माँ बनूंगी सास नही – वीणा सिंह   : Moral stories in hindi

घर के काम खत्म कर फुरसत से मैगजीन के पन्ने पलट हीं रही थी कि संजय का फोन आया.. संजू मां और बाबूजी दोपहर की ट्रेन से आ रहे हैं मैं ऑफिस से हीं उन्हे लेने चला जाऊंगा.. खाना इकट्ठे खायेंगे…

               छोटे बेटे समर के यहां गए मात्र पंद्रह दिन हीं तो हुए हैं…

                    फ्लैश बैक में चली गई संजू.. शादी के बाद मां और बाबूजी का रौद्र रुप देखा था.. सास बनते हीं मां का दिल सास के दिल में क्यों परिवर्तित हो जाता है. अक्सर सोचती.. दूसरे घर से आई लड़की माता पिता भाई बहन अपने परिवेश को भूलने की कोशिश में पूरी उम्र बिता देती है पर.. कहां अपनाते है उसे दिल से… ससुराल वाले..

                कभी सब्जी में नमक कम तो कभी ज्यादा कभी चाय अच्छी नहीं बनी है तो कभी किचेन कितना फैला के रखा है.. आसूं पलकों पर आते तब तक मां ने कुछ भी नही सिखाया है का ताना..

               बाबूजी को चाय देने में एक मिनट की देर हो जाती तो बहु तुम्हे तुम्हारे मां बाप ने यही संस्कार दिए हैं ससुर घंटों चाय का इंतजार में बैठा रहे आवाज देता रहे और बहु कान में तेल डाले अनसुना करती रहे.. उफ्फ कितनी पीड़ा होती थी… आत्मा छलनी हो जाता था..साड़ी का आंचल सिर से गिरना किसी गुनाह से कम नहीं था..

मां संजय से शिकायत करती ससुर के सामने सिर उघाड़े बेशर्म सी घूमती रहती है, संजय चिढ़ कर मुझसे बोले तेरे सर पर कांटी ठोक देता हूं आंचल नही गिरेगा.. दोनो हाथ से थाली पकड़े खाना देने जाती तो आंचल सिर से गिर  हीं जाता..

            कैसे बताऊं कॉलेज में पढ़ने वाली बेटी चाय और पकौड़े बना के जिस दिन मम्मी पापा को खिला देती दोनो निहाल हो जाते..

पापा कहते देखो सीमा संजना ने कितना टेस्टी चाय नाश्ता बनाया है तुम भी सिख लो.. इसके हाथों में जादू है.. कितना खुश हो जाती थी मैं…

              पापा कभी बेटियों  से पैर नही छुवाते थे ना मम्मी कभी पैर दबवाती थी उल्टे थके होने पर मेरा सर दबा देती तुझे नींद आ जाएगी संजना..           

                    ससुराल में एक दिन भी मां का पैर अगर नही दबा पाती किसी मजबूरीवश तो अगले कई दिनों तक सुनाती रहती..

              अक्सर बाबूजी को खाना देने जाती तो बोलते ये क्या बनाया है जानवरों का खाना.. ले जा जो बोल रहा हूं बना के ला.. चाहे रात के ग्यारह बजे हो या दिन के तीन… फिर से गर्मी जाड़ा की परवाह किए नींद आराम को भूलकर जुट जाना पड़ता था.. कई बार खाना बन जाने के बाद ताश खेलने आए दोस्तों को खाने के लिए बैठा लेते.. और मैं फिर से जुट जाती किचेन में..और संजय भी इंतजार करते रहते … मैं शारीरिक और मानसिक रूप से टूट रही थी बिखर रही थी..

                   संजय भी मां बाबूजी के गलत को  मौन समर्थन करते थे बड़े बेटे होने की मजबूरी या कुछ और… हमारा खुद का रिश्ता भी सफर कर रहा था इस कारण से..

                  जिंदगी के मायने यही रह गए थे सुबह से देर रात तक मां बाबूजी के इशारों पर चकरघिन्नी सा नाचते रहना.. अपना शौक अपनी खुशी सब होम कर दिया था ससुराल के अग्निकुंड में… फिर भी शिकायतों का दौर जारी रहता…

         इसी बीच कोमल और कान्हा का आगमन भी हो गया..

जिम्मेदारियों ने असमय उदासीन चिड़चिड़ा बना दिया.. बिना किसी गलती के भी सुनते सुनते मां बाबूजी के लिए मन में आक्रोश बढ़ रहा था.. अब लगता किस पल फट पडूंगी…

                 और शादी के अठारह साल बाद ये आक्रोश एक दिन फट पड़ा…

                   कोमल और कान्हा का कॉपी चेक कर रही थी.. एक सप्ताह में एक बार समय निकालकर देखती थी.. बच्चों की पढ़ाई पर नजर रखना मुझे बहुत जरूरी लगता था.. कामवाली ने आकर कहा मां को बेसन का हलवा और बाबूजी को प्याज की कचौड़ी खाने की इच्छा है जल्दी बना दीजिए.. साथ में धनिए पुदीने की चटनी भी.. जरा अच्छे से बनाना… थोड़ी देर चुप रही क्या करूं.. तब तक मां दरवाजे पर आकर जोर से बोली शीला तुमसे कुछ बोल के गई है एक घंटा हो गया बच्चों के साथ मतरगस्ती कर रही है बड़ी आई मास्टरनी.. और फिर इतने दिनों का दबा आक्रोश निकल पड़ा..

जितना याद था सब सुना दिया … अपने #दायित्व # को मैने पूरी ईमानदारी से निंभा रही हूं…अपने अस्तित्व को दांव पर लगा दिया मैने…और भी बहुत कुछ.  आंसुओं से गला रूंध गया वरना और भी न जाने क्या क्या बोलती…

              पूरा महाभारत हुआ संजय ने बोलना चाहा मुझे पर मेरा रुख देख घर से बाहर निकल गए..

     दूसरे दिन छोटे बेटे समर के पास चले गए..

           ऐसे हीं समय गुजरता रहा कभी गांव में कभी छोटे बेटे के पास पूरे पांच साल तक भटकते रहे मां बाबूजी.…मैने स्पष्ट कर दिया था उनके शर्तों पर मुझे नही जीना.. उन लोगों ने भी जीते जी मेरी चौखट पर पैर ना रखने की सौगंध खा ली थी..

और फिर पिछले साल बाबूजी को दिल का दौरा पड़ा… समर की पत्नी को दूसरा बच्चा होने वाला था इसलिए उसने इंकार कर दिया अपने पास रखने से.. मजबूरी में जीते जी उन्हें हॉस्पिटल से मेरे पास हीं आना पड़ा.. मां को गठिया और पार्किंसन दोनो हो गया है..

                        मेरे बच्चे बड़े और समझदार हो गए हैं.. मैं उनकी आदर्श हूं.. संजय भी अब पहले जैसा कड़क मिजाज वाले नही रहे…

            समर के बच्चे को देखने गए थे मां बाबूजी.. इतनी जल्दी वापसी..

समर बहुत समझदार था मेरी स्थिति देखा था इसलिए जब भी मां बाबूजी जाते पत्नी को मायके भेज देता.

मां बाबूजी ऊब के वापस आ जाते..

            आज मैं संजना इस मुकाम पर हूं कि अपने साथ हुए हर नाइंसाफी का बदला ले सकती हूं ससक्त हूं पर आज जिस स्थिति में वो हैं जिसे दयनीय स्थिति हीं कह सकते हैं, मेरा ये व्यवहार सर्वथा अनुचित होगा.. आज  ये दोनो मेरा  #दायित्व # बन गए हैं. वो पूरी तरह से मेरे ऊपर डिपेंड हैं.. बाबूजी अब कितने बेबस और लाचार हो गए हैं और मां पार्किनसन की पेसेंट…

        प्रकृति उनके किए की सजा दे हीं रही है तो भला मैं कौन होती हूं ऐसा करने वाली.. ऑर्डर देने वालों की आंखों में याचना बेबसी का भाव देख मैं खुद दुखी हो जाती हूं..

               कुछ सालों बाद जब मैं सास बन जाऊंगी अपनी सास वाली गलतियां नही दोहराऊंगी.. मां बनूंगी सास नही और उस वक्त भी अपने# दायित्व #को ईमानदारी से निभाने की कोशिश करूंगी….

         ❤️❤️🙏🙏✍️

        Veena singh..

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