिशा उसके गले लग कर फूट पड़ी…” दीदी…!” थोड़ी देर रो लेने के बाद दिशा बोली…” मेरे मां पिताजी को नहीं पता था यह ऐसे शराबी… बेरोजगार… पिता के पैसों पर ऐश करने वाले निर्दय इंसान हैं… पापा ने तो देखा बड़ा घर… खानदान… बड़ी हवेली… लड़का बाहर रहता है… चलो तीन बेटियों में बड़ी का कल्याण हो जाएगा तो पीछे सब बन जाएंगे… पर यह आदमी नहीं जानवर है… पूरी रात पूरे दिन शराब पीता है… और……!” बोलकर वह फिर फफक पड़ी…!

 दृष्टि तो जैसे अपनी जगह जम गई थी… उसे लग ही रहा था कुछ ऐसा ही… उसने दिशा का पैर देखा पूरा फुला हुआ था… “कुछ दवा नहीं की हो…!”

 “नहीं कहीं गए ही नहीं… शायद अभी ले आएं…!”

” अरे दिशा तो मां पापा को बोलो ना… कैसे झेलाेगी यह सब…!”

“देखती हूं दीदी… मां पापा बहुत खुश हैं… मैं उनका दिल नहीं तोड़ पाऊंगी…!” तभी नीचे गाड़ी की आवाज आई तो दिशा हड़बड़ा उठी…” जाइए आप…!”

” जाती हूं… अपना नंबर तो दे…!”

” फोन नहीं मेरे पास… जाइए…!” बोलकर दिशा ने दरवाजा बंद कर लिया…!

 दृष्टि भारी कदमों से नीचे आ गई… उसकी मन उसे धिक्कार रहा था… उसकी आंखों के सामने उसकी ही छत पर किसी लड़की का शोषण हो रहा था और वह कुछ नहीं कर पा रही थी… सारी बातें सुनकर उसके पति सास ससुर सभी बहुत दुखी हुए… पर कोई क्या कर सकता था… फिर कई दिनों तक उनके घर से कोई आहट नहीं आई… कुछ हंगामा हो तो सोसाइटी वालों को भी बोला जाए… पर ऐसी शांति से भला किसी को क्या आपत्ति थी…!

 शांति से एक घर के अंदर क्या चल रहा है इससे किसी को क्या फर्क पड़ता है… वैसे भी आजकल की नई नश्ल केवल अपने आप से ही मतलब रखती है… कई दिनों के बाद आनंद नीचे गया तो इस बार दिशा खुद नीचे आई.… दृष्टि के पास… पूरा सूख कर लकड़ी लग रही थी… कितना प्यारा चेहरा था महीने भर पहले… जब पहली बार दृष्टि ने उसे देखा था… मिलते ही दृष्टि ने उसे घर के अंदर बिठाया और उसके पैरों को देखने लगी…” ठीक है दीदी… अब दर्द नहीं… उन्होंने ही पट्टी लगाई…!”

” सच…!”

” हां दीदी…उसी दिन हल्दी वाली पट्टी… दवाइयां सब लेकर आए थे… मुझे कुछ समझ में नहीं आता क्या करूं… कभी-कभी इतना प्यार करते हैं… इतना अपनापन दिखाते हैं… और कभी-कभी…!” बोल कर वह चुप हो गई…!

 दृष्टि ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा…” क्यों बर्दाश्त कर रही है इतना…!”

“आनंद के घरवाले कहते हैं कि धीरे-धीरे ठीक हो जाएंगे… दिल के बहुत अच्छे हैं… सब कहते हैं इंतजार करो… मुझे कुछ समझ में नहीं आता क्या करूं… सोचा था खूब पढ़ूंगी… कुछ करके रहूंगी… पर पापा ने कहा कि अच्छा घर परिवार है… पहले घर बसा ले… फिर करना जो करना है… यहां यह इतने बड़े हैं मुझसे कि ऐसे ही मेरी आवाज नहीं निकलती… सब कुछ उनके पिताजी का दिया हुआ है… यह घर भी उन्होंने ही खरीद कर दे दिया है… कि जाओ आराम से रहो शहर में… कभी-कभी वही लोग कहते हैं तो कहीं इंटरव्यू देने जाते हैं… आज भी गए हैं… नहीं तो दिन भर नशे में धुत्त पड़े रहते हैं…!

“ऐसा कब तक चलेगा दिशा… घर में बताओ… निकलो यहां से…!”

” नहीं दीदी… शायद ठीक हो जाएं… हो सकता है जाॅब मिल जाए तो सुधर जाएं…!”

” तुम भी तो वही सोच रही हो जो उसके परिवार वाले सोचते रहे होंगे की शादी हो जाएगी तो सुधर जाएगा… पर यह बताओ जो इंसान अब तक अपने माता-पिता की बात मानकर नहीं सुधर पाया… वह अब कैसे सुधरेगा… यह तो बिल्कुल एक परसेंट ही चांस है ना…!”

” कुछ भी हो दीदी… पर वह एक परसेंट मैं जरूर ट्राई करूंगी…!”

 दिशा पूरे साल भर ट्राई करती रही पर आनंद की लाइफ स्टाइल में कोई सुधार नहीं हुआ… घर से प्रचुर बैंक बैलेंस उपलब्ध था… दिशा बस तभी घर से निकलती थी जब ससुराल जाना होता… पर अब उसके घर वालों को असलियत पता चल चुकी थी… वह भी उस पर दबाव बना रहे थे उससे पीछा छुड़ाने का… पर दिशा भी अपना सौ प्रतिशत कोशिश कर रही थी… आनंद को सही रास्ते पर लाने का… 2 साल जाते-जाते वह प्रेग्नेंट हो चुकी थी… पर उसके पति के रवैए में कोई सुधार नहीं हुआ…!

 एक दिन दिशा आनंद को छोड़कर वापस अपने घर चली गई… जाते-जाते दृष्टि से मिलकर उसके गले लगी और कहा…” दीदी इस पूरे 2 साल आपने मुझे बहुत ताकत दिया… अपनापन दिया… शायद आप सही थीं मैं उसे नहीं बदल पाई… अब मुझे अपने होने वाले बच्चे को सही माहौल देना है… इसलिए अब मैं जा रही हूं… मैंने उससे कह दिया है… अगर साल भर में अपनी जिंदगी सुधार लेगा… तो मैं वापस आ जाऊंगी… वरना अब नहीं…!” 

दिशा चली गई… उसके जाने के कुछ दिन बाद आनंद भी वह घर छोड़कर चला गया…!

 दृष्टि को अब उसके बारे में कोई बात पता नहीं चल रही थी… कई साल बीत गए दिशा अपना नंबर देकर भी नहीं गई थी… दृष्टि अक्सर उसके बारे में सोचा करती थी… कि क्या हुआ दिशा की जिंदगी का… एक दिन दिशा का फोन आया…’ दीदी मैं दिशा… मैंने बैंक में जॉब कर लिया है… बहनों की शादी हो गई… मां पापा के साथ रहती हूं…!”

” और आनंद…!”

” दीदी उसने दूसरी शादी कर ली… उसे नहीं सुधरना था… घर की फंडिंग बंद नहीं हुई… पैसे मिलते रहे तो कैसे सुधरेगा… पर दीदी अब मैं बहुत खुश हूं… एक प्यारी सी बेटी है जो नाना नानी के साथ बहुत आराम से रह रही है… आपकी अक्सर याद आती है… मेरे कठिन समय में आपका सहयोग हमेशा मुझे सहारा देता रहा…!”

” बहुत खुशी हुई दिशा… तुमसे बात करके… भगवान करे तुम हमेशा खुश रहो…आखिर तुमने अपनी जिंदगी को सही दिशा दे ही दी…!”

स्वलिखित मौलिक अप्रकाशित

रश्मि झा मिश्रा

6th बेटियां जन्मोत्सव कहानी…६

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