खून – प्राची अग्रवाल  : Moral stories in hindi

कामवाली सुगना की लड़की का ब्याह था। बहुत खुश थी सुगना। बड़े चाव से तैयारियांँ कर रही थी। जितना उससे बना, अपनी लड़की के लिए दहेज का सामान भी इकट्ठा किया। इज्जत से लड़की विदा हो जाएगी यह सोचकर मन ही मन हर्षित थी। चलो मेरे भाग्य में तो सुख नहीं है। क्योंकि सुगना अपने घर परिवार को छोड़ अंधे प्रेम के पीछे भाग आई थी। वाह उसे मिली, जिल्लत की जिंदगी। लड़कियाँ भ्रम जाल में बहुत जल्दी फंस जाती है। पर जब हकीकत सामने आती है तो पीछे लौटने का रास्ता बंद हो चुका होता है। 

बेटी होने के बाद सुगना अपना दुख दर्द सब भूल उसी में लग गई। उसे देखकर उसकी खुशी का पारावार नहीं रहता। इसलिए सुगना ने अपनी बेटी का नाम ही खुशी रखा। सुगना ने अपनी बेटी को सरकारी स्कूल में पढ़ाया लिखाया। काबिल भी करा। आज उसी की बेटी खुशी की शादी हो रही है।

उसने साहब जी के घर पर सबको आने का न्योता दिया। बड़ी मालकिन ने मदद के नाम पर कुछ नगदी और कुछ पुराने संदूक में रखे हुए आउट फैशन साड़ी, कपड़े, जेंट्स जोड़े और कुछ बर्तन सुगना को दे दिए। अहसान जताया अलग। सुगना विवाह में बाट देखती रही कि साहब जी के यहां से कोई आएगा। लेकिन शादी में मालकिन के यहां से कोई नहीं गया क्योंकि बड़ी मालकिन की सोच थी कि छोटे लोगों के कौन खाने जाए।

ब्याह का काम सही से निपट गया। ब्याह बाद सुगना चार लड्डू बड़ी खुशी के साथ लेकर आई। सबका मुंह मीठा कराने को। सुगना बड़े चाव से सबको शादी की बातें बता रही थी। साथ ही साथ उसने शिकायत भी की कि शादी में क्यों नहीं आए?

बड़ी मालकिन शांति जी जवाब देते हुए बोली,”ऐसे ना जाया जाता है सभी जगह। अपनी इज्जत भी तो देखनी होती है। अगर हम ऐसे नौकर चाकरों के ब्याह में जाते रहे तो क्या इज्जत रह जाएगी हमारी?

सुगना मन मसोस के रह गई है।

छोटी मालकिन शोभिता ने लड्डू उठाकर रख दिए। शोभिता का बेटा माधव लड्डू खाने की जिद करने लगा तो दादी उसे चिल्लाते हुए बोली,”यह खाने के लड्डू नहीं है। सब घर का नहीं खाते। कुछ उच्च नीच भी तो देखनी पड़ती है।”

माधव खिसियाकर अपने कमरे में चला गया।

लड्डू एक हफ्ते तक लुढ़कते रहे पर किसी ने नहीं खाए। सुगना को ही वह लड्डू गैया को डालने पड़े। उसने सब सहन कर लिया। आखिर इस घर में उसकी #अहमियत एक नौकरानी की ही तो थी। आखिरकार उसे तो नौकरी करनी थी। यह अलग बात थी कि इतने दिन काम करते-करते उसका इस परिवार से नाता सा जुड़ गया था।

दो-तीन महीने पश्चात डेंगू का प्रकोप फैल गया। सुगना जहां काम करती थी, वहां पर कई लोग इसकी चपेट में आ गए।

छोटे बच्चे माधव की तबीयत ज्यादा बिगड़ रही थी। उसका ब्लड ग्रुप किसी से मैच नहीं कर रहा था। सब जगह पूछताछ कर ली, कोई फायदा ना हुआ। हालात जब ज्यादा खराब हो गई तो घर के सभी नौकर चाकरो के भी ब्लड सैंपल लिए जाने लगे। सुगना का खून माधव से मैच कर गया।

अब बड़ी मालकिन सुगना के आगे अपने पोते को बचाने के लिए खून देने के लिए गिड़गड़ाने लगी। वह सुगना से कहने लगी है तू चाहे कुछ भी ले ले लेकिन अपना आप खून देकर मेरे पोते को बचा ले।

सुगना गहरी सांस लेते हुए बोली,”मांजी खून तो मैं दे ही दूंगी। आखिर नमक खाया है आपका। पर मेरा खून आपके पोते को देने लायक है भी या नहीं। क्योंकि हम तो छोटे लोग हैं। हमारे घर का तो खाने से भी आपको पाप लगता है। फिर खून तो बहुत बड़ी बात है।”

बड़ी मालकिन बहुत ज़लील होते हुए बोली,”तुझे जो सुनाना है सुना लेना। अब तू वक्त मत बर्बाद कर। ऐसा कहकर मालकिन जल्दी से सुगना को खून देने के लिए अंदर खींच कर ले गई।

ऊंच नीचे का यह भेदभाव इंसान ने स्वयं बनाया है। दोगला चरित्र समय आने पर कब परिवर्तित हो जाए कहा नहीं जा सकता।

#प्राची_अग्रवाल 

#खुर्जा_उत्तर प्रदेश

#अहमियत शब्द आधारित बड़ी कहानी

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!