बारात बिना दुल्हन के आयेगी। – सुषमा यादव : Moral stories in hindi

हमारी बेटी के लिए हमने एक रिश्ता देखा था। लड़के के पिता यहीं मध्यप्रदेश में अच्छी सरकारी पोस्ट में थे, पत्नी घरेलू गृहणी थी। उनके तीन बेटे और एक बेटी थी। बड़ा लड़का सुधीर इंजीनियर था,मंझला बेटा आर्मी में कैप्टन था, उससे छोटा इंदौर में एम बी ए कर रहा था। बेटी बिलासपुर में कोई कोर्स कर रही थी।

दरअसल मेरे पतिदेव को फौज में बहुत रुचि थी, इसलिए वो किसी भी हालत में अपनी बेटी की शादी कैप्टन से कराना चाहते थे।

वैसे लड़के राकेश के पिता बहुत सीधे थे पर राकेश की मां बहुत ही रूतबेदार और घमंडी तथा कड़क मिजाज की थी। 

हमारी बेटी भी खूबसूरत और कान्वेंट स्कूल में पढ़ रही थी,सो उन्होंने उसे देखकर पसंद कर लिया। हमारी उनके बेटे के लिए चाहत देखकर वो हमें अपनी उंगलियों पर नचाने लगी थी। तरह तरह की मांग होती, अपने घर भी बुलातीं, बिलासपुर हमारी गाड़ी से मिलने बेटी के पास जातीं।हम सब की आंखों पर पट्टी बंधी थी।सब जानकर भी हम अंजान बने थे। खुशी से झूम रहे थे कि इतना अच्छा घर वर मिला है। हम खूब सारे मंहगे तोहफे भी पूरे परिवार के लिए ले जाते। यहां सब तरफ बात फैल गई थी हमारी बेटी की शादी की।

उनका गांव उत्तर प्रदेश में ही था। वहां से वो अपने बड़े बेटे की शादी कर रहे थे। हमें भी आमंत्रित किया गया था।

खूब सारा सामान और उपहार लेकर हम दोनों पहुंचे। 

हमारा पूरे गांव में परिचय कराया।सब कहने लगे अच्छा वो बबुआ की शादी जिनके घर तय हुई है वो ही हैं। हम सब बहुत खुश हुए कि वाह, यहां भी सबको हमारे रिश्ते के बारे में पता है।

हमारा बहुत आदर सम्मान किया गया। बारात चली गई। शादी एक मंत्री की भांजी से हो रही थी, चुंकि लड़की के पिता नहीं थे,तीन बहनें थीं , इसलिए मंत्री जी एक भांजी का जिम्मा ले कर उसकी शादी करवा रहे थे।

दूसरे दिन हम सब सुबह नाश्ता कर ही रहे थे कि उधर से उनके पति का फ़ोन आया। वो लोग कार नहीं दे रहे हैं। मां कह रही है  हमारी हैसियत नहीं है कार देने की। अभी तो मेरी दो और बेटियां शादी के लायक हैं। क्या करूं। बहू की विदाई करवा कर चल दूं।

जोर से फ़ोन पर चिल्लातीं हुई वो बोली, अरे,कार कैसे नहीं देंगी। हमने तो मंत्री की बात मान कर शादी के लिए हां कही थी। नहीं तो उन जैसे भिखमंगों के यहां हम शादी क्यों करते ?? उनकी औकात है हमारे यहां शादी करने की। वो अपनी औकात भूल गए।मैं कुछ नहीं जानती मुझे तो बस बढ़िया वाली कार चाहिए। उनसे बोलो जल्दी इंतज़ाम करें वरना लड़की की विदाई नहीं होगी और वो लगीं मुझसे बड़बड़ करने। 

थोड़ी देर बाद उनके बेटे का फोन आया, मम्मी, क्या करूं, लड़की की मां बहुत रो रही है, पापा जी के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ा रही है। मां ने कहा।” लड़की को छोड़ आओ ” बिना दुल्हन के बारात वापस आयेगी।

बिना कार के मैं किसी को घर में घुसने नहीं दूंगी। उस मंत्री से कहो अपनी कार में विदाई करें। मैं उस कार को वापस नहीं जाने दूंगी। मैं आश्चर्यचकित हो कर उन्हें देखने लगी, दीदी, लड़की के पिता नहीं हैं। इसमें उस बेचारी का क्या दोष। लड़की की विदाई नहीं होगी तो कहीं वह लड़की कुछ कर ना बैठे। बहुत समझाया तब जाकर उन्होंने फोन किया ठीक है विदाई कर के आ जाओ।

बहू आई, मंत्री जी की कार में। तुरंत जाकर गाड़ी पकड़ कर खड़ी हो गईं।अब ये गाड़ी वापस नहीं जाएगी। बेटे और पति बोले, अरे, ये गाड़ी सरकारी है,लेने के देने पड़ जाएंगे।

डर कर उन्होंने गाड़ी छोड़ दी।

इधर बहू लगातार रोए जा रही थी, उसने ना तो पानी पिया और ना ही मुंह में एक कौर डाला। मैं उसे गले से लगा कर खूब समझा रही थी साथ ही कुछ निर्णय भी ले रही थी। 

हम वहां से उसी दिन चल दिए, रास्ते में इन्होंने कहा, उनके बार-बार मना करने पर भी तुम रुकने को तैयार नहीं हुई। मैं बस खामोश रही।

थोड़ी देर बाद इन्होंने कहा। जानती हो,इन लोगों ने बड़ा नाटक किया विदाई के समय।

हां मैं सब जानती हूं और सब कुछ बता दिया।

मैंने इनसे कहा, मैं अभी इसी समय इनसे अपना रिश्ता तोड़ती हूं। ये भी सब सुन कर स्तब्ध रह गए। हां तुम ठीक कहती हो, ऐसे लालची दहेज लोभी के घर हमें अपनी बेटी नहीं देना है। ना जाने उस बहू की क्या हाल करेंगी वो।

बाद में वो हमारे घर आईं और हमारे मना कर देने पर आंचल फैला कर कहने लगी, हमारे आंचल में आप दोनों बेटियों को डाल दो,हम उन्हें बहुत अच्छे से रखेंगे।

हमने भी कह दिया जाइए हम सोचेंगे। वैसे हमारी भी कार देने की हैसियत नहीं है। नहीं, नहीं जी हमें आपसे कार नहीं चाहिए। पर हम सब टस से मस नहीं हुए।

उन्हें भी तो उनकी औकात समझाना था।

सुषमा यादव प्रतापगढ़ उ प्र

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