इल्जाम – शिव कुमारी शुक्ला : Moral stories in hindi

घर आते ही देव अपनी पत्नी संगीता पर बरस पडा कैसे हिम्मत हुई तुम्हारी उस  पराए मर्द के साथ  डांस  करने की। मेरी इज्जत का तुम्हें जरा भी ध्यान नहीं रहा। क्या सोचेंगे लोग मेरे बारे में कि मेरी पत्नी दूसरे  मर्दों के साथ डांस करती है।आज संगीता भी चुप न रही बोली वैसे ही जैसे तुम्हारी हिम्मत होती है दूसरी महिलाओं के साथ डांस करने की। तुम्हें मेरी इज्जत का कितना ध्यान रहता है। तुमने कभी सोचा लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे कि मेरा पति दूसरी महिलाओं के साथ डांस करता है और मैं वहीं अपमानित हो अकेली बैठी रहती हूं। 

आज तुम कुछ ज्यादा नहीं बोल रही हो मेरी बराबरी करोगी। मैं तो मर्द हूं, कुछ भी करूंगा मेरा कुछ नही बिगडता पर तुम स्त्री होकर ये सब करोगी कुछ तो शर्म करो। क्यों ये दोहरा चेहरा लिए घूमते हो किसने कह दिया कि मर्द कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र है और उस पर कोई लाछंन  भी नहीं लगेगा घर की स्त्री के लिए कुछ  ओर और पराई स्त्रियों के लिए कुछ और, बडे दोहरे मापदंड है आपके। जिनके साथ तुम डांस करते हो वे भी तो किसी की पत्नीयाँ, बेटीयां हैं तब तो तुम्हें कोई आपत्ति नहीं होती।

मेरा साथ छोड कर कितने खुश होकर किसी के भी जरा हाथ बढाने पर चल देते हो डांस करने। तब क्या कभी सोचा था कि मेरे दिल पर क्या बीतती है। में अपने को कितना अकेला और अपमानित अनुभव करती हूं। आज मैंने  जरा सा डांस क्या  कर लिया, जबकि तुम उस वक्त मेरे साथ भी नहीं थे, तुम्हारी इज्ज़त  चली गई।

लगता है आज तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है जो मेरी बराबरी करने पर तुली हो। होश में तो हो एक मिनट में घर से बाहर का रास्ता दिखा दूंगा सो  ही तुम्हारी अक्ल ठिकाने पर आ जाएगी। 

होश में तो आज आई हूँ। रोज रोज इतने दिनों तक अपमानित होने के बाद आज मेरा  सोया  स्वाभिमान जागा है। मेरी जिन्दगी है, मैं भी अपने हिसाब से जीऊंगी। और रही घर से निकालने की बात तो जरा निकाल कर तो देखो। कोई भागकर तुम्हारे साथ नही आई हूँ। बाकायदा बारात लेकर लेने गए थे तब पूरे सात फेरे लेकर आई हूं। ये घर  मेरा भी उतना ही है जितना तुम्हारा सो निकलने  का सवाल ही पैदा नहीं होता।

देव अचम्भीत  सा उसे देख रहा था कि इतना साहस इसमें कैसे आ गया। मेरे सामने मुँह न खोलने वाली पत्नी आज मुझे ही उल्टा सुनाकर धमकी दे रही है।

देव बोला लगता है तुम्हें किसी ने उल्टी पट्टी पढ़ाई  है सो उसके सिखाये वाक्य ही मुझे सुना रही हो, कौन है वह बतमीज  जो मेरी पत्नी को मेरे ही विरुद्ध भडका

रहा है।

क्यों क्या में इंसान नहीं हूं सोचने समझने की क्षमता नहीं है। नहीं देव यह तुम्हारी गलतफहमी है। मुझे कोई नहीं सीखा रहा। पहले में आँख बन्द कर पति पर विश्वास करती थी इसीलिए तुम्हारी सब बातों को सुन मानती थी बुरा भी लगता तो प्रेम के बशीभूत नजर अन्दाज कर देती थी , किन्तु जब पति की नजरों में मेरी कोई अह‌मियत ही नहीं, पग पग पर मेरा अपमान करता है मुझे दूसरों के सामने जलील करता है तो मेरा वह पती प्रेम कपूर की भाँति उड गया । मेरे सीधेपन को तुमने बहुत हल्के  में ले लिया।

मैं सबकुछ समझते हुए तुम्हें अवसर दे रही थी सुधरने का ताकि हमारे गृहस्थ जीवन में क्लेश न हो। इसे तुमने मेरी वेवकूफी समझी और तुम्हें कोई फर्क नहींं पड़ा तुम्हारी बेकाबू दिनचर्या पर। तुमने मेरे समपर्ण को मेरी मौन स्वीकृति  समझा और दूसरी  महिलाओं के साथ फ्लर्ट करते रहे अब ऐसा नहीं होगा। जो-जो तुम करोगे बदले में , मैं भी वैसा ही  करुगीं । 

ये क्या  कह रही हो वह जोर से चिल्लाया तुम बाहर फ्लर्ट करोगी पराये मर्द के साथ।  चिल्लाओ मत चिल्लाना  मुझे भी आता है जो जैसा करेगा वैसा ही भरेगा। सोच लो —— कह  वह बाथरूम में कपडे बदलने घुस गई। 

बचपन से लेकर आजतक वह सिर्फ अपनी मनमानी करता आया था। जो उसे अच्छा लगता वही करता । धनाढ्य माँ बाप का एकलौता बेटा जो था। छोटे में तो प्यार में उसकी सब बातें मां-बाप को अच्छी लगतीं किन्तु बडे होने पर जब पटरी से उतरने लगा तो वे चिन्तीत हुए किन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी थी अब वह उनकी एक  न सुनता । अब उन्होंने सोचा कि अच्छी संस्कारी लड़की से इसकी शादी करा दें तो यह अपनी घर गृहस्थी में रम जायेगा। सो उन्होंने अपने दोस्त की बेटी संगीता से शादी करवा दी। संगीता पढी लिखी समझदार लड़की थी।

उसके पिता भी सम्पन्न  थे ।उसे भी कभी कोई चीज  की जीवन में कमी नहींं रही। वह खुले विचारों वाली आधुनिक वातावरण में पली बढ़ी संस्कारवान बच्ची थी। इसीलिए उसने देव को तीन वर्ष दिए कि शायद यह अपनी गलती ससझ कर लाइन पर आ जाएगा ।जब-तब उसे समझाती  रहती किन्तु उसके कानों पर जूं न रेंगती ।वह अपने ऐंठ में रहता कि वह पैसे वाला है, मर्द है सो उसके लिए सब जायज है। किन्तु पत्नी के लिए  वह बडा पजैसिव था।  पूरा  ध्यान रखता कि वह  किसी से ज्यादा हँसे बोले नहीं।  जहां तक हो वह घर के दायरे में ही कैद रहे । उसका अपने दोस्तों से भी ज्यादा बोलना पसंद  नहीं था। सो संगीता उसके कहे  अनुसार ही  चलती किन्तु अति सर्वत्र वर्जयते।वह उसकी  आदतों से परेशान थी सो आज उसने उसे आइना दिखा दिया।  वह वैठा सोचता रहा। 

उसके बाथरूम से बाहर  आते ही बोला  संगीता  यह  बताओ  तुम्हें तो डांस आता ही  नहीं  था  फिर तुम आज डांस कैसे कर रहीं थीं  और वह कौन था। उसे तुम कब से जानती हो। 

तभी उसकी मां ने कमरे में प्रवेश करते बोला बेटा उसे तो वह बचपन से जानती है। और जो नहीं आता उसे सीखा भी तो जा सकता है। यही काम तुम भी तो सीखा कर उसके  साथ डांस  कर सकते थे। पर तुम्हार नजर में  तो घर की मुर्गी दाल बराबर थी। तुम्हें जो लत लग  गई दूसरों के साथ की वह कैसे छूटती। 

देव मां जब इसका बाँय फ्रेंड था तो इसने मेरे साथ शादी क्यों की ।मुझे धोखा क्यों दिया ।

माँ-धोखा उसने नहीं तुमने नित्य उसे दियाऔर मैंने इतने समय तक उसे अपमान के घूंट पीते देखा। अब और क्या चाहते हो तुम उससे ।वह कोई उसका बाॅय‌फ्रेंड नहीं है उसका भाई है जो शादी के समय नहीं आ पाया था। अभी पन्द्रह दिन पहले ही अमेरिका से आया है। संगीता के प्लान   में, मैं पूरी तरह सम्मिलित थी तुझे सबक सिखाने के लिए। डांस उसकी सहेली ने  सिखाया। निकुंज तो तैयार ही नहीं हो रहा था कि  जीजू  नाराज हो जायेगें। मैंने कसम दिला कर उस बच्चे को तैयार किया।

तूने उसे देखा नहीं था न सो  तेरी  सोच  इतनी है कि तूने उसे गल्त  समझा। तेरा  विश्वास इतना ही संगीता पर है ,तूने यह भी नहीं  सोचा कि वह ऐसा कर सकती है। मेरी बहू  लाखों में एक है  तू ही खोटा सिक्का  है। इल्जाम लगाने के लिए कितनी जल्दी तैयार हो गया अरे नालायक अपने गिरेबान में तो झांक  कर देख   तू कितना पाक, साफ सुथरा है। सोचती  हूं कि अब समझ गया होगा और सीधे रास्ता पर आ जाएगा बर्ना में तुझे घर से  बेदखल कर दूंगी । साधना जी (  मां )  संगीता को गले लगाते कह‌तीं हैं  मेरी बहू को  कोई  आंख नहीं दिखा सकता।  ये घर उसका है कोई निकालने की  धमकी अब देकर तो देखे ।

 देव अपने लगाये इल्जाम और अपनी छोटी सोच पर शर्मिन्दा था। आत्मग्लानी से भरा वह माँ और संगीता से नजरें नहीं मिला पा रहा था। 

शिव कुमारी शुक्ला

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित 

8-3-24

छठा जन्मोत्सव बेटीयां। के अन्तर्गत कहानी  प्रतियोगिता

द्वितीय -कहानी

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