खरा सोना – प्राची अग्रवाल  : Moral stories in hindi

संध्या और उसके पति हेमंत दोनों ही प्राइवेट नौकरी करते। पहले केवल हेमंत एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था। घर गृहस्थी बढ़ जाने पर बच्चों की पढ़ाई लिखाई का अधिक खर्च होने के कारण संध्या भी काम पर जाने लगती है। मकान घर का है। इसलिए थोड़ी राहत सी महसूस होती। संध्या की सास वृद्धावस्था में भी घर की चौकसी कर ही लेती।

इसलिए संध्या बेफिक्र होकर काम पर जा पाती। कहते हैं ना बड़े-बड़े तो बैठे हुए भी काम के हैं। घर पर इनका मौजूद होना किसी वरदान से कम नहीं होता। बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे हैं। सारे दिन पढ़ाई लिखाई के काम में लगे रहते। वैसे भी आजकल बच्चों पर पढ़ाई का प्रेशर अधिक है। किताबों के बोझ तले, मोबाइल की दुनियाँ में खोए हुए बच्चों का बचपन कहीं खो सा ही गया है। सब कुछ अच्छा चल रहा था। लेकिन समय की गति कब परिवर्तित हो जाए पता ही नहीं चलता। मध्यम वर्गीय परिवारों पर तो वैसे भी समस्याएं चलती ही रहती हैं।

संध्या की सास को अचानक से ब्रेन हेमरेज हो गया। 70 साल से अधिक उम्र है। बुढ़ापा है, पता नहीं कर्म की कौन सी गति में फंसना पड़ जाए जो सांस अटकी रह जाती है। संध्या के पति हेमंत दिन रात अपनी माता की सेवा में लगे हुए हैं। पैसा भी अंधाधुंध उठ रहा है। मध्यमवर्गीय परिवारों में अचानक से कोई बड़ी बीमारी आ जाए तो पूरे घर का बजट बिगड़ ही जाता है। हेल्थ और मेडिकल इंश्योरेंस भी तो सब नहीं कराते हैं। आम आदमी की सोच होती है जब बीमारी होगी जब हम देख लेंगे अभी से काहे का सोचना।

संध्या शुरू में तो चुप लगाती रही लेकिन अब उसकी बर्दाश्त से बाहर हो रहा है सब। जब उसके सब्र का बांध टूट गया तब उसने हेंमत से कहा ऐसे कब तक मांँ की तीमारदारी में लगे रहोगे। घर परिवार नहीं देखना कुछ। सारा पैसा माँ की बीमारी में ही लगा दो तो खाएंगे क्या?

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हेमंत उसकी बात सुनकर चुप लगाता रहता। मियां बीवी दोनों में झगड़े अधिक बढ़ गए। रात दिन #तकरार होने लगती है। घर की हालत भी आर्थिक स्थिति से कमजोर होने लगी थी। एक दिन सुबह-सुबह दोनों मियां बीवी की लड़ाई हो रही थी। 

संध्या हेमंत को मायके जाने की धमकी दे रही थी। आखिरकार हेमंत ने भी साफ-साफ कह दिया,”जहां जाना है जाओ।“

ऐसे दुख की घड़ी में माँ को छोड़ तो नहीं सकता। जिस मांँ ने मुझे पाला पोसा। हमेशा मेरी फिक्र करी। आज जब उन्हें मेरी सबसे ज्यादा जरूरत है तो मैं मुंह पीछे मोड़ लु।

हालांकि तुम्हारी बात सही है माँ अधिक वृद्धा है। लेकिन जब तक सांस की डोरी चल रही है, तब तक तो उनकी सेवा की ही जाएगी। गला घोंट कर थोड़ी मारा जाएगा।

और रही बात तुम्हारी जब तुम्हारे पिताजी बीमार हुए थे तब तो तुम अपने भाई से रोज लड़ कर आई थी और सेवा कराने के लिए। जब तो तुम अपनी भाभी को रोज हिदायतें दिया करती थी कि पापा की सेवा कैसे करनी है।

आज मेरी मांँ बीमार है तो मैं पीछे हट जाऊं।

और संध्या अगर माँ की जगह तुम बीमार हो जाती है तो क्या मैं तुम्हारा इलाज नहीं कराता?

घर परिवार तो मिलकर ही चलता है। सुख-दुख मिलकर ही बांटे जाते हैं‌। जो दुख में साथ छोड़ दे वह कैसा परिवार।

संध्या को अपनी गलती का बहुत एहसास हुआ। उसकी आंखों से पानी बहने लगा है और साथ ही उसे अपनी किस्मत पर गर्व भी महसूस होता है। पैसा कम हो या ज्यादा लेकिन उसे जीवनसाथी खरा सोना ही मिला है। संध्या अपने मन से सारी गलतफहमियां मिटाकर

अपनी सास की सेवा में लग जाती है।

#प्राची_अग्रवाल

खुर्जा उत्तर प्रदेश

#तकरार शब्द पर आधारित बड़ी कहानी

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