कढ़ी चावल – नेकराम Moral Stories in Hindi

चांदनी अपने इकलौते बेटे के साथ बड़ी-बड़ी इमारतों के पीछे बनी बहुत सी कच्ची झोपड़ियों के बीच अपनी एक छोटी सी झोपड़ी में रहती है
चांदनी के पति ,, सूरज ,, का सब्जी बेचने का काम ठीक से नहीं चल रहा था उधारी होने की वजह से सूरज को बहुत घाटा झेलना पड़ा
सूरज के घर से 1 किलोमीटर दूर बर्तन बनाने की एक फैक्ट्री है जहां उसने कल ही नौकरी की बात की थी
चांदनी ने भी अपने पति को समझाया सब्जी खरीदने के लिए मंडी जाने के लिए सुबह 4:00 बजे तुम्हें उठना पड़ता है भूखे प्यासे ही मंडी जाना पड़ता है पर मोहल्ले वाले लोगों को तो फ्री में सब्जी चाहिए एक एक रूपए के लिए लड़ते हैं
नौकरी करोगे तो महीने की पूरी सैलरी हाथ लगेगी
चांदनी का बेटा पास के ही सरकारी स्कूल में दूसरी कक्षा में पढ़ता है
कुछ दिनों से उसका चेहरा उदास था पिता ने कई बार पूछा पर मोहन कोई जवाब नहीं देता था
सूरज अपनी नई नौकरी के लिए बर्तन बनाने वाली कारखाने के बाहर रोड पर पहुंचा गार्ड गेट के बाहर कुर्सी पर बैठा हुआ तंबाकू मल रहा था
सूरज ने बर्तन बनाने वाले कारखाने के मलिक का नाम बताते हुए कहा
आज मेरी नौकरी का पहला दिन है
गार्ड ने गेट खोल दिया अंदर बहुत बड़ा ग्राउंड था उस ग्राउंड के चारों तरफ बहुत सारे कमरे थे उन कमरों में छोटे-छोटे बहुत से कारखाने थे
जिनमें मजदूर काम कर रहे थे
गार्ड ने इशारा करते हुए बता दिया चौथे नंबर का जो कमरा है वह उसी मालिक का है जो अभी-अभी नाम आपने बताया है
सूरज को कारखाने का मालिक वहीं खड़ा हुआ मिल गया
कारखाने के मालिक ने सूरज को सब काम समझा दिया और वेतन भी बता दिया
दोपहर हो चुकी थी लंच का समय हो चुका था 1:00 बजते ही सभी मजदूरों ने अपनी अपनी मशीन बंद कर दी
और कारखाने के फर्श पर ही चटाई बिछाकर बैठ गए
सूरज भी अपने घर से टिफिन में खाना बांध कर लाया था
सूरज ने चटाई पर बैठे हुए मजदूरों से कहा क्या आप लोग खाना नहीं खाओगे आपकी टिफिन तो खाली है
उनमें से एक मजदूर बोला मेरा नाम रमेश है मुझे यहां नौकरी करते हुए 2 साल हो गए है , मैं घर से आज तक खाना नहीं लाया
इस बिल्डिंग के फर्स्ट फ्लोर पर रोज खाना बनता है वहीं से हम सब कारखाने में काम करने वाले मजदूरों को खाना मिल जाता है
इतने में एक मजदूर एक बड़े से बर्तन में कढ़ी और चावल ले आया और चटाई पर बैठे मजदूरों के खाली बर्तनों में परोसने लगा
रमेश ने बताया इस मोहल्ले के आस-पास सरकारी स्कूल है उन्हीं स्कूलों का खाना यहां पर बनता है इस जगह के मालिक सत्य प्रकाश
ने खाना बनाने वालों से कह रखा है हमारे इस,, बेड़े ,, के सभी मजदूरों को दोपहर के लंच में, जो कुछ भी बने दे दिया करो
कभी हमें पूरीया मिल जाती है कभी छोले की सब्जी ,, कभी कढ़ी चावल कभी खिचड़ी इसलिए हम घर से खाना नहीं लाते
कढ़ी चावल हमें बहुत पसंद है कुछ कढ़ी चावल तो हम अपने घर भी ले जाते हैं
यहां से चार-पांच रिक्शे खाना लादकर रोज निकलते हैं सरकारी स्कूल की तरफ ,, गेट वाला गार्ड भी कढ़ी चावल खाने का शौकीन है
वह भी अपने घर ले जाता है
रसोई में खाना बनाने वाले सभी पेट भर के खाते हैं कढ़ी चावल की तो बात ही अलग है,, वाह क्या स्वाद का बनता है कढ़ी चावल
जो रिक्शा ले जाता है उसका नाम शंकर दयाल है वह हमें बताता है
जिस स्कूल में वह खाना लेकर जाता है वहां के चौकीदार को भी कढ़ी चावल देना पड़ता है वरना वह गेट खोलने में आना — कानी करता है
प्रिंसिपल तो अपने कमरे में ही कढ़ी चावल मंगवा लेते हैं वहां के बहुत से टीचर और अध्यापक भी कढ़ी चावल ही खाना पसंद करते हैं
खाना बांटने वाली आंटी पहले ही अपने खाली बर्तनों को कढ़ी चावल से भर लेती है झाड़ू वाली अम्मा भी स्कूल का खाना खाती है
अंत में बचा खुचा ही कढ़ी चावल बच्चों तक पहुंच पाता है
स्कूल में खाना बांटने वाली आंटी को पता होता है की कढ़ी चावल बहुत थोड़ा है और बच्चों की संख्या ज्यादा है सभी कड़ी चावल तो रास्ते में बंटते बंटते खत्म हो जाता है अब बच्चों को पेट भर के कहां से मिलेगा
इसलिए वह भी मजबूर होकर बच्चों को आंखें दिखाते हुए कहती है
लाइन में आओ सभी बच्चे ,,, और सबको एक बार ही मिलेगा
आधा-आधा चम्मच कढ़ी चावल , सब बच्चों को दिया जाता है जिससे बच्चों का पेट ही नहीं भरता बच्चे दूबारा मांगे तो उन्हें फटकार कर दूर खड़ा कर दिया जाता है
सूरज ने रमेश की बात को बीच में रोकते हुए कहा — बहुत खूब बच्चों के पेट का निवाला छीन कर आप सब लोग बड़े मजे से कढ़ी चावल खाते हो और कितनी बहादुरी से अपनी गाथा बता रहे हो
आप लोगों को तो मेडल मिलना चाहिए
मेरा बेटा मोहन कुछ दिनों से उदास है मैंने उसकी उदासी का कारण पूछा तो उसने कोई जवाब ना दिया वह सरकारी स्कूल में दूसरी कक्षा में पढ़ता है मोहन की मायूसी का कारण पता लगाने के लिए मैंने उसके बैग की तलाशी ली उसके टिफिन को खोलकर देखा उसमें खिचड़ी थी
मैंने लगातार एक सप्ताह तक उसके बस्ते की तलाशी ली उसके रखे हुए टिफिन बॉक्स में कभी भी मैंने कढ़ी चावल का एक भी दाना नहीं देखा
मुझे पता चल चुका है उसकी उदासी का कारण क्या है उसे स्कूल में कढ़ी चावल खाने को नहीं मिलते हैं सारा कढ़ी चावल तो आप जैसे लोग ही खा लेते हो
मुझे नहीं करनी नौकरी तुम जैसे लोगों के पास मैं सब्जी बेंचता था और सब्जी ही बेचूंगा सूरज ने अपना लंच बॉक्स बंद किया और वह बाहर की तरफ निकल पड़ा
सूरज की आंख में आंसू थे
सूरज दोपहर के 2:00 बजे तक अपने घर वापस लौट आया पत्नी ने जल्दी आने का कारण पूछा तो सूरज ने कुछ ना बताया
सूरज कल सुबह मंडी जाने के लिए पड़ोसी से एक हजार रुपए उधार ले आया
शाम के 5:00 बज चुके थे चांदनी रोज की तरह जल्दी-जल्दी तैयार होकर मोहन को स्कूल से लेने के लिए चल पड़ी
सूरज घर में खाली बैठे हुए क्या करता उसने सोचा चांदनी जब तक मोहन को लेकर आएगी तब तक मैं रसोई में चाय बना लेता हूं फिर हम सब तीनों इकट्ठे होकर चाय पियेंगे
सूरज ने उदास मन से चाय बनाकर एक प्लेट से ढक कर रख दी चांदनी,,, अपने बेटे मोहन को ले आई
मोहन के चेहरे पर चमक थी और खुशी
सूरज ने जल्दी से मोहन का बस्ता खोला और टिफिन निकाला
टिफिन खोल कर देखा तो उसमें कढ़ी और चावल के दाने चिपके हुए थे
सूरज अपने बेटे से पूछने लगा तुम इतने खुश हो क्या बात है
मोहन ने बताया आज स्कूल में दोपहर के 3:00 बजे जब हमारा लंच हुआ तो सभी बच्चों ने पेट भर के कढ़ी चावल खाया
मैंने दोबारा मांगा तो मुझे दोबारा कढ़ी चावल खाने को मिला
सूरज ने चांदनी से कहा चाय मैंने बना दी है
,, तुम मोहन को चाय दो ,, तुम भी चाय पी लो ,, मैं अभी आता हूं
सूरज तेज कदमों से पैदल चलते हुए उसी कारखाने में वापस पहुंच गया
रमेश ने देखते ही कहा ,,अरे आओ सूरज आओ बैठो कुर्सी पर
आज तुम्हारा बेटा मोहन नाराज तो नहीं था अब तुम्हारा बेटा मोहन कभी उदास नहीं होगा
रमेश ने बताया तुम्हारे जाने के बाद मैंने सारा कढ़ी और चावल ले जाकर वापस रसोई में जमा करवा दिया
खाना बनाने वाले लोगों ने पूछा आप कढ़ी और चावल वापस क्यों ले आए है ,क्या कढ़ी और चावल अच्छा नहीं बना
मैंने तुम्हारे बेटे मोहन की सारी बात उन्हें बता दी
इस बात पर उन्हें बड़ा दुख हुआ और उन्होंने फैसला लिया
ना हम खाएंगे ना किसी को खाने देंगे यह कढ़ी चावल बच्चों का है,, बच्चों को ही इसका हक मिलना चाहिए
खाना बनाने वाला हलवाई ,, शंकर दयाल के रिक्शे के साथ-साथ
सभी स्कूलों में अपने हाथों से कढ़ी और चावल परोसने गया
हलवाई ने सारी बात प्रिंसिपल को बताई
प्रिंसिपल ने सभी अध्यापक और अध्यापिका को सूचित कर दिया आज के बाद बच्चों का आया हुआ खाना कोई नहीं खाएगा
सब बच्चों ने पेट भर के खाना खाया दोबारा मांगने पर उन्हें फिर से कढ़ी और चावल खाने को मिले
सूरज ने रमेश की बात सुनकर रमेश को गले से लगाते हुए कहा
कल से मैं इस कारखाने में काम करने के लिए आ रहा हूं
खुश रहिए ,, हंसते रहिए
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नेकराम सिक्योरिटी गार्ड
मुखर्जी नगर दिल्ली से
स्वरचित रचना

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